Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
आखिरकार मंडुआडीह रेलवे स्टेशन का नाम बनारस हो ही गया. - श्रीनारद मीडिया

आखिरकार मंडुआडीह रेलवे स्टेशन का नाम बनारस हो ही गया.

आखिरकार मंडुआडीह रेलवे स्टेशन का नाम बनारस हो ही गया.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

योगी सरकार प्रदेश में पुराने से कुछ नया खोजकर लाने के लिए चर्चा में रहती है। चाहे विधर्मियों द्वारा हिंदू संस्कृति से जुड़े शहरों/ जिलों के बदले गए नामों को निरस्त कर पुन: सांस्कृतिक पहचान से जुड़े नाम रखने की परंपरा हो या दीपदान या प्रज्ज्वलन जैसी समाप्त हो चुकी परंपराओं को पुनर्जीवित करने की बात हो। इसके लिए वह अक्सर विवादों और विपक्षी आलोचना के दायरे में आ जाती है। वैसे अच्छी बात यह भी है कि इस आलोचना पर विराम लगाने के लिए एक बड़ा समर्थक वर्ग भी सामने आ जाता है। इस बार भी प्रदेश में संस्कृति और संस्कार का बोध कराने वाले ऐसे ही दो प्रयोग हुए हैं। पहला प्रयोग प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तो दूसरा सचिवालय में हुआ है।

संस्कृति के अहसास से जुड़ा बनारस रेलवे स्टेशन : वाराणसी या काशी ही नहीं बाबा विश्वनाथ की नगरी का एक नाम बनारस भी है। बड़ा प्रचलित नाम है और बोलचाल में आज भी यही प्रचलित भी है। बनारस भी काशी का ही पर्याय है। संस्कृत वांग्मय और केनोपनिषद में रस और बन की उपलब्ध व्याख्या ही बनारस की उत्पत्ति का मूल है। केनोपनिषद में बन का अर्थ उपासना योग्य से लिया गया है और संस्कृत वांग्मय के सूक्ति रसों का अर्थ ब्रह्म से लिया जाता है। रस का अर्थ आनंद से भी लिया जाता है। यानी रस का आशय ब्रह्म और आनंद से है। आनंद की प्राप्ति शिक्षा से होती है।

विश्व की सबसे प्राचीनतम आबाद नगरी काशी धर्म और शिक्षा के साथ ही संस्कृत की भी जननी मानी जाती है। इसीलिए इसके बनारस नाम को पुनर्जीवित करने या नए गौरवपूर्ण अहसास से जोड़ने के लिए रेलवे ने पहल की है। मंडुआडीह रेलवे स्टेशन में नए बोर्ड लगाए जा चुके हैं। रेलवे स्टेशन पर लगाए गए इन बोर्डो पर संस्कृत में बनारस: लिखा गया है। प्लेटफार्मो पर बनारस: के बोर्ड हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में भी लिखे गए हैं।

बनारस बाबा विश्वनाथ की नगरी होने के कारण भारत के उत्तर, पूर्व, पश्चिम, दक्षिणी राज्यों से ही नहीं विदेश के भक्त भी यहां आकर रमे रहते हैं। आध्यात्मिक मार्ग की तलाश में हजारों विदेशी भक्त प्रतिदिन काशी में रमे रहते हैं। घाटों पर इनका विचरण कौतूहल पैदा करता है। अब यहां आने वाले यात्रियों का जब शिव की नगरी के एक नए गौरव से परिचय होता है तो वह नई अनुभूति लेकर जा रहे हैं।

गरिमा के अनुरूप पोशाक : शिक्षण संस्थानों और सार्वजनिक स्थानों पर ड्रेस कोड लागू करने की अलग-अलग मंशा से पहले भी पहल हुई हैं, लेकिन यह कहकर तुरंत एक वर्ग आपत्ति शुरू कर देता है कि पहनने-ओढ़ने के चयन में आजादी होनी चाहिए। कभी कभी यह आपत्ति या आलोचना इतनी मुखर हो जाती है कि कोई भी आदेश या तो पूरी तरह वापस ले लिया जाता है या फिर उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। ऐसी ही खुसफुसाहट इन दिनों उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय के कर्मचारियों/ अधिकारियों में है।

कारण है, एक आदेश जिसमें कहा गया है कि सचिवालय के कर्मचारी अब जींस-टीशर्ट में कार्यालय नहीं आएंगे। इसके स्थान पर गरिमापूर्ण पोशाक में ही कार्यालय आएंगे। इसी बात पर खुसफुसाहटें शुरू हुई हैं। हालांकि इस विषय पर विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित का तर्क काबिले गौर है। विधानसभा के सभी कर्मचारियों को यूनिफार्म मिलती है या यूं कहें यूनिफार्म का भत्ता मिलता है। जोर न देने से कर्मचारियों ने यूनिफार्म पहनने की आदत ही नहीं डाली और भूल गए। अब जब संज्ञान लिया गया है तो फौरी दिक्कत होना स्वाभाविक है। विधानसभा अध्यक्ष का कहना है कि अधिकारियों व कर्मचारियों को उन्हें दी गई यूनिफार्म ही पहन कर कार्यालय आना चाहिए।

यूं सरकारी सेवा के लोगों को अपने सेवायोजन पर हमेशा गौरव का अहसास होता है। पुलिस के लिए खाकी वर्दी नियत है। सेना के लिए भी अपनी वर्दी शान की बात है। ये यूनिफार्म तय करने के पीछे मंशा यह रही है कि वे इसे पहनकर गौरव की अनुभूति के साथ ही अपने कर्तव्यों का अहसास कर सकें। सचिवालय सेवा के बहुत से कर्मचारी/ अधिकारी गर्व से अपने वाहनों के पीछे सचिवालय का लोगो लगाकर घूमते-फिरते हैं। फिर यदि उनसे अपनी निधारित यूनिफार्म पहनने की अपेक्षा की जा रही है तो इस स्वस्थ नजरिये से ही देखा जाना चाहिए।

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!