बलशाली बनो एक बलशाली सौ विद्वानों को कंपा देता है-चंद्रशेखर आजाद.

बलशाली बनो एक बलशाली सौ विद्वानों को कंपा देता है-चंद्रशेखर आजाद.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

आजाद हैं, आजाद ही रहेंगे

जयंती पर विशेष

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

आजादी की लड़ाई में जीवन की आहुति देने वाले चंद्रशेखर आजाद का बलिदान 90 साल बाद भी युवाओं को देश के लिए मर मिटने की प्रेरणा देता है। आजाद की शहादत से उस समय हर कोई आहत था। सभी चाहते थे कि आजादी के इस दीवाने का अंतिम संस्कार विधि विधान से हो। कुछ कांग्रेसी नेता असहयोग कर रहे थे पर आम जनमानस ने पूरा प्यार लुटाया। सभी की आंखें नम थीं।

प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में उनके अस्थिकलश से एक चुटकी राख लेने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। आजाद की चुस्ती फुर्ती ने उन्हें हमजोलियों में ‘क्विक सिल्वर’ की उपाधि दिलाई थी। कुशल नेतृत्व क्षमता, चतुर्मुखी निरीक्षण-शक्ति, सावधानी और तत्काल उपयुक्त काम करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति उन्हें खास बनाती थी। आज उनकी जन्मतिथि (23 जुलाई) है और देश उन्हें याद कर रहा है। आजाद का कथन था,‘बलं वाव भूयोअपि ह शतं विज्ञानवतामेको बलवानाकम्प्यते’ अर्थात बलशाली बनो, एक बलशाली सौ विद्वानों को कंपा देता है।

jagran

शहीद चंद्रशेखर आजाद पार्क स्थित इलाहाबाद संग्रहालय में शहीद चंद्रशेखर की युवावस्था की संरक्षित तस्वीर।

प्रतापगढ़ से भी रहा है जुड़ाव : आजाद का कौशांबी और प्रतापगढ़ से भी गहरा नाता रहा। प्रतापगढ़ में सराय मतुई नमक शायर गांव में मथुरा प्रसाद सिंह की वह हवेली आज भी है, जहां आजाद साथियों के साथ विस्फोटक बनाते थे और प्रिंटिंग प्रेस चलाते थे। यह स्थान सई नदी के करीब है। जब भी पुलिस वाले उनकी भनक लगने पर पहुंचते, वह नदी में तैरकर निकल जाते।

चंदशेखर आजाद पार्क है बलिदान का गवाह : प्रयागराज के चंद्रशेखर आजाद पार्क की उम्र करीब 150 साल है और इसका फैलाव 133 एकड़ में है। 27 फरवरी 1931 की सुबह इसने अपने वीर सपूत की दिलेरी और बलिदान भी देखा। कालांतर में इसका नाम अल्फ्रेड पार्क से चंद्रशेखर आजाद पार्क कर दिया गया। यहां स्थापित संग्रहालय में आजाद की पिस्तौल संरक्षित है। पार्क में गाथिक शैली में बनी पब्लिक लाइब्रेरी में ब्रिटिश युग के महत्वपूर्ण दस्तावेज संरक्षित हैं। नार्थ वेस्टर्न प्राविंसेज एंड अवध लेजिस्लेटिव काउंसिल की पहली बैठक आठ जनवरी 1887 को यहीं हुई थी।

jagran

शहीद चंद्रशेखर आजाद पार्क स्थित इलाहाबाद संग्रहालय में शहीद चंद्रशेखर आजाद द्धारा लिखा गया पत्र, इलाहाबाद संग्रहालय में शहीद चन्द्रशेखर आजाद की पिस्टल। साभार- संग्रहालय

अस्थिकलश यात्र में जुटी भीड़ : पोस्टमार्टम के बाद रसूलाबाद घाट पर आजाद की अंत्येष्टि हुई तो चिता की राख सहेज ली गई। चौक स्थित अभ्युदय प्रेस से अगले दिन शुरू हुई अस्थिकलश यात्र पुरुषोत्तम दास पार्क में सभा के साथ खत्म हुई। सुधीर विद्यार्थी की पुस्तक अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद में उल्लेख है कि अस्थि कलश पार्क में रखे जाने पर सभा शुरू होते ही क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल की पत्नी प्रतिभा सान्याल साक्षात दुर्गा के रूप में नजर आईं। चंद शब्द बोले। कहा, खुदीराम बोस की भस्म को लोगों ने ताबीज में रखकर अपने बच्चों को पहनाया था ताकि उनके बच्चे भी बहादुर देशभक्त बनें। मैं उसी भावना से भाई आजाद के अस्थियों की चुटकी भर राख लेने आई हूं। चंद पलों में अस्थि कलश में रखी राख नहीं बची। बड़ी मुश्किल से कुछ अंश काशी ले जाने के लिए सहेजा गया।

शहीद स्थली पर जाकर रोई थीं मां : उन दिनों एक पत्रिका निकलती थी कर्मयोगी और अभ्युदय। घंटाघर के पास उसके कार्यालय में वह बदले नाम और भेष में रहते थे। किसी से मिलने या मंत्रणा करने प्राय: अल्फ्रेड पार्क आते थे। इलाहाबाद केंद्रीय विवि के मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग के हेरम्ब चतुर्वेदी बताते हैं कि वह उत्साह और जोश से लबरेज नवयुवकों से मिलते थे तो तमाम प्रबुद्ध लोगों से भी संबंध थे। मददगारों की सूची में एक और प्रमुख नाम था मोतीलाल नेहरू का। आजाद के बलिदान के बाद उनकी मां शहीद स्थल पर गईं और भाव विभोर होकर खूब रोईं थीं।

Leave a Reply

error: Content is protected !!