डिजिटल इंडिया की वजह से ई-गवर्नेंस व्यवस्था में बहुत अंतर आया है,कैसे?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
भारत के विकास में डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का बहुत बड़ा महत्व है. हम लोग 2025 तक पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना चाहते हैं और हम यह भी चाहते हैं कि डिजिटल अर्थव्यवस्था का आकार एक ट्रिलियन डॉलर हो. इन दोनों लक्ष्यों को हासिल करने में डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का बड़ा योगदान रहेगा. बीते छह बरसों में इसमें जो प्रगति हुई है, वह उल्लेखनीय है. डिजिटल इंडिया की वजह से ई-गवर्नेंस व्यवस्था में बहुत अंतर आया है.
गरीब आबादी तक पहुंचनेवाली कई योजनाओं का आधार यह कार्यक्रम है. उदाहरण के लिए जैम- जन धन, आधार और मोबाइल- पहल को देखा जा सकता है. शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में, खासकर कोविड-19 के दौर में और उसके बाद, डिजिटल तकनीक और इंफ्रास्ट्रक्चर का बहुत उपयोग हुआ है. विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के तहत लाभार्थियों के खाते में नगदी के सीधा हस्तांतरण में इसका व्यापक प्रयोग हुआ.
अभी हम देख रहे हैं कि किसानों को मिलनेवाला न्यूनतम समर्थन मूल्य के भुगतान में भी बड़ी सहूलियत हो रही है. डिजिटल इंडिया के अंतर्गत बड़ी संख्या में एप के विस्तार से ई-कॉमर्स की बढ़त में भी उछाल आया है. कनेक्टिविटी और अवसरों का दायरा गांवों तक बढ़ा है. विभिन्न संस्थाओं के डिजिटल मंच पर आ जाने से उत्पादकता में भी बढ़ोतरी हुई है. इससे अर्थव्यवस्था में भी मदद मिली है और रोजगार के अवसर भी विस्तृत हुए हैं.
इस प्रकार, डिजिटल इंडिया कार्यक्रम भारत की अर्थव्यवस्था और सामाजिक-आर्थिक विकास में ऑक्सीजन की तरह भूमिका निभा रहा है. अभी इस कार्यक्रम के छह साल हुए हैं और अब तक की तरक्की बहुत उत्साहजनक है. मुझे लगता है कि इसमें अभी और भी काम करने की जरूरत है. जहां तक चुनौतियों की बात है, तो सबसे पहला प्रश्न संसाधनों की उपलब्धता का है. अभी तक सरकार की ओर से बहुत संसाधन लगाये गये हैं, लेकिन अंतत: इसमें पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप करना पड़ेगा यानी निजी क्षेत्र की भागीदारी भी बढ़ानी होगी.
निजी क्षेत्र का निवेश तभी आयेगा, जब यह उनके लिए लाभप्रद होगा. दूसरी अहम बात नयी तकनीकों से संबंधित है. लगातार नयी तकनीकों की आमद बनी हुई है. हमारे देश में बड़ी संख्या में लोग 2जी और 3जी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि 4जी तकनीक का विस्तार हो रहा है, लेकिन अब हम 5जी के कगार पर खड़े हैं. यह तकनीक 4जी से अलग भी है और बहुत उन्नत भी. इसे लाना और इसका प्रसार करना, इसके लिए नये एप बनाना आदि ऐसे काम हैं, जिनके लिए बहुत कुछ करना होगा.
तीसरा मुद्दा है देश में डिजिटल डिवाइड को पाटना. डिजिटल डिवाइड का अर्थ है कि शहरों में तो इंटरनेट की सुविधा और स्पीड ठीक-ठाक मिल जाती है, हालांकि यहां भी सिग्नल से जुड़ी कमियां हैं, लेकिन गांवों में इंटरनेट स्पीड आदि बहुत कम हैं. गांवों में फाइबर ऑप्टिक्स केबल पहुंचाने की बात हुई थी, जिससे 10 गिगाबाइट प्रति सेकेंड की गति से इंटरनेट पहुंचता है, उस दिशा में अभी काम किया जाना है.
साल 2018 में एक राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति आयी थी, जिसमें एक यह लक्ष्य रखा गया था कि 2022 तक तेज गति की इंटरनेट सेवा मुहैया कराना था, पर हम अभी तक वहां नहीं पहुंच सके हैं. इसका कारण यही है कि जो डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर हमें बनाना है, उसमें अपेक्षित तेजी नहीं आयी है.
जहां तक एफोर्डिबिलिटी यानी सस्ते दर पर स्मार्ट फोन और इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराने का सवाल है, तो यह कुछ समय तक तो हमारे सामने रहेगा. इसका समाधान आसान नहीं है. यह मसला हमारी उत्पादन क्षमता से जुड़ा हुआ है. अभी आप देखें, तो केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक के क्षेत्र में भी योजनाएं निकाली हैं. इस क्षेत्र में सरकार का लक्ष्य है कि हम ज्यादा से ज्यादा सामानों, खासकर मोबाइल फोन आदि का निर्माण भारत में ही करें.
यह संतोषजनक है कि हमारे देश में कई मोबाइल फोन बनने लगे हैं और उनकी कीमतों में भी कमी आ रही है, लेकिन जब तक यह बड़े पैमाने पर नहीं होता है, तब तक एफोर्डिबिलिटी का मसला बना रहेगा. इस संबंध में यह भी महत्वपूर्ण है कि हमें केवल मोबाइल फोन की असेम्बली करने तक ही उत्पादन को सीमित नहीं रखना है. फोन के बहुत सारे पुर्जे, लगभग 70-80 प्रतिशत, बाहर से आयातित करते हैं. देश में निम्न तकनीक के पुर्जे ही बनते हैं, लेकिन इस दिशा में योजनाएं शुरू हो गयी हैं और उत्पादन को बढ़ावा देने की नीतियां सफल हो रही हैं.
इस क्षेत्र में बाहर से निवेश भी आ रहा है. मुझे लगता है कि अगले पांच-छह सालों में स्वरूप में सकारात्मक परिवर्तन होगा. हमें एक और पहलू पर गौर करना है. डिजिटल से जुड़े साजो-सामान उच्च तकनीक से संबंधित हैं. इसमें बौद्धिक संपदा अधिकार दूसरी कंपनियों और देशों के पास हैं. उन्हें खरीदने के लिए रॉयल्टी देनी होती है. जब तक हम शोध व अनुसंधान में समुचित खर्च नहीं करेंगे, तब तक हमें उच्च तकनीक के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ेगा और वह हमें महंगा पड़ेगा. इसके साथ हमें डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास भी ध्यान केंद्रित करना है. इसमें निजी क्षेत्र का निवेश बढ़ाना होगा.
इन सबके अलावा नीतियों और योजनाओं का मामला है. साथ ही, हमें क्षेत्रीय भाषाओं में एप आदि का विकास करना है. इस संबंध में हमारे पास अनुभव होने लगा है. आरोग्य सेतु एप और कोविन पहल में इस महामारी के दौर में बहुत काम हुआ है तथा टीकाकरण और संक्रमण नियंत्रित करने में मदद मिली है. इस तरह डिजिटल डिवाइड खत्म करने के प्रयास जारी हैं. आगे 5जी तकनीक के लिए हमें हर सौ मीटर पर एंटीना लगाने होंगे, क्योंकि इसकी डाटा ट्रांसफर स्पीड बहुत तेज होती है.
इसके लिए जरूरी निवेश सरकार नहीं कर पायेगी और इसमें निजी निवेश को जोड़ना होगा. साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करना भी बड़ी चुनौती है. पिछले कुछ बरसों से साइबर हमले बढ़ रहे हैं और जो अहम इंफ्रास्ट्रक्चर हैं, जैसे- दूरसंचार, विद्युत आपूर्ति, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा क्षेत्र, बैंकिंग व वित्तीय गतिविधियां आदि- वे ऐसे हमलों के निशाने पर हैं. जो हम आगे डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर बनायेंगे, उसके अंदर साइबर सुरक्षा की व्यवस्था रहनी चाहिए.
अफसोस की बात है कि हमारे देश में साइबर सुरक्षा से जुड़ी चीजों का अधिक उत्पादन नहीं होता है और उन्हें हमें बाहर से आयात करना पड़ता है. ऐसे में किसी भी चीज में विस्फोटक या वायरस हो सकता है, जिससे उसके उपयोग की जगह या वह सिस्टम खतरे में आ सकता है. तो, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में हमें साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता देनी होगी.
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