Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
क्या लाल किले का नाम बदलकर नेताजी फोर्ट करने के पीछे कोई मजबूत कारण है? - श्रीनारद मीडिया

क्या लाल किले का नाम बदलकर नेताजी फोर्ट करने के पीछे कोई मजबूत कारण है?

क्या लाल किले का नाम बदलकर नेताजी फोर्ट करने के पीछे कोई मजबूत कारण है?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

बीते दिनों नेताजी सुभाष चंद्र बोस के प्रपौत्र चंद्र कुमार बोस ने फिर इस मांग को उठाया कि लाल किले का नाम बदलकर ‘नेताजी फोर्ट’ कर दिया जाए। अपनी बात की पुष्टि के लिए उन्होंने इस बात को भी जोड़ा कि डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी इस आशय की मांग की थी, किंतु तत्कालीन नेहरू सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

अब यहां दो सवाल खड़े होते हैं। एक तो यह कि एक मुगलकालीन इमारत से सुभाष चंद्र बोस का ऐसा क्या संबंध है कि ऐसा नामांतरण किया जाए? दूसरा यह कि नाम बदले के पीछे क्या कारक कार्य करते हैं? आमतौर पर इतिहास को देखने का नजरिया, विचारधारा तथा अस्मिता के नए रूपों को ग्रहण करने जैसे कारक नामांतरण के लिए जिम्मेदार होते हैं। दुनियाभर में ऐसे उदाहरण मौजूद हैं।

इस संदर्भ में कुछ उदाहरण देखें तो ‘कुस्तुनतुनिया’ शहर जो एक ईसाई कांस्टेनटाइन के नाम पर था, उसे इस्लामी चरित्र के अनुरूप बदलकर इस्तांबुल कर दिया गया। इसी प्रकार देशज संस्कृति के प्रतिनिधित्व के नाम पर दो कनाडाई शहरों बायटान और यार्क का नाम बदलकर क्रमश: ओटावा और टोरंटो किया गया। सोवियत संघ के विघटन के बाद साम्यवादी नेताओं के नाम पर बने शहरों लेनिनग्राद और स्टालिनग्राद को बदलकर क्रमश: सेंट पीटर्सबर्ग और वोल्गोग्राद कर दिया गया। कहने का भाव यह है कि वैश्विक स्तर पर शहरों, इमारतों आदि के नाम बदलते रहे हैं, लेकिन इन सबके पीछे एक स्पष्ट कारण होता है। अब क्या लाल किले को नेताजी फोर्ट करने के पीछे कोई मजबूत कारण है?

नेताजी ने अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध जो फौज संगठित की उन्हें प्रेरणा देने के लिए उन्होंने ‘दिल्ली चलो’ का ऐतिहासिक नारा दिया। दिल्ली पर धावे का अर्थ था लाल किले पर कब्जा। प्रकारांतर से लाल किले पर कब्जे का अर्थ देश के केंद्र पर काबिज होने की मंशा ही थी। इस तरह नेताजी ने लाल किले पर फतह के मनोवैज्ञानिक महत्व को सर्वाधिक सटीकता से समझा। ‘आजाद हिंद फौज’ पर चला ट्रायल जिसे लाल किला मुकदमा भी कहते हैं, यह भी इसी इमारत से जुड़ा हुआ है। इस मुकदमे ने राष्ट्रीय चेतना को एकीकृत स्वर प्रदान किया था।

वस्तुत: जिस प्रकार लाल किला सदियों से शक्ति एवं प्रभुसत्ता का प्रतीक बना रहा, उसी तरह नेताजी की छवि भी एक ऐसे ही सशक्त व्यक्ति की रही है। वो नेताजी ही थे जिन्होंने अंग्रेजी सत्ता को उनके ही तरीकों से चुनौती दी। इस प्रकार सत्ता के प्रतीक रहे लाल किले और नेताजी के बीच एक स्पष्ट संबंध जुड़ता है। अगर इस नामांतरण को ‘मुगल- गैर मुगल’ की संकिर्णता में न देखकर राष्ट्रीय इमारत को नया अर्थ देने की व्यापकता में देखा जाए तो नेताजी फोर्ट एक सुसंगत अर्थ रखता है। सबसे बढ़कर यह कि लाल किला किसी मुगल शासक के नाम पर नहीं है और न ही यह किसी धाíमक पहचान को धारण करता है, लाल बलुआ पत्थर से बने होने के कारण इसे लाल किला कहा जाता है। इसलिए यह नामांतरण किसी सांस्कृतिक पहचान से विरोध नहीं रखता है।

अब यहां एक नजर लाल किले के इस रूप पर डालना जरूरी है कि यह किस प्रकार राजनीतिक प्रभुसत्ता के केंद्र के रूप में महत्व रखता है, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि इसे नेताजी फोर्ट कहना क्यों जायज हो सकता है! वस्तुत: 17वीं सदी में शाहजहां द्वारा निíमत लाल किला न केवल मुगल प्रभुसत्ता व शक्ति का प्रतीक था, बल्कि कालांतर में यह राष्ट्रीय एकीकरण और ध्रुवीकरण का भी केंद्र बना।

विदेशी आक्रमणकारी के रूप में तुर्क, ईरानी व अंग्रेजों ने अगर दिल्ली पर आक्रमण किया तो अपनी वैधता व शक्ति प्रदर्शन के लिए लाल किले को ही केंद्र चुना। ईरानी बादशाह नादिरशाह तो लाल किले में मयूर सिंहासन पर बैठकर ही अपनी जीत का अनुभव कर पाया। इतना ही नहीं, वर्ष 1857 में स्वतंत्रता के पहले आंदोलन से लेकर आजाद हिंद फौज के सिपाहियों तक ने दिल्ली के लाल किले से एक जुड़ाव महसूस किया।

सत्ता के केंद्र के रूप में लाल किला एक प्रतीकात्मक महत्व रखता है। यह धारणा इस बात से भी पुष्ट हो जाती है कि अंग्रेजों ने लाल किले के इस प्रतीकात्मक महत्व को नष्ट करने की हरसंभव कोशिश की। वर्ष 1911 में जब दिल्ली दरबार का आयोजन हुआ तब महारानी विक्टोरिया ने लाल किले से ही इसकी ऐतिहासिक घोषणा की थी और जब देश आजाद हुआ तो नेहरू ने लाल किले को ही ध्वजारोहण के लिए चुना। तब से यह परंपरा चली आ रही है।

अत: जब यह स्पष्ट है कि अलग-अलग समयों में यह इमारत राजनीतिक शक्ति को ही प्रतिबिंबित करता रहा तो इस प्रतीक को किसी ऐसे व्यक्तित्व से संबोधित करना, जिसने अपने जनों के लिए यही शक्ति चाही, अतिशयोक्ति नहीं है। खासकर जब हर स्वतंत्रता दिवस को यह इमारत ही नए भारत के स्वप्न का पहला साक्षी बनता है तो इसे आधुनिक अर्थ देने में कोई बुराई नहीं है। इतिहास की अपनी जटिलताएं होती हैं, लेकिन यह कभी भी अपने लोगों को नए अर्थ ग्रहण करने से नहीं रोकती। इस नामांतरण से मुगल काल में बनी इस इमारत का इतिहास कहीं से खंडित नहीं होगा, बल्कि नए अर्थ ही ग्रहण करेगा।

Leave a Reply

error: Content is protected !!