रेणु की संपूर्ण रचनाएं संघर्ष की पृष्ठभूमि में लिखी गई महत्वपूर्ण कथा है-कुलपति प्रो. डॉ. संजीव कुमार शर्मा।
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
हिंदी विभाग, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार के तत्वावधान में ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम श्रृंखला के अंतर्गत ‘फणीश्वरनाथ रेणु के साहित्य में गाँव’ विषयक राष्ट्रीय परिसंवाद कार्यक्रम का आयोजन आभासीय मंच के माध्यम से किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति आदरणीय प्रो.संजीव कुमार शर्मा ने की। प्रति-कुलपति प्रो.जी.गोपाल रेड्डी का सान्निध्य सभी को प्राप्त हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में प्रो.योगेंद्र प्रताप सिंह(आचार्य, हिंदी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज) विशिष्ट अतिथि के रूप प्रो.जितेंद्र श्रीवास्तव(आचार्य, हिंदी विभाग, इंदिरा राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली) एवं मुख्य वक्ता के रूप में प्रो.सतीश कुमार राय(अध्यक्ष, हिंदी विभाग, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर) के वक्तव्य से हम सभी समृद्ध हुए।
अपने अध्यक्षीय भाषण में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. संजीव कुमार शर्मा जी ने बताया कि रेणु का गांव हिंदी कथा साहित्य में भविष्य के गांव के प्रादुर्भाव की कथा है. रेणु के जीवन के दो पक्ष हैं जो पहला पक्ष है वह 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी भाग लेने की कथा को चित्रित करता है और दूसरा पक्ष आपातकाल के समय 1975 में गांव की पूरी जनता के साथ जेल जाते हुए है।साहित्य में कर्म के लिए उन्हें जो पदम श्री का पुरस्कार मिलता है वह पटना के गांधी मैदान में वह पापकर्म कह कर लौटा देते हैं। बिहार के दो मूर्धन्य साहित्यकार नागार्जुन और रेणु जी पर अभी बहुत कुछ काम होना बाकी है इन पर समाजिक वैज्ञानिक अध्ययन होना चाहिए।
प्रति कुलपति और विश्वविद्यालय में आजादी का अमृत महोत्सव के अध्यक्ष प्रो. जी. गोपाल रेड्डी ने अपने उद्बोधन में बताया कि देश की कई वीर सपूतों ने अपने प्रयासों से देश को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराया है और इसे हमें सदैव याद रखना चाहिए। इस तरह के कार्यक्रमों से हमें उनके बारे में जानने-सुनने-समझने का मौका मिलता है।विश्वविद्यालय के परिसर में देश के लोक नायकों के नाम से कई स्थानों को चिन्हित किया गया है जिसे हम याद करते हुए उनके मार्गों पर आगे बढ़ने की प्रेरणा ले सकते हैं।
वहीं परिचर्चा का प्रारंभ करते हुए हिंदी विभाग के आचार्य डॉक्टर अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि रेणु, साहित्य में अपनी लेखनी के माध्यम से गांव की आस्था को लेकर आते हैं गांव के प्रति उनका कभी मोहभंग नहीं होता।विचार से मोह भंग होने की स्थिति में भी वह गांव को कभी भी साहित्य से दूर नहीं होने देते। गावों को साहित्य के केंद्र में में रखते हुये वे समाज के कई आयामों का चित्रण करते हैं.
स्वागत वक्तव्य देते हुए परिसंवाद कार्यक्रम के संयोजक एवं अध्यक्ष, हिंदी विभाग, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार ने बताया कि गांव की जटिलता रेणु जी के लेखन में उभरकर आए हैं उनकी कहानियों में गांव के सृजन-विघटन, कुंठा,संत्रास, उल्लास,ज्ञान,परिचर्चा का अनूठा संयोजन है।रेणु जी बिहार के लोक प्रतिनिधि साहित्यकार हैं। रेणु जी ने गांव की प्रवाह में कथा को साहित्य के माध्यम से जन-संस्कृति का विषय बनाया है उनकी गाथा उस समुद्र के बूंद की भांति हैं जिसमें जीवन-संघर्ष दुख-दर्द, हर्ष- विषाद,आदर्श-यथार्थ, नवीन-पुरातन का अभूतपूर्व संयोजन है जो साहित्य रूपी गागर में सागर भर दिया है।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. सतीश कुमार राय ने बताया कि प्रासंगिक विषयों को परिचर्चा के केंद्र में विश्वविद्यालय ने रखा है इसके लिए मैं आयोजकों को धन्यवाद देता हूं।रेणु जी ने 1936 में लिखना प्रारंभ किया, 1944 में उनकी कहानी बटबाबा छपी, इसमें गांव के लोक संस्कृति का चित्रण मिलता है, जबकि 1954 में मैला आंचल आया, रेखाचित्र विदापत नाच में गांव का वर्णन है साथ ही उनकी पहली कहानी संग्रह ठुमरी है यह लोक संगीत है, रेणु गांव के उत्सव धर्मी संस्कृति के चितेरा है,हृदय परिवर्तन प्रक्रिया गांव की संस्कृति-प्रकृति से आता है। आजादी के बाद गांव की बदलती संस्कृति की ओर रेणु जी ने अपने उपन्यास परती परिकथा के माध्यम से किया है मानवीय हृदय की अतल गहराई को साहित्य के माध्यम से उन्होंने टटोला है, शहरी जीवन कैसे हमारे गांव की प्रकृति को धुंधला करने में लगे हैं, गांव कैसे बदल रहा है यह उनके बाद के उपन्यासों में है।गांव में सहजता, आत्मीयता, भोलापन है, गांव प्रेम का संदेश देते हैं, गांव में उत्सव धर्मी परंपरा की गूंज है। प्रेम ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है,उनकी कहानियों में निष्ठा है प्रेम है समर्पण है उत्सव है उल्लास है। सच में रेणु जी आजादी के बाद के प्रेमचंद है।
जबकि कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रो.जितेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि गांव में आमूलचूल परिवर्तन के बिना भारत का कायाकल्प नहीं हो सकता। राष्ट्रपिता के नाम पर यह विश्वविद्यालय उनके गांव विषय पर परिचर्चा कर रहा है,जो अति सराहनीय है।रेणु में स्थानीयता है,जो विश्व की सृष्टि है, दृष्टि है।गहराई से देखने पर पता चलता है कि उनके पास गहरी पीड़ा और करुणा से उपजा एक विजन है।रेणु गांव की मनः स्थिति के प्रमाणित प्रवक्ता है। गांव में जाति व्यवस्था को संपूर्ण रेखांकन रेणु ने किया है। आजादी के बाद के भारत के मिजाज को व्यक्त करने वाले रेणु सचमुच में प्रमुख कथाकार हैं, रेणु की कथा गांव की रक्त मज्जा है।
वही कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफ़ेसर योगेंद्र प्रताप ने बताया कि भारत गांवों का देश है, अब इस पर चर्चा कम ही होती है।गांव में हमारा स्वत्व बसता है। गांव को ढूंढने का काम गांधीजी ने किया इसके लिए उन्होंने वर्धा में सेवाग्राम भी बनाया। आजादी के बाद गांव को केंद्र में लाकर समझने का प्रयास किया जाता है इसमें रेणु जी एक हैं, इनकी कथा में गांव की एक नई समझ देखने को मिलती है ।रेणु गांव को बदलते नहीं वरन बदलते गांव को अपने रचना के केंद्र में रखते हैं। रेणु जी गांव के परतों, प्रवाह और आंतरिक ऊर्जा को बखूबी समझते हैं। गांव में मलेरिया जैसी महामारी बाढ़ की विभीषिका का चित्रण रेणु ने किया है।रेणु के रिपोतार्ज उनकी केंद्रीय विधा है इसके माध्यम से हम भारतीय गांव को समझ सकते हैं।
कार्यक्रम के अंत में हिंदी विभाग के सह आचार्य डॉक्टर अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने धन्यवाद ज्ञापन किया जिसमें उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रति कुलपति के प्रति आभार जताया जिन्होंने इस तरह के कार्यक्रमों से हमेशा एक नए रूप में विश्वविद्यालय को आगे ले जाने की प्रेरणा देते रहे हैं।साथ ही उन्होंने कहा की मुख्य अतिथि ने अपने उद्बोधन में रेणु के केंद्रीय लेखन रिपोतार्ज पर विशेष बल दिया।जिससे हम उनके सामाजिक वैज्ञानिक अध्ययन कर सकते है,जबकि विशिष्ट अतिथि ने बताया कि मार्क्सवाद से भी जुड़ कर रेणु ने अपने अनुभव पर भरोसा किया। रेणु गांव की फटी बिवाईयों का व्याख्यान करते हैं।जबकि मुख्य वक्ता ने रेणु के ऐतिहासिक विकास यात्रा पर विस्तार से प्रकाश डाला और कहा कि रेणु के प्रेम में दृष्टि हैं।
विभागाध्यक्ष का आभार जताते हुए डाॅ अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि उन्होंने इस कार्यक्रम के लिए मुख्य भूमिका भूमिका निभाई, जिसके लिए उनका आभार, साथ ही हिंदी विभाग के शोधार्थी साथियों बिना बड़ाईक, विकास गिरी, सुजाता कुमारी, अशर्फी लाल एवं मनीष कुमार भारती ने सम्मानित अतिथि-शिक्षकों का व्यवस्थित परिचय प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग की शोधार्थी रश्मि सिंह ने किया,विश्वविद्यालय के सभी मित्रों एवं तकनीकी मित्रों का भी हृदय से आभार।