अमेरिकी विदेश सचिव का भारत दौरा और अफगानिस्तान.

अमेरिकी विदेश सचिव का भारत दौरा और अफगानिस्तान.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अमेरिकी विदेश सचिव एंटनी ब्लिंकेन के भारत दौरे का पहला मकसद अफगानिस्तान की बदलती परिस्थिति से संबद्ध था कि भारत इस मसले से जुड़ा रहे. भारत भी अफगानिस्तान को लेकर चिंतित है. अमेरिका के साथ भारत ने भी अफगानिस्तान के विकास और सुरक्षा व्यवस्था की बेहतरी में बहुत योगदान दिया है. अमेरिका यह जानना-समझना चाहता है कि उसके वहां से हटने के बाद भारत आगे क्या भूमिका निभा सकता है.

इस दौरे का दूसरा अहम मुद्दा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चार देशों- अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया- का समूह क्वाड था. इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता अमेरिका की प्रमुख चिंताओं में है. उल्लेखनीय है कि ब्लिंकेन ने इस यात्रा में यह भी स्पष्ट किया है कि क्वाड कोई सैन्य गठबंधन नहीं है. पहली बार यह स्पष्टीकरण अमेरिका की ओर से दिया गया है. इस संबंध में बाइडेन प्रशासन का रुख ट्रंप प्रशासन से बिल्कुल अलग है.

मुझे लगता है कि क्वाड को लेकर बाइडेन प्रशासन की नीति का विस्तार हो रहा है. जहां तक भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों की बात है, तो अमेरिकी विदेश सचिव का यह कहना महत्वपूर्ण है कि दुनिया में ऐसा और कोई देश नहीं है, जिसके साथ हमारे संबंध भारत जैसे घनिष्ठ हों. पिछले ढाई दशक से अमेरिका विभिन्न क्षेत्रों में भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश में है. इसके अलावा कोरोना महामारी की बड़ी चुनौती से निबटने की रणनीति भी इस यात्रा का अहम विषय थी.

जब अमेरिकी विदेश सचिव भारत के दौरे पर थे, उसी समय तालिबान का एक प्रतिनिधिमंडल मुल्ला बरादर के नेतृत्व में चीन के विदेश मंत्री से मुलाकात कर रहा था. यह एक अहम घटना है और इसके बारे में भी चर्चा जरूर हुई होगी. हालांकि इस मुलाकात पर ब्लिंकेन ने यह कहा है कि चीन और अन्य क्षेत्रीय शक्तियां जब तक रचनात्मक भूमिका निभा रही हैं, उनका स्वागत है, लेकिन भारत के लिए अफगानिस्तान से जुड़ी घटनाएं रणनीतिक चुनौती बनती जा रही हैं.

बहरहाल, विदेश सचिव के रूप में ब्लिंकेन का यह पहला भारत दौरा था, लेकिन हाल में अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन और राष्ट्रपति बाइडेन के जलवायु परिवर्तन पर विशेष दूत जॉन केरी भारत की यात्रा कर चुके हैं. इन सभी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाकात भी हुई है और उनकी अमेरिका यात्रा की बात भी चल रही है. यह यात्रा संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के हवाले से या द्विपक्षीय भी हो सकती है या क्वाड देशों के नेता आमने-सामने भी बैठ सकते हैं.

अमेरिकी विदेश सचिव के दौरे से चीनी मीडिया की असहजता की जहां तक बात है, तो हमें समझना चाहिए कि दलाई लामा से अमेरिका की सहानुभूति कोई नहीं बात नहीं है. तिब्बत की निर्वासित सरकार को अमेरिका व्हाइट हाउस में भी आमंत्रित कर चुका है. जब ब्लिंकेन ने सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों से मुलाकात की, तो उसमें तिब्बत हाउस के प्रमुख ने भी भागीदारी की. इसे एक सांकेतिक मुलाकात माना जाना चाहिए.

किसी भी समय ब्लिंकेन ने चीन का नाम नहीं लिया और उनके विभाग की ओर से यह कहा भी गया कि यह बैठक किसी देश के विरुद्ध नहीं थी. तो, चीन की मीडिया तो वह कहेगा ही, जो कह रहा है और अमेरिकी नीति भी चीन को नियंत्रित करने की है. इस संबंध में अमेरिका की ओर से लगातार बयान भी आये हैं. राष्ट्रपति ट्रंप के समय तो स्थिति बहुत बिगड़ गयी थी, पर मुझे लगता है कि चीन के संदर्भ में बाइडेन प्रशासन संभवत: प्रतिस्पर्द्धा और सहयोग की नीति पर अग्रसर है, ताकि संबंध टूट न जाएं. यह अब तक एक प्रकार से चीन के प्रति भारत की नीति भी रही है.

कुछ दिन पहले अमेरिकी उप विदेश सचिव ने चीन की यात्रा की है. बड़ी शक्तियों के बीच ऐसा चलता रहता है. अमेरिका और चीन दोनों ही यह नहीं चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच संवादहीनता की स्थिति पैदा हो. भारत दौरे में ब्लिंकेन का यह कहना कि क्वाड एक सैन्य गठबंधन नहीं है, मुझे लगता है कि यह एक तरह से चीन को आश्वस्त करने की कोशिश है.

इस यात्रा में पाकिस्तान पर व्यापक चर्चा अवश्य हुई होगी. चाहे अफगानिस्तान हो या भारत हो, पाकिस्तान की भूमिका बेहद नकारात्मक और खतरनाक रही है. यह जरूर है कि भारत और पाकिस्तान के बीच अभी युद्धविराम की स्थिति है, लेकिन हमें यह समझना होगा कि ऐसा इसलिए है कि अभी पाकिस्तान की प्राथमिकता अफगानिस्तान है.

एक प्रकार से पाकिस्तान ने कुछ अवकाश लिया है क्योंकि वह दूसरी सीमा पर व्यस्त है. दूसरी उल्लेखनीय बात यह है कि कुछ ही दिनों में पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आइएसआइ के प्रमुख अमेरिका जा रहे हैं. बीते दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी कहा था कि भारत के साथ बातचीत होनी चाहिए, लेकिन उन्होंने बातचीत की जो शर्तें रखी हैं, वे बेहद मूर्खतापूर्ण हैं.

मुझे नहीं लगता है कि दोनों देशों के बीच बातचीत की संभावना अभी है. अभी दुशांबे बैठक में हमारे विदेश मंत्री भी थे और पाकिस्तान के भी. शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भी दोनों देशों के रक्षा मंत्री मौजूद थे. अगर पाकिस्तान भारत के विरुद्ध आतंकवाद का सहारा लेता रहेगा और कश्मीर को मुद्दा बनाता रहेगा, तो मुझे नहीं लगता है कि परस्पर संबंधों में कोई नरमी आ सकेगी.

ये सब बातें भारत ने अमेरिका के सामने रखी होगी. आतंक को आर्थिक मदद देने के मामले में कार्रवाई का सामना करने से चीन जैसे मित्र देशों की मदद से पाकिस्तान हर बार बच जाता है. भारत की ओर से ब्लिंकेन के सामने यह जरूर कहा गया होगा कि आतंकवाद को आर्थिक मदद को नियंत्रित किया जाना चाहिए. इस संबंध में अफगानिस्तान का उदाहरण सबके समक्ष है और वहां आगे की विफलताओं में भी पाकिस्तान का पूरा हाथ रहेगा.

जब भी बड़ी ताकतों से बातचीत होती है, तो तमाम मुद्दों पर विस्तार से चर्चा होती है. भारत यह नहीं कहता कि अमेरिका या कोई और द्विपक्षीय मामलों में हस्तक्षेप करे, लेकिन सारी स्थिति से उन्हें अवगत जरूर कराया जाता है. बड़ी ताकतें यही चाहती हैं कि विवाद न बढ़े क्योंकि इससे उनकी समस्या भी बढ़ जाती है.

अमेरिका हमेशा से कहता रहा है कि भारत और पाकिस्तान को द्विपक्षीय बातचीत करनी चाहिए. ऐसे में हमारी तरफ से यह कहा जाता है कि हमारे लिए ये बातें लाल रेखा हैं और दूसरा पक्ष अगर उसका उल्लंघन करता है, तो इसे स्वीकार नहीं किया जायेगा. हम उम्मीद कर सकते हैं कि जब पाकिस्तानी प्रतिनिधि वाशिंगटन जायेंगे, तो अमेरिका उनके सामने भारत का पक्ष भी रखेगा.

Leave a Reply

error: Content is protected !!