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ओलम्पिक गोल्ड मेडल पर मशरक में खिलाड़ियो ने तिरंगें के साथ दौड़ लगाकर मनाया जश्न

ओलम्पिक गोल्ड मेडल पर मशरक में खिलाड़ियो ने तिरंगें के साथ दौड़ लगाकर मनाया जश्न

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स्वर्णिम दौड़ में शामिल खिलाड़ियो का सरकारी उपेक्षा से छलके आंसू

श्रीनारद मीडिया‚ विक्की बाबा‚ मशरक‚ सारण (बिहार)

 

मशरक (सारण) टोकियो ओलम्पिक में नीरज चोपड़ा के भाला ने स्वर्णिम दूरी तय कर भारत को स्वर्ण पदक की संख्या दोहरे अंक में करते ही कोरोनाकाल में लगातार घरो में कैद खिलाड़ी तिरंगा के साथ रविवार को मशरक की सड़को पर उतर दौड़ कर जश्न मनाया और एक दूसरे को मिठाई खिलाकर खुशी का इजहार किया। हैंडबॉल एवं एथलेटिक्स के दर्जनो राष्ट्रीय खिलाड़ी प्रशिक्षक एवं खेल प्रेमियों संग थाना चौक , अस्पताल चौक से लेकर डाकबंगला चौक सिद्धिदात्री मंदिर तक दौड़ लगा जयघोष किया।स्वर्णिम दौड़ में सचिव सह प्रशिक्षक संजय कुमार सिंह , थानाध्यक्ष राजेश कुमार , दारोगा उमाशंकर राम , जमादार ओम प्रकाश यादव, आर्मी कैंटीन संचालक व बंगरा मुखिया प्रत्याशी रंजन कुमार सिंह,राष्ट्रीय हैंडबॉल खिलाड़ी रितेश कुमार सिंह , अभिषेक कुमार सिंह, थल सेना के जवान राष्ट्रीय खिलाड़ी कुंदन सिंह , नारायण कुमार , आकाश कुमार , डब्लू कुमार , युवराज सिंह , प्रिंस कुमार , बबलू कुमार, अनीश कुमार , निधि कुमारी , पुष्पा कुमारी , नेहा कुमारी , आरती कुमारी , मनीषा कुमारी शामिल रहे। भारत के लिए हरियाणा के खिलाड़ी के इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर खुश सारण के खिलाड़ी की आंखों में बेहतर प्रशिक्षण एवं संसाधन की कमी से ओलम्पिक जैसे खेलो की तैयारी नही कर पाने का दर्द भरा आंसू भी दिखा। वाजिब भी है क्योंकि नई शिक्षा नीति 2020 में खेल को विषय मे शामिल करने के बाद भी बिहार के स्कूली शिक्षा में शारीरिक शिक्षा एवं खेल हाशिए पर है । स्कूलो में खेल शिक्षक नही और ना ही विभाग द्वारा प्रशिक्षक की नियुक्ति ही । राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता मे पदक पाने वाले खिलाड़ियो को ना सम्मान मिल पाता है और ना ही संसाधन । सरकारी फाइलों में सबकुछ सिमटकर रह जाता है । खेल संघ भी खिलाड़ियो की पकड़ से दूर है।ओलम्पिक शुरू होते है कई दिग्गज खिलाड़ियो एवं प्रशिक्षक ने सोशल साइट पर ट्यूट कर लिखा कि जहाँ स्कूलो में सप्ताह में खेल के लिए एक घण्टी दी जाए वहाँ ओलम्पिक में पदक की उम्मीद आखिर कैसे ? काश , खेल एवं खिलाड़ियो के लिए ग्रामीण स्तर पर प्रशिक्षण एव प्रोत्साहन की व्यवस्था हो पाती तो पदकों का सूखा नही होता और सारण के साथ बिहार भी ओलंपियन देने में आगे होता।

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