शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद  खाना चाहिए या नहीं ! जाने क्या कहते है  आचार्य 

शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद  खाना चाहिए या नहीं ! जाने क्या कहते है  आचार्य

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पढ़े किस पदार्थ के बने शिवलिंग पर चढ़ाये प्रसाद खाने चाहिए

श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क :

हिन्दू रीतिरिवाज के अनुसार से शिवलिंग पर पूजा के दौरान चढ़ाये गए प्रसाद को खाने को लेकर तरह तरह की धारणाये है. इस सम्बद्ध में  आचार्य पं   मनीष तिवारी  ने बताया कि किस शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद नही खाना चाहिए ?
शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद क्यों नहीं खाना चाहिए? आचार्य पं श्री मनीष तिवारी जी ने बताया कि
शिव पुराण के अनुसार शिव जी पर चढ़ाया गया प्रसाद ग्रहण करने से व्यक्ति के समस्त पाप मिट हो जाते हैं, किंतु कुछ अन्य धार्मिक मान्यताओं में शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद ग्रहण करने से मना किया जाता है।

पूजा में भगवान तथा देवों को चढ़ाया गया प्रसाद अत्यंत पवित्र, रोग-शोक नाशक तथा भाग्यवर्धक माना गया है, किंतु शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद ग्रहण करने से मना किया जाया है। यहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि केवल कुछ परिस्थितियों में ही इस प्रसाद को ग्रहण करना निषेध है, कुछ शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद ग्रहणीय है। आचार्य श्री ने बताया कि

ऐसी मान्यता है कि भूत-प्रेतों का प्रधान माना जाने वाला गण ‘चण्डेश्वर’ भगवान शिव के मुख से ही प्रकट हुआ था, वह हमेशा शिवजी की आराधना में लीन रहता है और शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद उसी के हिस्से में जाता है। इसलिए अगर कोई इस प्रसाद को खाता है, तो वह भूत-प्रेतों का अंश ग्रहण कर रहा होता है। यही वजह है कि शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद-नैवेद्य खाने से मना किया जाता है, किंतु कुछ खास शिवलिंग पर चढ़ाया प्रसाद खाया जा सकता है…

कौन सा प्रसाद ग्रहण किया जा सकता है?

“शिव पुराण (विद्येश्वरसंहिता)” के बाइसवें अध्याय में इसकी स्पष्ट जानकारी मिलती है, जो इस प्रकार है:

“चण्डाधिकारो यत्रास्ति तद्भोक्तव्यं न मानवै:।

चण्डाधिकारो नो यत्र भोक्तव्यं तच्च भक्तित:।।”

अर्थ – जहां चण्ड का अधिकार हो, वहां शिवलिंग पर अर्पित प्रसाद मनुष्यों को ग्रहण नहीं करना चाहिए। किंतु जो चण्ड के अधिकार में नहीं है, शिव को अर्पित वह प्रसाद ग्रहण किया जा सकता है।

शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार आप शिवलिंग का प्रसाद ग्रहण करें या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि शिवलिंग किस धातु या पदार्थ से बना है। साधारण मिट्टी, पत्थर अथवा चीनी मिट्टी से बने शिवलिंग पर चढ़ाया गया भोग प्रसाद रूप में ग्रहण नहीं करना चाहिए। किंतु अगर शिवलिंग धातु, बाणलिंग (नर्मदा नदी के तट पर पाया जाने वाला एक पत्थर) से बना है अथवा पारद शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद सर्वथा ग्रहणीय होता है। यह चंडेश्वर का अंश ना होकर महादेव के हिस्से में होता है और इसे ग्रहण करने से व्यक्ति ना केवल दोषमुक्त रहता है बल्कि उसके जीवन की बाधाएं भी नष्ट होती हैं।

इसके अतिरिक्त अगर किसी शिवलिंग की शालिग्राम के साथ पूजा की जाती है, तो वह चाहे किसी भी पदार्थ से बना हो, उसपर अर्पित किया गया प्रसाद दोषमुक्त होता है और उसे ग्रहण किया जा सकता है। साथ ही शिवजी की साकार मूर्ति पर चढ़ाया गया प्रसाद भी पूर्ण रूप से ग्रहणीय होता है और व्यक्ति को शिव कृपा प्राप्त होती है।

इसके अलावा “स्वयंभू लिंग” अर्थात भक्तों के कल्याण के लिए स्वयं प्रकट हुए सभी शिवलिंग तथा भगवान शिव को समर्पित सभी बारह ज्योर्तिलिंग (सौराष्ट्र का सोमनाथ, श्रीशैल का मल्लिकार्जुन, उज्जैन का महाकाल, ओंकार का परमेश्वर, हिमालय का केदारनाथ, डाकिनी का भीमशंकर, वाराणसी का विश्वनाथ, गोमतीतट का त्र्यम्बकेश्वर, चिताभूमि का वैद्यनाथ, दारुकावन का नागेश्वर, सेतुबन्ध का रामेश्वर और शिवालय का घुश्मेश्वर) चण्ड के अधिकार से मुक्त माने गए हैं, यहां चढ़ाया प्रसाद ग्रहण करने व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

सिद्ध किए गए शिवलिंग: शास्त्रों के अनुसार जिन शिवलिंगों की उपासना करते हुए किसी ने सिद्धियां प्राप्त की हों या जो सिद्ध भक्तों द्वारा प्रतिष्ठित किये गए हों (उदाहरण के लिए काशी में शुक्रेश्वर, वृद्धकालेश्वर, सोमेश्वर आदि शिवलिंग जो देवता अथवा सिद्ध महात्माओं द्वारा प्रतिष्ठित माने जाते हैं), उसपर चढ़ाया प्रसाद भी भगवान शिव की कृपा का पात्र बनाता है।

इसके अतिरिक्त शिव-तंत्र की दीक्षा लेने वाले शिव भक्त सभी शिवलिंगों पर चढ़ा प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं। उनके लिए भगवान शिव के हर स्वरूप पर चढ़ाया गया प्रसाद ‘महाप्रसाद’ समझा जाता है और ग्रहणीय है।

प्रसाद जिसे आप ग्रहण न कर सकें

भगवान को अर्पित किया गया प्रसाद हर रूप में आदरणीय होता है, इसलिए जब इसे ग्रहण ना करने की बात आती है तो मन में संशय होना भी आवश्यक है कि आखिर इसका क्या करें। क्या इसे किसी अन्य को देना चाहिए या फेंकना चहिए? वस्तुत: यह दोनों ही गलत माना जाता है। फेंकना भी जहां प्रसाद का अपमान कर भगवान के कोप का भाजन बनाता है, ग्रहण ना किया जा सकने वाला प्रसाद किसी और को देना भी पाप का भागीदार बनाता है। इसलिए इस प्रसाद को या किसी भी प्रसाद को जिसे आप खा नहीं सकते, किसी नदी, तालाब या बहते जल के स्रोत में प्रवाहित कर देना चाहिए।

आचार्य पं मनीष तिवारी बेलवासा
आचार्य पं राजू पाण्डेय जी।

 

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