तालिबान को अपना दुश्मन क्यों मानता है आइएस-के आतंकी?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
काबुल एयरपोर्ट के बाहर गुरुवार को हुए सिलसिलेवार दो आतंकी हमलों की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट के खोरासन ग्रुप (आईएस-के) ने ली है। एक समय था जब इस ग्रुप की दहशत से पूरा अफगानिस्तान खौफ खाता था। हालांकि, ये भी सच्चाई है कि इस्लामिक स्टेट हमेशा से ही बेहद क्रूर आतंकी संगठन रहा है।
पहले से थी हमले की आशंका
आपको बता दें कि इस हमले को लेकर अमेरिका और ब्रिटेन को पहले से आशंका थी। अमेरिका ने पहले ही इस बात की आशंका जताई थी कि आइएस काबुल एयरपोर्ट को अपना निशाना बना सकता है। बीते दो दशकों की बात करें ये ग्रुप अमेरिका की मौजूदगी के बाद काफी सीमित होकर रह गया था। लेकिन अब जबकि अमेरिका ने अपनी वापसी की पूरी कवायद की हुई है और उसका नियंत्रण अन्य इलाकों से खत्म हो गया है, तो ये ग्रुप एक बार फिर से उभर कर सामने आ रहा है।
आईएस-के का इतिहास
इस ग्रुप के इतिहास की बात करें तो इसका सीधा संबंध पाकिस्तान से है, जो खुद आतंकियों की जन्म भूमि है। जानकार मानते हैं कि ये ग्रुप अफगानिस्तान में पाकिस्तान से भागकर आने वाले तालिबानियों द्वारा गठित किया गया था। वर्ष 2014 कें अंत में ये ग्रुप अफगानिस्तान में सामने आया था। इस संगठन की शुरुआत करने वालों में कट्टरपंथी सुन्नी मुस्लिम थे। इस संगठन ने अपने शुरुआत ही पाकिस्तान से लगे सीमाई क्षेत्रों पर नियंत्रण और तालिबान पर हमले से की थी।
अमेरिका ने इस ग्रुप पर फेंका था मदर आफ आल बम
अप्रैल, 2017 में अमेरिका ने आइएस-के को निशाना बनाने के लिए पूर्वी अफगानिस्तान में अचिन जिले के ठिकाने पर मदर आफ आल बम कहे जाने वाला 20,000 पाउंड का बम फेंका था।
इस ग्रुप ने करवाए आत्मघाती धमाके
आइएस-के ग्रुप ने कई इलाकों में आत्मघाती विस्फोट को भी अंजाम दिया है। इसके अलावा सैकड़ों ग्रामीणों और कई रेड क्रास सदस्यों की नृशंस हत्या भी ये ग्रुप कर चुका है। आमतौर पर इस ग्रुप के निशाने पर भीड़ वाले इलाके होते हैं। यह आतंकी संगठन काबुल व अन्य शहरों में सरकारी ठिकानों और अन्य देशों के मिलिट्री बेस पर कई हमले कर चुका है।
तालिबान के खिलाफ भी है ये ग्रुप
आइएस-के ग्रुप तालिबान समेत पश्चिम समर्थित सरकार का भी दुश्मन रहा है। हालांकि इसका सीरिया और इराक में मौजूद इस्लामिक स्टेट से कोई सीधा संबंध नहीं है।
काबुल एयरपोर्ट पर आतंकी हमले के बाद आइएस और अलकायदा के विस्तार की आशंका जताई गई है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान शासन आने के बाद आतंकी संगठन आइएस और अलकायदा अपने को फिर स्थापित करेंगे।
रक्षा विशेषज्ञ पीके सहगल ने शुक्रवार को कहा कि निसंदेह अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद आइएस बड़े पैमाने पर अपने को फिर स्थापित करेगा। अमेरिका और नाटो को भी यह भय है कि तालिबान शासन में आइएस और अलकायदा अपने को मजबूत करेंगे और अफगानिस्तान समेत अन्य देशों की शांति एवं स्थिरता के लिए एक बड़ा खतरा बनेंगे। उन्होंने कहा कि इन आतंकी संगठनों का उभरना गंभीर खतरा पैदा करेगा और सभी देशों को एक होकर उस खतरे से निपटना होगा।
रक्षा विशेषज्ञ कैप्टन अनिल गौर ने आने वाले दिनों में अफगानिस्तान में नागरिक संघर्ष की आशंका जताई। उन्होंने कहा कि अमरुल्ला सलेह के अपने आप को अफगानिस्तान का केयरटेकर राष्ट्रपति घोषित करने के बाद देश में ‘सिविल वार’ की संभावना है, क्योंकि सलेह ने तालिबान का विरोध करने का निर्णय लिया है। गौर ने कहा कि 31 अगस्त के बाद अफगानिस्तान के हालात और खराब होने जा रहे हैं। कोई नहीं बता सकता कि वहां क्या होगा।
तालिबान ने पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और अब्दुल्ला अब्दुल्ला को उनके घर में कैद कर दिया है। उनके सुरक्षाकर्मी हटा दिए हैं। देश से पलायन करने की लोगों में होड़ मची है। अपने-अपने नागरिकों को कई देश निकालने में लगे हैं। हमारी सरकार भी अपने लोगों को निकालने में लगी है, क्योंकि कोई नहीं जानता कि 31 अगस्त के बाद अफगानिस्तान में क्या होगा।
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