Breaking

जातीय जनगणना को लेकर विभिन्न राय क्यों?

जातीय जनगणना को लेकर विभिन्न राय क्यों?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जातीय जनगणना के आंकड़ों का उपयोग केंद्र और राज्य सरकार नागरिकों के लिए बनाए जाने वाली योजनाओं और विकास आदि के लिए करती है। भारत में पिछली जनगणना वर्ष 2011 में की गई थी। जाति एक सच्चाई है। इसलिए जनगणना जाति के आधार पर जरूरी है। वहीं, कुछ का मानना है कि संविधान में जाति के आधार पर भेदभाव करने की मनाही है तो इस जातीय जनगणना को जायज कैसे ठहराया जा सकता है?

सभी जाति की गणना होनी चाहिए
पटना हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष वरीय अधिवक्ता योगेश चंद्र वर्मा का कहना है कि आखिर, जनगणना जाति के आधार पर करवाने में क्या बुराई है? सभी जाति की जनगणना की जानी चाहिए ताकि देश में रहने वाले सभी जातियों के लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का वास्तविक स्थिति का पता चल सके। जाति एक सच्चाई है। उन्होंने यह भी कहा कि फॉरवर्ड मेंटेलिटी के लोग जातीय जनगणना का विरोध कर रहे हैं। हालांकि, उन्होंने इस विषय में आर्थिक आधार को भी जोड़ने पर जोर दिया।

जनगणना आर्थिक आधार पर हो
पटना हाईकोर्ट के लॉयर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अजय कुमार ठाकुर का इस विषय पर कहना है कि जनगणना का आधार जातीय नहीं बल्कि आर्थिक होना चाहिए, ताकि समाज के सभी वर्गों के गरीब लोगों का समुचित विकास हो सके। सामाजिक तौर से पिछड़े लोगों को तो पहले से ही आरक्षण दिया जा रहा है। भारत का संविधान इस विषय पर चुप है। उन्होंने आगे बताया कि राज्य सरकार भी जनगणना करवाने के लिए स्वतंत्र है।

कानून भी जातीय जनगणना की इजाजत नहीं देता
जनगणना के विषय पर पटना हाईकोर्ट के बैरिस्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय सिंह का कहना है कि हम लोग भारत के संविधान के तहत काम करते हैं, जहां जाति के आधार पर भेदभाव की मनाही है तो फिर जातीय जनगणना को जायज कैसे ठहराया जा सकता है? उन्होंने बताया कि उनके ख्याल से कानून भी जातीय जनगणना की इजाजत नहीं देता है।

आर्थिक रूप से पिछड़े जातियों की गणना हो
बैरिस्टर एसोसिएशन के ही महासचिव मुकेश कांत का इस विषय में कहना था कि आर्थिक रूप से पिछड़े सभी जातियों की जनगणना की जानी चाहिए ताकि सभी तबके के गरीब लोगों के लिए सरकार योजना बना सके।

जनगणना से समाज में बंटवारा होता है
पटना सिविल कोर्ट के सरकारी अधिवक्ता शम्भू प्रसाद का इस विषय में कहना था कि जाति के आधार पर तो जनगणना कभी होनी ही नहीं चाहिए। इससे हिन्दू समाज में बंटवारा होता है। आगे, उनका यह भी कहना था कि देश की आजादी के 70 वर्षों से ज्यादा समय होने पर अब समय आ गया है कि अनुसूचित जाति – जनजाति को लेकर भी मतगणना में लिखे जाने की समीक्षा की जानी चाहिए और एक कास्टलेस सोसाइटी का निर्माण किया जाना चाहिए।

परिवार के सदस्यों की गणना की जानी चाहिए
पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल का भी मानना है कि इतने दिनों बाद अब अनुसूचित जाति- जनजाति वर्गों के बारे में जनगणना में लिखे जाने को लेकर समीक्षा की जानी चाहिए। जनगणना में परिवार के सदस्यों की गणना की जानी चाहिए और इसका आधार न ही आर्थिक होना चाहिए और न ही जाति।

Leave a Reply

error: Content is protected !!