Raghunathpur: शिक्षक और विद्यार्थी के बीच के रिश्ते, प्रेम व खुशी को मनाने का दिवस है 5 सितंबर
शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं -आचार्य चाणक्य
गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:॥
श्रीनारद मीडिया, प्रकाश चन्द्र द्विवेदी, रघुनाथपुर, सीवान (बिहार)
गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है, जिसके कई स्वर्णिम उदाहरण हमारे इतिहास में दर्ज हैं। आज का दिन गुरु वंदन का दिन होता है। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है। पूरे भारत में यह पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
वैसे तो व्यास नाम के कई विद्वान हुए हैं परंतु व्यास ऋषि जो चारों वेदों के प्रथम व्याख्याता थे, आज के दिन उनकी पूजा की जाती है। हमें वेदों का ज्ञान देने वाले व्यास जी ही थे। अत: वे हमारे आदिगुरु हुए। उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए हमें अपने-अपने गुरुओं को व्यास जी का अंश मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए। प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निऱ्शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन श्रध्दा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु की पूजा किया करते थे और उन्हें यथाशक्ति दक्षिणा अर्पण किया करते थे। इस दिन केवल गुरु की ही नहीं अपितु कुटुम्ब में अपने से जो बड़ा है अर्थात माता-पिता, भाई-बहन आदि को भी गुरुतुल्य समझना चाहिए।
“गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागु पांव, बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय”
कबीर दास द्वारा लिखी गई यह पंक्तियां जीवन में गुरु के महत्व को वर्णित करने के लिए काफी हैं। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। उनका ऋण हम किसी भी रूप में उतार नहीं सकते लेकिन जिस समाज में हमें रहना है, उसके योग्य हमें केवल शिक्षक ही बनाते हैं। यद्यपि परिवार को बच्चे के प्रारंभिक विद्यालय का दर्जा दिया जाता है लेकिन जीने का असली सलीका उसे शिक्षक ही सिखाता है। समाज के शिल्पकार कहे जाने वाले शिक्षकों का महत्व यहीं समाप्त नहीं होता क्योंकि वह ना सिर्फ आपको सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं बल्कि आपके सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों द्वारा रखी जाती है।
इसीलिए गुरु की महत्ता को समझते हुए हर वर्ष भारत में पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस यानि 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आभार: राजेश कुमार मिश्र ( शिक्षक ) नया प्राथमिक विद्यालय बिनटोला आदमपुर, रघुनाथपुर।
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