हिमालय का अस्थिर होना सभी के लिए संकट पैदा करेगा-अनिल जोशी.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

हिमालय के बिगड़ते हालात देखते हुए इसे समझने का यही समय है। देश का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं है जो हिमालय से सीधा प्रभावित न होता हो। अगर दक्षिण भारत और समुद्र तटीय राज्यों को भी देखें, तो वो भी किसी न किसी रूप से हिमालय से जुड़े हैं।

हिमालयी नदियां ही समुद्र को सींचती हैं और समुद्र में उठने वाला मानसून हिमालय से ही प्रभावित होता है। देश के दो छोरों में तापक्रम का अंतर मानसून का कारण बन जाता है। आस्था की दृष्टि से भी दक्षिण भारत और उत्तर भारत अपने चारधामों के कारण भी एक दूसरे से जुड़े हैं।

ये समझ शंकराचार्य की ही थी जिन्होंने देश को प्रकृति व प्रभु से जोड़कर देखा था। पूरे देश में दक्षिण भारत से चला मानसून 1600 किमी का रास्ता तय करते हुए विभिन्न जलवायु क्षेत्रों को सिंचिंत करते हुए अंतत: हिमालय में बरसता है। जहां वो हिमखंडों को जन्म देता है, जो जन जीवन के लिए जल का बड़ा स्रोत बन जाते हैं।

हिमालय से देश को सुरक्षा भी मिलती है। इससे जुड़े देशों के लिए सीमा व बाधाएं हिमालय से ही बन पाती हैं। इतिहास की सबसे पुरानी दो नदियां जो हिमालय के बनने के बाद देश के विकास में बड़ी भूमिका में रहीं, उनमें सिंधु और ब्रह्मपुत्र आती हैं। ये दोनों बड़ी नदियां हिमालय ही नहीं बल्कि कई राज्यों को सींचती हैं।

गंगा-यमुना जैसी बड़ी नदियों ने भी इस देश का इतिहास रचा है जो हिमालय की देन है। हिमालय देश की जैव विविधता का बड़ा हिस्सा है। यहां करीब 816 वृक्षों की प्रजातियां और 1600 से ज्यादा महत्वपूर्ण औषधियां है। विभिन्न तरह के पशु-पक्षी यहीं पनपे हैं और दुनिया के जैव विविधता के कुल हॉट स्पाट में एक इस क्षेत्र में है।

हिमालय अपने अपार प्राकृतिक उत्पादों से जनसेवा सदियों से करता आया है। इसके जन्म से पहले पूरा मध्य भारत एक शीतलहर की चपेट में था और यहां की परिस्थितियां पूरी तरह प्रतिकूल थीं। 5 करोड़ साल पहले जब हिमालय का जन्म हुआ उसके बाद पूरे मध्य भारत की परिस्थितियां बदल गईं। ये हिमालय ही था जिसने उत्तरी टुंड्रा प्रदेश से शीत लहर को भारत में प्रवेश करने से रोक दिया।

जब देश की आर्थिक व पारिस्थितिकी में इस महान पर्वत श्रेणी की ऐसी भूमिका रही हो, ऐसे में इसके प्रति मात्र हिमालय के ही लोगों का दायित्व नहीं बनता, बल्कि देश के हर व्यक्ति का धर्म है कि वो हिमालय से जुड़े। हम हिमालय का संरक्षण किसी सरकार या समाज विशेष पर न लादकर इसके प्रति अपने दायित्व को भी समझें।

पिछले दो-तीन दशकों से हिमालय के हालात बहुत अच्छे नहीं कहे जा सकते। अब एक ही मानसून हिमालय को तहस-नहस करने में जुट जाता है। इसके दो कारण लगते हैं। पहला, पिछले दो दशकों में लगातार मानसून की प्रवृत्ति का बदलना और दूसरा, इसके साथ बिना सोचे-समझे ढांचागत विकास की पहल, जो नुकसान को कई गुना बढ़ा देती है।

हमने हिमालय के साथ भी वैसा ही विकासीय व्यवहार करना शुरू कर दिया जैसा कि मैदानी इलाकों में करते आए हैं। हिमालयी राज्यों के बनने के बाद भी ऐसा कहीं प्रतीत नहीं हुआ कि ये हिमालय के राज्य हैं और इनमें विकास के नाम पर संवेदनशीलता बरती गई हो। इसीलिए धीरे-धीरे हिमालय कमजोर होता जा रहा है और इसकी स्थिरता पर बड़े सवाल खड़े होते जा रहे हैं।

हिमालय के अस्थिर होने का मतलब मात्र हिमालय के लोगों के लिए ही उत्पन्न व्यथा का सवाल नहीं होगा, बल्कि यह पूरे देश में किसी न किसी रूप में संकट पैदा कर देगा। हिमालय को देश का मुकुट भी कहा जाता है और सच तो यह है कि जो समाज अपने मुकुट को स्थिर न रख पाए, तो निश्चित है कि उस देश की सुरक्षा और स्वतंत्रता पर सवाल स्वत: ही खड़े हो जाएंगे।

 

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