संवाद से बातचीत तक पहुंचना सबसे बड़ी चुनौती- चंद्रप्रकाश द्विवेदी.
भाषा में दक्षता के लिए नियमित अध्ययन आवश्यक: निशांत जैन
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
आज अगर मुझे चाणक्य की स्क्रिप्ट लिखनी हो या और भी किसी पौराणिक चरित्र को केंद्र में रखकर संवाद लिखना हो तो मैं वो भाषा नहीं लिखूंगा जो मैंने चाणक्य सीरियल के निर्माण के दौरान लिखा था। आज जब मैं फिल्मों के लिए संवाद लिखता हूं तो इस बात का विशेष ध्यान रखता हूं कि गैर हिंदी भाषी भी उसको समझ सके। इससे फिल्मों की व्याप्ति अधिक होती है। हमारे यहां की फिल्में अबतक संवाद तक पहुंच पाई हैं जबकि इसको कम्युनिकेशन यानि बोलचाल की भाषा में होना चाहिए।
पांडित्यपूर्ण संवाद बहुधा बोझिल हो जाते हैं। अगर आप विदेशी फिल्मों को देखें तो वहां आपको ये प्रविधि दिखाई देगी। ये कहना है फिल्म निर्देशक और लेखक चंद्रप्रकाश द्विवेदी का जो दैनिक जागरण के ‘हिंदी हैं हम’ के हिंदी उत्सव में फिल्म लेखन की चुनौतियों पर स्मिता श्रीवास्तव से बातचीत कर रहे थे।
चंद्रप्रकाश द्विवेदी के मुताबिक ऐतिहासिक धारावाहिक या फिल्म बनाने के लिए कई पुस्तकों का सहारा लेना पड़ता है। उन पुस्तकों को लिखने के लिए कई व्यक्तियों ने अपना जीवन होम किया है। हमारा दायित्व होता है कि फिल्मों के माध्यम से उनकी बातों को अपनी भाषा में दर्शकों तक पहुंचाएं। पौराणिक पात्रों के बीच की बातचीत को लिखते वक्त पांडित्यपूर्ण शैली आ जाती है।
किसी फिल्म में दो राजा हैं, वो गहरे मित्र भी हैं तो उनके बीच का संवाद ‘हे तात’ से आरंभ करेंगे या ‘कहो मित्र’ से। पात्रों के संबंधों का ध्यान फिल्म को लिखते वक्त सबसे अधिक आवश्यक होता है। आपको बताते चलें कि दैनिक जागरण के हिंदी हैं हम के तहत एक सितंबर से प्रतिदिन अलग अलग विषयों के विशेषज्ञों से हिंदी को लेकर बात की जा रही है।
अब हिंदी माध्यम में प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए प्रामाणिक पाठ्य सामग्री बहुतायत में उपलब्ध है। प्रतियोगियों के सामने ये बड़ी चुनौती है कि वो किस पुस्तक को चुनें और किसको छोड़ें। हिंदी भाषा में दक्ष होने के लिए आवश्यक है कि प्रामाणिक पुस्तकों का नियमित अध्ययन करें। हिंदी में ढेर सारी सामग्री वीडियो माध्यम में भी उपलब्ध है लेकिन सफल होने के लिए ये जरूरी है पुस्तकें पढ़नी।
हिंदी के सामने इस वक्त जो सबसे बड़ी चुनौती है वो उसकी लिपि को बचाने की है। आज व्हाट्सएप और चैटिंग के दौर में देवनागरी लिपि पिछड़ती नजर आ रही है। हिंदी के वाक्य भी रोमन में लिखने लगे हैं। कई बार लगता है कि हम अपनी भाषा की लिपि को भूलने की ओर बढ़ रहे हैं। ये खतरनाक ट्रेंड है। हिंदी के वाक्यों को देवनागरी में ही लिखना चाहिए। ये कहना है कि आईएएस अधिकारी निशांत जैन का जो ‘हिंदी हैं हम’ के हिंदी उत्सव में गौरव गिरिजा शुक्ला से बात कर रहे थे।
निशांत जैन ने इस बात पर भी जोर दिया कि व्यक्तित्व की परिपक्वता पुस्तकों को पढ़ने से आती है। आपके ज्ञान में गहराई आती है। अगर कोई भाषा आपको नहीं आती है और वो जरूरी है तो उसको सीखें। आपको बता दें कि दैनिक जागरण के हिंदी हैं हम के तहत एक सितंबर से प्रतिदिन अलग अलग विषयों के विशेषज्ञों से हिंदी को लेकर बात की जा रही है।
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