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क्या व्यावहारिक शिक्षा को बढ़ावा देने की जरूरत है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

अनेक अध्ययनों का यह निष्कर्ष है कि आर्थिक विकास के संकेतकों में शिक्षा और जन-कल्याण मुख्य है. हालांकि, बीते तीन दशकों में आर्थिक तरक्की तो हुई, लेकिन स्कूली शिक्षा समुचित ध्यान से वंचित रह गयी. भारतीय शिक्षा और सामाजिक व्यवस्था बच्चों के प्रति अनम्य बनती गयी और उनकी भावनाओं, विचारों और आकांक्षाओं को दरकिनार किया जाता रहा. तीन साल की उम्र में ही बच्चों पर पढ़ाई का दबाव बनाने का चलन शुरू हो गया.

जो बच्चे सीखने में असफल रहते हैं, उन्हें परिजनों और समाज द्वारा कुंद मान लिया जाता है और उनके प्रति तिरस्कार का भाव आ जाता है. दुर्भाग्य से अधिकांश स्कूलों की शिक्षा एक-आयामी है और बच्चों के अंक को ही तरक्की का पैमाना मान लिया जाता है. गुणवत्तायुक्त शिक्षा और शिक्षक भारतीय शिक्षण व्यवस्था की लुप्त कड़ी बन गये. हालांकि, हाल के वर्षों में शिक्षा के आधुनिकीकरण के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास शुरू हुए हैं.

शिक्षक पर्व के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने यह जोर दिया कि सीखने-सिखाने की प्रक्रिया निरंतर परिभाषित और डिजाइन होती रहनी चाहिए, ताकि भारतीय शिक्षा विश्वस्तरीय बने. प्रधानमंत्री ने नेशनल डिजिटल आर्किटेक्चर को लांच किया, जिससे शिक्षा में व्याप्त असमानता दूर होगी, साथ ही आधुनिकीकरण को बढ़ावा मिलेगा. इसके अलावा भारतीय सांकेतिक भाषा शब्दकोश, दृष्टिबाधितों के लिए ऑडियोबुक्स, सीबीएसइ का स्कूल गुणवत्ता आश्वासन एवं मूल्यांकन ढांचा और निपुण भारत तथा विद्यांजलि पोर्टल के लिए निष्ठा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि की शुरुआत हुई है.

इन कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन से हमारी शिक्षा प्रणाली वैश्विक प्रतिस्पर्धा योग्य बनेगी, साथ ही युवा भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार हो सकेंगे. नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने की तैयारियों के बीच ऐसे बदलाव नीति आधारित ही नहीं होंगे, बल्कि भागीदारी को भी सुनिश्चित करेंगे. कोविड-काल की अभूतपूर्व चुनौतियों के बीच शिक्षा व्यवस्था ने बड़े बदलावों को देखा और उसके अनुरूप योजनाएं बनायीं. ऑनलाइन कक्षाएं और परीक्षाएं आयोजित हुईं, जिसकी पहले कल्पना तक नहीं की गयी थी.

तकनीकें आज प्रगति का प्राथमिक हिस्सा हैं. ये नये कौशल के साथ हमें शिक्षण और मूल्यांकन की सुविधा प्रदान कर रही हैं. लिहाजा, भविष्य के मद्देनजर सार्वजनिक नीतियों को पुनःपरिभाषित करने, दीर्घकालिक समर्पण और व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है.

हमारी शिक्षा बहुमुखी विकास आधारित होनी चाहिए, यह रटने के बजाय रचनात्मकता आधारित हो. इसके लिए व्यावहारिक शिक्षा को बढ़ावा देने की जरूरत है. भारत ने स्कूली शिक्षा को महत्वपूर्ण रणनीतिक निवेश के तौर पर देखना शुरू किया है. शैक्षिक बुनियादी ढांचे में परिवर्तन लाने की यह पहल स्वागतयोग्य है. सार्वभौमिक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा केवल शिक्षकों के प्रदर्शन पर ही निर्भर नहीं है, बल्कि सरकार, स्कूलों, शिक्षकों, अभिभावकों, मीडिया, नागरिक समाज, संस्थाओं और निजी क्षेत्रों भी की यह साझा जिम्मेदारी है.

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