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'वनवास' का मतलब है स्वयं के व्यक्तित्व विकास की साधना. - श्रीनारद मीडिया

‘वनवास’ का मतलब है स्वयं के व्यक्तित्व विकास की साधना.

‘वनवास’ का मतलब है स्वयं के व्यक्तित्व विकास की साधना.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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रामायण में सीता के स्वयंवर में राम को एक धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ानी होती है। लेकिन राम के छूते ही धनुष टूट जाता है। उनके पहले कोई भी योद्धा उस धनुष को उठा भी नहीं पाया था। इसलिए सीता के पिता राम के इस काम से इतने प्रभावित होते हैं कि वे ख़ुशी-ख़ुशी उन्हें अपने दामाद के रूप में स्वीकार करते हैं।

इससे सवाल यह उठता है कि जब धनुष पर प्रत्यंचा बांधना ही अपेक्षित था तो राम, जो अपनी आज्ञाकारिता के लिए जाने जाते थे, उसे तोड़ क्यों देते हैं? प्राचीन काल से धनुष राजत्व का प्रतीक रहा है। वह शांतचित्तता और संतुलन का प्रतीक है। धनुष केवल तब उपयोगी होता है, जब प्रत्यंचा न तो बहुत ढीली और न ही बहुत तनी बांधी जाती है। राम, जो एक आदर्श राजा हैं, अपनी युवावस्था में धनुष तोड़ते हैं। निश्चित ही उनके इस कृत्य का कोई महत्व होगा। यह कोई साधारण धनुष नहीं है। यह महान वैरागी शिव का धनुष है।

राम के विवाह के बाद उनके पिता दशरथ को लगता है कि राम अब राजा की ज़िम्मेदारी को वहन करने के लिए तैयार हैं। इसलिए वे राजपद से हट जाते हैं। दुर्भाग्यवश राम का राज्याभिषेक नहीं होता है। महल की साज़िशों के कारण राम को वनवास जाना पड़ता है। क्या धनुष के तोड़ने और राजपद से खंडन के बीच कोई संबंध है? रामायण स्पष्ट रूप से यह नहीं कहती। किसी विद्वान ने भी ऐसा दावा नहीं किया है। लेकिन सवाल दिलचस्प है। आख़िर हिंदू कथाओं में सब कुछ प्रतीकात्मक होता है। यहां निश्चित ही कोई सीख है जिसे हमें समझना होगा।

शिव त्याग और तटस्थता से जुड़े देवता हैं। इस संदर्भ में राम द्वारा शिव का धनुष तोड़ना शायद जोश और लगाव से प्रेरित कार्य माना जा सकता है। क्या इसलिए उन्हें राजा बनने के लिए अयोग्य माना जाता है? क्या इसलिए उन्हें 14 साल वनवास में बिताने पड़ते हैं ताकि वे पर्याप्त मात्रा में तटस्थ बनकर लौट सकें?

चौदह साल के वनवास के अंत में जब राम रावण को मारकर अपनी पत्नी सीता को बचाते हैं, तब उनकी तटस्थता हमें शायद अमानवीय भी लगे। वे सीता से कहते हैं कि उन्होंने धर्म की रक्षा करने और अपने परिवार के सम्मान को बचाने के लिए रावण को मारा था, न कि सीता को बचाने के लिए। इसका तात्पर्य यह हो सकता है कि राजा के लिए अपने जीवनसाथी के प्रति भावनाएं अभिव्यक्त करना भी अस्वीकार्य है। एक बार धनुष तोड़ते समय राम ने अपना जोश दिखाया था। वे दोबारा वैसा नहीं करेंगे।

प्राचीन ऋषि राजाओं से ऐसी ही तटस्थता की अपेक्षा करते थे। राजाओं के लिए राजत्व परिवार से ज़्यादा महत्वपूर्ण होना ज़रूरी था। इसलिए राजाओं में राम सबसे श्रेष्ठ माने जाते हैं। भले ही आज हम इस सिद्धांत से पूरी तरह सहमत न हों, लेकिन यह स्पष्ट है कि रामायण वनवास को एक त्रासदी नहीं बल्कि निजी विकास का साधन मानता है ताकि वह व्यक्ति राजा का मुकुट पहनने के लिए तैयार हो सके।

यही विषय महाभारत में दोहराया गया है। इंद्रप्रस्थ राज्य स्थापित करने में कृष्ण पांडवों की मदद करते हैं। लेकिन कृष्ण की अनुपस्थिति में पांचों भाई मूर्खता से अपना राज्य जुए में खो देते हैं। इस अपराध के लिए उन्हें तेरह साल का वनवास भुगतना पड़ता है। जब युधिष्ठिर अपने दुर्भाग्य का शोक मनाते हैं, तब ऋषि उन्हें राम के चौदह वर्ष के वनवास के बारे में बताते हैं, जो राम को बिना किसी दोष के भुगतना पड़ा था।

ऋषि पांडवों से कहते हैं कि शिकायत करने के बजाय जंगल में रहकर वे कुछ सीख सकते हैं। और पांडव वही करते हैं: जब अर्जुन एक मामूली शिकारी (जो भेस में शिव होते हैं) से युद्ध में हार जाते हैं तो वे विनम्रता सीखते हैं। भीम विनम्रता तब सीखते हैं जब वे एक बूढ़े बंदर (जो भेस में हनुमान हैं) की पूंछ नहीं उठा पाते। और सभी भाई विनम्रता तब सीखते हैं जब उन्हें वनवास के अंतिम साल में नौकर बनकर जीना पड़ता है। कृष्ण केवल तभी कौरवों के विरुद्ध उनकी जीत सुनिश्चित करते हैं।

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