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भारतीय अर्थव्यवस्था में आई तेजी की वजह से जगी उम्मीद.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पिछले वर्ष के आरंभिक समय में ही वैश्विक महामारी कोरोना के दस्तक देने के बाद से देशभर में आर्थिक गतिविधियां लंबे समय तक ठप रहीं। कुछ माह तो ऐसे बीते जब अर्थव्यवस्था लगभग ठहर गई थी। कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए की गई कवायदों के तहत अनेक प्रकार की पाबंदियां लगाने से अर्थजगत पर व्यापक असर पड़ा। हालांकि प्रतिबंधों में काफी हद तक ढील दिए जाने के बाद गतिशीलता के संकेतकों में हुआ सुधार और आर्थिक गतिविधियों के आगे बढ़ने का संकेत मिल रहा है।

अर्थव्यवस्था के फिर से खुलने और मांग में आई तेजी की वजह से यह उम्मीद जगी है कि आर्थिक विकास को तुरंत सहारा मिल सकता है। विकास के प्रमुख कारकों में जहां ग्रामीण क्षेत्र की खपत में मजबूती दिख रही है, वहीं शहरी खपत की स्थिति अपेक्षाकृत सुस्त बनी हुई है। सकल पूंजी निर्माण की वजह मुख्य रूप से सरकारी खर्च बना हुआ है, वहीं निजी पूंजीगत विकास में क्रमश: सुधार होने की संभावना है।

देशव्यापी टीकाकरण अभियान और आगामी कुछ महीनों में संभावित नए टीकों को मिलने वाली मंजूरी और उसकी उपलब्धता सकारात्मक संकेत के तौर पर बने रहेंगे। समग्र अनुकूल नीतियों का मिश्रण, भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति के उदार रुख की निरंतरता, विकास को प्राथमिकता देने की प्रतिबद्धता, अर्थव्यवस्था में महंगाई के दबाव के बावजूद आर्थिक सुधारों की दिशा में सहायता प्रदान कर सकती है।

मांग में तेजी और टीकाकरण अभियान के तहत रोजाना लगभग 50 लाख तक डोज लगने के कारण नीतिगत सहयोग और वैश्विक विकास (निर्यात में वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए) में आ रहे सुधार की वजह से औद्योगिक संकेतकों और बाहरी मांग में तेजी के कारण आर्थिक गतिविधियां संभावित रूप से सितंबर के बाद से सामान्य हो सकती हैं। चक्रीय सुधार आगामी वित्त वर्ष के लिए घरेलू सकल उत्पाद की वृद्धि में सहायता कर सकता है। वहीं मौद्रिक नीति का रुख आर्थिक वृद्धि को सहयोग देता रहेगा।

बाहरी मोर्चे पर भी कारक सकारात्मक बने हुए हैं। वैश्विक विनिर्माण पीएमआई स्तर में वृद्धि और जिंसों की कीमतों में वृद्धि वैश्विक मांग में सुधार की ओर इशारा करती है। आइएमएफ यानी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा अपने जुलाई आउटलुक में वैश्विक अर्थव्यवस्था के वर्ष 2021 में लगभग छह प्रतिशत और 2022 में 4.9 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान व्यक्त किया गया है।

विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए विकास पूर्वानुमान के स्तर को भी बढ़ाया गया है, जबकि 2021 में उभरती एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के लिए इसके अनुमान में कटौती की गई है। ये परिवर्तन महामारी के दौरान हुए विकास और इन अर्थव्यवस्थाओं में नीतिगत बदलावों को लागू किए जाने को प्रतिबिंबित करते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था के इस वर्ष 9.5 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है, जो अप्रैल के अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्वानुमान से करीब तीन प्रतिशत कम है।

देश के कई इलाकों में मानसून की कमजोर प्रवृत्ति और इस मौसम में अब तक खेतों में बोआई में धीमी गति की वजह से घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम हो सकता है। वैश्विक मोर्चे पर अमेरिका में उत्साहजनक आर्थिक आंकड़ों के बावजूद अमेरिकी फेडरल रिजर्व श्रम बाजार सहित अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त सुधार चाहता है, ताकि प्रोत्साहन कार्यक्रम को वापस लिए जाने पर निर्णय लेने में सक्षम हो सके। अमेरिकी केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति के जोखिम को स्वीकार करता है, लेकिन इसे अस्थायी प्रवृत्ति के तौर पर देखता है।

अपेक्षा से कम टीकाकरण, असमान आर्थिक सुधार और वायरस के नए वैरिएंट और जिंसों की कीमतों में तेजी से मुद्रास्फीति में अप्रत्याशित रूप से इजाफे से जोखिम उत्पन्न पैदा हो सकता है और इसे टालने के लिए नीतिगत कार्रवाई की जरूरत होगी, जहां महामारी का प्रतिकूल समीकरण और सख्त वित्तीय स्थिति उभरते बाजारों में सुधार या आर्थिक वृद्धि को वापस पटरी पर आने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।

अमेरिकी फेडरल रिजर्व के प्रोत्साहन की वापसी और वैश्विक बाजार भावनाओं पर इसका संभावित प्रभाव एक जोखिम है। विदेशी मुद्रा भंडार, घाटे की स्थिति, विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करके टिकाऊ विकास को बढ़ाने के लिए उठाए गए कदमों के मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचनात्मक ताकत में सुधार हुआ है।

समग्र रूप से ये तमाम कारक बाजार की भावनाओं और अर्थव्यवस्था पर प्रोत्साहन के नकारात्मक प्रभाव के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिए काम कर सकते हैं। आर्थिक विकास में हालिया सुधार की एक वजह वैश्विक तरलता और दूसरी वजह टीकाकरण अभियान को लेकर आशावाद और आर्थिक गतिविधियों का पटरी पर आना है।

 

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