आपराधिक मामले को छिपाने वाला कर्मचारी नियुक्ति का हकदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
किसी नई नौकरी या काम में झूठ, जालसाजी या फर्जी कामों को पूरी तरह गलत करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को कहा कि यदि कोई कर्मचारी एक बार उसके खिलाफ लंबित आपराधिक मामले के बारे में झूठी घोषणा करता है या जानकारी छिपाता है तो वह ‘अधिकार’ के रूप में नियुक्ति का हकदार नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि इससे कंपनी उसपर भविष्य में कभी भरोसा नहीं कर सकती है और कभी भी नौकरी से निकाल सकती है।
नौकरी के वक्त नहीं बताए आपराधिक मामले
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले को रद कर दिया, जिसने आपराधिक मामला छिपाने पर राज्य बिजली विभाग के एक कर्मचारी की सेवा समाप्त करने के फैसले को पलट दिया था। राजस्थान राज्य विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। इस मामले में कर्मचारी ने नौकरी के लिए आवेदन करते समय आपराधिक मामले के बारे में जानकारी नहीं थी, जिसमें उसे सजा हुई थी।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि सवाल यह नहीं है कि क्या कोई कर्मचारी किसी विवाद में शामिल था और क्या उसे बाद में बरी कर दिया गया या नहीं, बल्कि यह ‘विश्वास’ का सवाल है। जो कर्मचारी शुरू में ही झूठी घोषणा करता है उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता और नियोक्ता पर ऐसे कर्मचारी को नौकरी में बनाए रखने लिए दबाव नहीं बनाया जा सकता।
मामले की सुनवाई कर रही बेंच ने कहा कि आपराधिक मामले की जानकारी छिपाकर या झूठा शपथपत्र देकर शख्स ने कंपनी का भरोसा तोड़ा है। यह मामला विश्वसनीयता का है। कोर्ट ने कहा कि नौकरी की शुरुआत में ही जब आवेदक इस तरह से धोखाधड़ी करता है तो नियोक्ता भविष्य में उसपर भरोसा नही कर पाए उसके मन में हमेशा यह संदेह रहेगा।
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