मोदी ने अधिकारियों के साथ सीधे संवाद और संपर्क की नीति क्यों अपनायी है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

एक अहम बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र सरकार के सचिवों से मिल कर काम करने तथा नीतिगत निर्णयों को लागू करने का आह्वान किया है. लगभग चार घंटे चली इस बैठक में सभी सचिव मौजूद थे. शासन में नौकरशाही की बड़ी भूमिका होती है तथा सरकार के निर्णयों को सही तरीके से अमली जामा पहनाने का काम अधिकारी ही करते हैं. सरदार वल्लभ भाई पटेल प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को भारत की सरकारी मशीनरी का ‘स्टील फ्रेम’ कहते थे.

अपने कार्यकाल के प्रारंभ से ही प्रधानमंत्री मोदी ने अधिकारियों के साथ सीधे संवाद और संपर्क की नीति अपनायी है. उन्होंने पहले भी और कोरोना महामारी के दौर में भी जिलाधिकारियों तक से बात कर चुके हैं. वे प्रशिक्षु और नवनियुक्त प्रशासनिक और पुलिस सेवा के अधिकारियों से भी मिलते रहे हैं. केंद्र सरकार के सभी सचिवों के साथ शनिवार की जो बैठक हुई है, वैसी बैठक जनवरी, 2019 में भी हो चुकी है.

ऐसे आयोजनों से अधिकारियों को प्रोत्साहन तो मिलता ही है, प्रधानमंत्री भी उनकी समस्याओं और सुझावों को सुनते हैं. हालिया बैठक में वैसे सचिव भी थे, जो पिछली बैठक के बाद सचिव पद पर नियुक्त हुए हैं. ऐसे समय में प्रधानमंत्री और सचिवों की बैठक हुई है, जब देश महामारी के गंभीर प्रभावों से निकलने की कोशिश में जुटा है. ऐसी स्थिति में सरकारी नीतियों को तेजी से लागू करना तथा इस प्रयास में आनेवाली बाधाओं को दूर करना बेहद जरूरी है.

इसके लिए सभी मंत्रालयों और विभागों को परस्पर सहभागिता और समन्वय से काम करने की आवश्यकता है. बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने इसे ही रेखांकित किया है. हालांकि विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रमों तथा इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने की योजनाओं पर अमल के मामले में उत्साहजनक परिणाम हमारे सामने हैं, किंतु जिस गति से नीतियों को साकार किया जाना चाहिए, वैसा नहीं हो पा रहा है. रिपोर्टों के अनुसार, बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने इस कमी को ओर अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट किया है.

अपनी चिर-परिचित विनोद शैली में उन्होंने कहा कि शीर्ष अधिकारी समस्याओं और उनके समाधान को जानते हैं और उनके पास भविष्य के लिए भी दृष्टि है, तो फिर नीतियों को लागू करने के संबंध में समस्या उनके यानी प्रधानमंत्री के साथ है. प्रारंभ से ही प्रधानमंत्री मोदी का प्रयास रहा है कि नीतियों और योजनाओं के संबंध में परिणामों को प्रमुखता दी जाए, न कि उन्हें प्रक्रियाओं में उलझाकर रखा जाए. लाल फीताशाही यानी सरकारी कार्यालयों में फाइलों को इधर-उधर लाने व भेजने में होनेवाली देरी दशकों से बड़ी प्रशासनिक समस्या रही है.

इस बैठक का मुख्य उद्देश्य इसी देरी से छुटकारा पाना था. उम्मीद है कि वरिष्ठ अधिकारी प्रधानमंत्री मोदी की इस सलाह पर पूरा ध्यान देंगे कि उन्हें ‘बाबू संस्कृति’ से मुक्त होना है तथा देश में बदलाव लाने की कोशिशों में अग्रणी भूमिका निभानी है. भारत को आत्मनिर्भर बनाने तथा विश्व व्यवस्था में विशिष्ट योगदान देने के लिए ऐसा होना आवश्यक है.

 

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