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भारतबोध के साथ वैश्विक कल्याण का पथ एकात्म दर्शन.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

जन्मदिवस पर विशेष

धरती के हर मनुष्य के साथ ठीक वैसा व्यवहार हो, जैसा हम दूसरों से अपने लिए चाहते हैं। परिवार, समाज,देश और यहां तक कि विश्व के सभी शासक अपने पर निर्भर लोगों के साथ उनके हित को ध्यान में रखते हुए एक जैसा व्यवहार करें को एकात्म मानव दर्शन का बीज मंत्र है। वस्तुतः पूरे जगत में एक ही चेतना का विस्तार है। मनुष्य, प्राणी औऱ पर्यावरणीय तत्व अपने सुखी और शांतिपूर्ण अस्तित्व के लिए एक दूसरे पर निर्भर हैं। मनुष्य शरीर, मन, बुद्धि औऱ आत्मा का समन्वय है। इन चारों का आपसी समन्वय बिगड़ने से दुख और संकट उपजता है।

राजशाही, लोकतंत्र, साम्यवाद औऱ पूंजीवाद पर आधारित शासन व्यवस्था मनुष्य को आत्मिक समृद्धि औऱ भौतिक सुख एक साथ देनें में असफल साबित हुई हैं। जैसे मनुष्य में तन, मन, बुद्धि औऱ आत्मा होती हैं वैसे ही समाज में भी ये चार तत्व होते हैं। इसी प्रकार राष्ट्र भी इन्ही चार तत्व होते हैं। देश के मौजूदा शासक दल का इसी एकात्म दर्शन की विचारभूमि पर खड़ा हुआ है। इस दर्शन को राजनीतिक विमर्श नवीसी में भले ही वाद या इज्म का नाम दिया जाता हो लेकिन सही मायनों में यह भारत का आधारभूत सैद्धान्तिक अधिष्ठान ही है।

वेदों की ऋचायें से लेकर आदिगुरु के अद्वेन्त वेदांत तक औऱ प्रधानमंत्री जी के सबका साथ सबका विश्वास सबका विश्वास मूलतः एकात्म दर्शन की अभिव्यक्ति औऱ वचनबद्धता का दिगदर्शन ही कराता है। आज का भारत अगर लोकतंत्र के साथ वैश्विक व्यवस्था में अपनी प्रभावी भूमिका के साथ हमें नजर आ रहा है तो इसका आधार भी पार्टी के आराध्य पुरुष पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी द्वारा दिखाया गया एकात्म मानव दर्शन का पथ है जिसका अनुशीलन केंद्र और अन्य भाजपा शासित राज्य सरकारें कर रहीं है।

भारतीय जनता पार्टी की रक्त शिराओं में एकात्म मानव दर्शन रूधिर बनकर दौड़ रहा है। जिस देश में कभी ये कल्पना ही नहीं की गई कि कांग्रेस के अलावा भी कोई राजनैतिक दल यहां स्थाई सरकार दे सकता है, आज भारत मे सबसे मजबूत सरकार चलाने की जिम्मेदारी भाजपा कार्यकर्ताओं के पास है। केवल केंद्र में ही नहीं, वरन् विभिन्न राज्यों में भी भारतीय जनता पार्टी की सरकारें नए भारत में अपनी भूमिकाओं को लिख रहीं है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हो, या फिर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत अन्य भाजपा शासित राज्य हर शासन व्यवस्था एकात्म भाव के साथ विकास और जनकल्याण के काम मे लगीं है। बुनियादी रूप अद्वैत वेदांत औऱ एकात्म मानववाद एक ही हैं। यह अवधारणा वसुधैब कुटुम्बकम पर केंद्रित है। भाजपा के राजनीतिक दर्शन में  गांधीवादी समाजवाद, सर्वधर्म समभाव, राष्ट्रीय एकता और अखंडता, लोकतंत्र एवं मूल्य आधारित राजनीति पँचनिष्ठाओं के रूप में एक नैतिक मार्गदर्शन देतीं है। वस्तुतः इन पँचनिष्ठाओं में ही एकात्म दर्शन की अभिव्यंजना है।

आज हम गर्व के साथ कह सकतें है कि केंद्र की मोदी सरकार इस दर्शन को आधार बनाकर भारत में उस एकात्म भाव को सुस्थापित करने में लगी है जिसका नैतिक दायित्व हमें पंडित जी ने सौंपा है। खेती को लाभ का व्यवसाय बनाना हो या जनधन, मुद्रा, स्किल इंडिया जैसे अभियान अंततः समाज से आर्थिक भेदभाव का शमन हो ऐसी संकल्पना हमारी सरकारों से अभिव्यक्त होती है। पंडित जी जिस एकात्मता की वकालत करते है वह गहरी आर्थिक खाई के रहते संभव नही है। इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने सबके साथ औऱ विकास का मॉडल दिया।

भारत एक इकाई है इसलिए सबका विश्वास जोड़कर अंततः एकात्म दर्शन को ही सशक्त किया गया। मप्र प्रधानमंत्री आवास योजना के क्रियान्वयन में दूसरे स्थान पर है और हम में से कोई भी यह दावा नही कर सकता है कि इस विशाल प्रदेश में किसी अल्पसंख्यक को उसके पंथ के आधार पर भेदभाव सहना पड़ा हो। यहां तक कि योगी आदित्यनाथ की सरकार में तो वहां बनाये गए 25 लाख आवासों में से 35 फीसदी मुसलमानों को दिए गए है। यह एकात्म भाव के जीवंत दस्तावेज है। यह सर्वधर्म समभाव की पँचनिष्ठाओं का साकार भी है।

ध्यान कीजिये एक दौर में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि  देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है। लेकिन यह एकात्म नही बल्कि अलगाव का विचार था।यह तुष्टीकरण था जबकि भाजपा पुष्टिकारक राजनीतिक सँस्कृति की हामी है। मप्र में शिवराज सिंह चौहान की सरकार को लगभग 15 साल होने को है लेकिन एक भी मामला ऐसा नही है जो किसी हितग्राही योजना में भेदभावपूर्ण प्रक्रिया का स्मरण कराता हो। एकात्म दर्शन भौतिक एवं आत्मिक सुख की आवश्यकता को अनिवार्य मानता है। मप्र सरकार ने अपनी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के माध्यम से व्यक्ति स्तर की इकाई को चिंतामुक्त जीवन का पथ प्रशस्त किया है। लाडली लक्ष्मी, कन्यादान, से लेकर किसान और श्रमिक कल्याण की बीसियों योजनाओं के सहारे अंत्योदय को साकार किया है।

तीर्थदर्शन जैसी योजनाएं औऱ आनंद मंत्रालय आत्मिक सुख की खोज में व्यक्ति इकाई को सुखमय बनाने के प्रयास ही है।कहा जा सकता है कि मन को मान सम्मान चाहिये इसलिए आवास, शौचालय, किसान सम्मान निधि, स्किल इंडिया जैसे अभियान है। शरीर को आरोग्य इसलिए योग से लेकर आयुष्मान जैसे वैश्विक महत्व के प्रकल्प प्रतिष्ठित है। बुद्धि को ज्ञान विज्ञान इसलिए नई शिक्षा नीति से लेकर शोध और नवाचारों का एक नया संसार खड़ा किया जा रहा है। आत्मा को परमात्मा की नजदीकी इसीलिए तीर्थदर्शन जैसी सर्वसमावेशी योजनाओं के माध्यम से भाजपा सरकारें एकात्म इकाई के रुप में व्यक्ति के कल्याण को सुनिश्चित करने में लगीं हैं।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के एकात्मक राज्य में केन्द्रीयकरण को कोई स्थान नही है वे स्पष्टतया एक समाज केंद्रित व्यवस्था के पक्षधर रहे है हाल ही में कोविड संकट के दौरान हमनें देखा कि मप्र की सरकार ने समाज की भागीदारी से किस तरह इस संकट का सामना किया है। वे एकात्म राज्य में प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम जीवन स्तर की आश्वस्ति चाहते है। इस स्तर के बाद उत्तरोत्तर समृद्धि, राष्ट्र के लिए सम्यक प्रोधोगिकी, स्वदेशी की आवश्यकता ओर जोर देते हैं। आत्मनिर्भर भारत का संकल्प और इसका रोडमैप भी भारत को एकात्मता की ओर उन्मुख करने वाला बुनियादी कदम है। भारत को भारतबोध के साथ वैश्विक कल्याण में अपनी भूमिका का शाश्वत पथ प्रशस्त करने वाले ऐसे महान मनीषी की जयंती पर शत शत नमन।

 

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