सती,जाति, बाल विवाह समेत कई कुप्रथाओं पर राजा राममोहन राय लड़े.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पुण्यतिथि पर विशेष
महान समाज सुधारक और कई सामाजिक आंदोलनों को लीड करने वाले राजा राम मोहन राय का आज ही के दिन निधन हो गया था। आज के दिन उन्हें याद करना बेहद जरूरी हो जाता है, क्योंकि ऐसे कम ही लोग हुए हैं, जिन्होंने भारत को आधुनिक बनाने के साथ ही महिलाओं व तमाम कुप्रथाओं के खिलाफ न सिर्फ आवाज उठाई और समाज सुधारक बनकर ही उभरे। राजा राम मोहन राय को आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है।
उनका जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और वे ब्रह्म समाज के संस्थापक रहे थे। राजा राम मोहन राय द्वारा आजादी से पहले के कई समाज सुधारक आंदोलनों में काफी सक्रिय भूमिका निभाते हुए देखा गया। आज राजा राम मोहन राय की पुण्यतिथि है।
बचपन में हासिल की ये उपलब्धियां
22 मई 1772 को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के राधानगर गांव में जन्मे राजा राममोहन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हासिल की। इनके पिता का नाम रामकांत राय वैष्णव था, उनके पिता ने राजा राममोहन को बेहतर शिक्षा देने के लिए पटना भेजा। 15 वर्ष की आयु में उन्होंने बंगला, पारसी, अरबी और संस्कृत सीख ली थी, इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि वह कितने बुद्धिमान रहे होंगे।
सती, बाल विवाह जैसी कई प्रथाओं से आजादी
बड़ी बात यह कि उन्होंने सती, बाल विवाह जैसी कई कुप्रथाओं से समाज को आजादी दिलाई थी। यहां तक कि राजा मोहन राय ने देश और समाज की बुराइयों को मिटाने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी भी छोड़ दी थी। राज राम मोहन राय ने रूढ़िवादी हिंदू अनुष्ठानों और मूर्ति पूजा को बचपन से ही त्याग दिया था। वहीं, उनके पिता रामकंटो राय एक कट्टर हिंदू ब्राह्मण थे।
राजा राम मोहन राय का पूरा जीवन महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए संघर्ष करते हुए बीता। उन्होंने इन बुराइयों को खत्म करने के लिए जागरूकता फैलाना शुरू किया। उन्होंने गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैटिंग की मदद से सती प्रथा के खिलाफ एक कानून का निर्माण करवाया। उन्होंने कई राज्यों में जा-जा कर लोगों को सती प्रथा के खिलाफ जागरूक किया। उन्होंने लोगों की सोच और इस परंपरा को बदलने में काफी प्रयास किए। बता दें कि सती प्रथा में एक विधवा को अपने पति की चिता के साथ जल जाने के लिए मजबूर होना पड़ता था। उन्होंने महिलाओं के लिए पुरूषों के समान अधिकारों के लिए प्रचार किया। जिसमें उन्होंने पुनर्विवाह का अधिकार और संपत्ति रखने का अधिकार की भी वकालत की।
आपको बता दें कि राजा राम मोहन राय भी मूर्तिपूजा के भी विरोधी थे और उन्हें दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक अकबर द्वितीय ने राजा की उपाधि दी थी। साथ ही उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अलावा पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। वह जाति प्रथा के कड़े विरोधी रहे थे। अब राजा राम मोहन राय आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन दुनिया उनके अच्छे कामों को कभी नहीं भूल सकती।
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