वाराणसी में नमामि गंगे योजना के तहत छोड़ी जाएंगी 15 लाख मछलियां, ‘रिवर रांचिंग’ की मदद से गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने में जुटी सरकार

वाराणसी में नमामि गंगे योजना के तहत छोड़ी जाएंगी 15 लाख मछलियां, ‘रिवर रांचिंग’ की मदद से गंगा को प्रदूषण मुक्त बनाने में जुटी सरकार

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श्रीनारद मीडिया / सुनील मिश्रा वाराणसी यूपी

वाराणसी / नमामि गंगे योजना के तहत गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए योगी सरकार अब “रिवर रांचिंग” की मदद लेगी। नदियों की पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने और गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए योगी सरकार गंगा में 15 लाख मछलियां छोड़ेगी। नमामि गंगे योजना के तहत गंगा में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सरकार के निर्देश पर मत्स्य विभाग के द्वारा गंगा में पंद्रह लाख विभिन्न प्रजाति की मछलियों को छोड़ने की योजना बनाई गई है। 12 जनपदों में ये मछलियां छोड़ी जाएंगी। यह मछलियां नाइट्रोजन की अधिकता बढ़ाने वाले कारकों को नष्ट करेगी।

सरकार गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कोई भी कसर छोड़ना नहीं चाहती है। नमामि गंगे प्लान के तहत गंगा में मल-जल जाने से रोकने के लिए एसटीपी का निर्माण। गंगा टास्क फोर्स समेत गंगा को अविरल और निर्मल करने के लिए सभी जतन कर रही है, जिसमें योगी सरकार को तेजी से सफलता भी मिल रही है। अब योगी सरकार ने गंगा के इको सिस्टम को बरकरार रखते हुए गंगा को साफ़ रखने के लिए रिवर रांचिंग प्रक्रिया से मछलियों का इस्तमाल करेगी।

इन 12 जिलों में छोड़ी जाएंगी 15 लाख मछलियां-

सरकार 12 जिलों में 15 लाख मछलियां नदियों में छोड़ेगी, जिसमे गाज़ीपुर, वाराणसी, मिर्ज़ापुर, प्रयागराज, कौशाम्बी, प्रतापगढ़, कानपुर, हरदोई, बहराइच, बुलंदशहर, अमरोहा, बिजनौर जिले शामिल हैं। पूर्वांचल में वाराणसी और गाज़ीपुर में 1.5-1.5 लाख मछलियां गंगा में छोड़ी जाएंगी।

प्रमुख सचिव नमामि गंगे अनुराग श्रीवास्तव ने बताया कि गंगा की स्वच्छता और भूगर्भ जल के संरक्षण के लिए समग्र प्रयास किए जा रहे हैं, ये भी उसी का एक हिस्सा है। मत्स्य विभाग के उपनिदेशक एन एस रहमानी ने बताया कि गंगा में प्रदूषण को नियंत्रित करने और नदी का इको सिस्टम बरक़रार रखने के लिए “रिवर रांचिंग” प्रोसेस का भी प्रयोग किया जाता है।

20 प्रतिशत रह गई है मछलियों की आबादी-

इस प्रक्रिया में गंगा में अलग-अलग प्रजाति की मछलियां छोड़ी जाती है। यह मछलियां नाइट्रोजन की अधिकता बढ़ाने वाले कारकों को नष्ट करती हैं। ये मछलियां गंगा की गंदगी को तो समाप्त करती हैं। साथ ही जलीय जंतुओं के लिए भी हितकारी होती हैं। उन्होंने जानकारी दी कि गंगा में अधिक मछली पकड़ने व प्रदूषण से गंगा में मछलियां कम होती जा रही है। 20 सालो से लगातार नदियों में मछलियां घट रही है। जो अब 20 प्रतिशत रह गई है।

मत्स्य विभाग के उपनिदेशक एनएस रहमानी ने जानकारी दी कि 4 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में मौजूद लगभग 15 सौ किलो मछलियां 1 मिलीग्राम प्रति लीटर नाइट्रोजन वेस्ट को नियंत्रित करती है। इसलिए सरकार ने गंगा में भी लगभग 15 लाख मछलियों को प्रवाहित करने का निर्णय लिया है।

हर दिन गंगा में काफी संख्या में नाइट्रोजन गिरता है। यदि नाइट्रोजन 100 मिलीग्राम प्रति लीटर या इससे अधिक हो जाता है तो यह जीवन के अलग-अलग हिस्सों को प्रभावित करता है। इसके बढ़ने से मछलियों की प्रजनन नहीं हो पाती और वह अंडे नहीं दे पाती है। इससे इनकी प्राकृतिक क्षमता भी प्रभावित होती है।

इस योजना के तहत सरकार की कोशिश है कि मछलियों के जरिए नदियों में प्राकृतिक जनन का कार्य शुरू किया जाए,क्योंकि इससे मछलियां संरक्षित होंगी और मछलियों के बढ़ने से अन्य जलीय जीवों में बढ़ोतरी होगी और प्राकृतिक प्रजनन ज्यादा होगा जिससे नदी का प्रदूषण भी कम होगा।

सितंबर के आखिरी माह तक रोहू, कतला व मृगला (नैना) नस्ल की मछलियां गंगा में डाली जाएँगी। इससे गंगा के प्रदूषण को कम किया जा सकेगा। इसके लिए 70 एमएम के बच्चे को भी तैयार किया गया है। खास बात यह है कि यह मछलियों के बच्चे गंगा में रहने वाले मछलियों के ही हैं। क्योंकि यदि मछलियों का प्राकृतिक वातावरण बदलेगा तो इससे उनका जीवन भी प्रभावित होगा। इसलिए पहले गंगा नदी से ही मछलियों को चुनकर के हैचरी में रखा गया, वहां उनका प्रजनन हुआ और 70 एमएम का बच्चा तैयार किया गया।

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