भारी बारिश के कारणों में निम्न दबाव प्रणाली का जल्दी बनना और जलवायु परिवर्तन है.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
पिछले कुछ दिनों में देश के कई भागों में अत्यधिक बारिश होने, बादल फटने, ग्लेशियर पिघलने, भूस्खलन की घटनाओं में तेजी से बढोतरी देखने को मिल रही है. इन सभी आपदाओं का अहम कारण जलवायु परिवर्तन, कुदरत के साथ मानवीय दखलंदाजी और बढ़ता तापमान रहा है. इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. बाढ़ आना अब कोई नयी बात नहीं है.
उसमें हर साल करोड़ों-अरबों की राशि की बर्बादी, हजारों मवेशियों-इंसानों का अनचाहे काल के गाल में समा जाना, गांव के गांव बाढ़ में बह जाना, सैकड़ों मकानों का डूब जाना, लाखों हेक्टेयर खेती तबाह हो जाना अब आम बात हो गयी है, लेकिन इस साल पिछले साल की तरह ही सितंबर महीने में आयी भीषण बारिश से जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया.
लगातार हो रही मूसलाधार बारिश का रिकॉर्ड टूटा और इसने महाराष्ट्र-गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम आदि राज्यों में कहर बरपाया. नदियां खतरे के निशान को पार कर गयीं. सैकड़ों-हजारों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया. हाई अलर्ट जारी हुआ. मुंबई में लगातार तीसरे साल 3000 मिलीमीटर के पार बारिश हुई. देखा जाए, तो सितंबर के आखिर में माॅनसून का प्रभाव अक्सर कम हो जाया करता था. यही नहीं, बारिश भी बंद हो जाती थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ और देश में सितंबर के आखिर तक बारिश का प्रकोप जारी रहा, जिससे सर्वत्र हाहाकार मच गया.
सच कहा जाए, तो बाढ़ देश की स्थायी समस्या बन चुकी है. देश का तकरीबन बारह फीसदी हिस्सा बाढ़ से बेहद प्रभावित रहता है. इसमें असम, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, बंगाल, बिहार, केरल, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पंजाब को मिला कर कुल तेरह राज्य शामिल हैं, जो बाढ़ की विभीषिका झेलने को अभिशप्त हैं. बाढ़ इन राज्यों की नियति बन चुकी है.
असलियत में देश में बारिश के मौसम में रावी, गंगा, यमुना, साहिबी, गंडक, घग्गर, कोसी, तीस्ता, ब्रह्मपुत्र, महानदी, महानंदा, दामोदर, गोदावरी, मयूराक्षी और साबरमती आदि की सहायक नदियों का पानी इनके किनारों को छोड़ कर बहुत बड़े पैमाने पर मीलों दूर-दूर तक जाकर फैल जाता है, जो खड़ी फसलों, मवेशियों, मानव आबादी, घर-बार सहित करोड़ों की राशि की तबाही का कारण बनता है.
यदि भौगोलिक दृष्टि से देखें, तो हमारा देश तीन ओर से- यथा पूरब में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर और दक्षिण में हिंद महासागर से घिरा हुआ है. अक्सर माॅनसून के मौसम में बहुत अधिक मात्रा में होने वाली बारिश का पानी भारत की नदियों के किनारे बसे राज्यों की बहुत बड़ी आबादी के लिए खतरा और विनाश का पर्याय बन जाता है.
इसी अहम कारण के चलते यह समूचा इलाका बाढ़ को लेकर अति संवेदनशील है. राजस्थान जो सूखे के लिए जाना जाता है, वह भी इस बार भीषण बारिश के प्रकोप से अछूता नहीं रहा. यहां इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश में अमूमन हर साल लगभग 33.516 लाख हेक्टेयर इलाका बाढ़ से प्रभावित होता है, लेकिन जब बारिश की अधिकता होती है, तो यह रकबा काफी बढ़ जाता है.
सबसे ज्यादा बाढ़ से प्रभावित होने वाला इलाका है गंगा बेसिन, ब्रह्मपुत्र-बराक का बेसिन और मध्य भारत व दक्षिण भारत की नदियों का बेसिन. यदि बाढ़ से होने वाले नुकसान की बात करें, तो हर साल आने वाली बाढ़ से 13 अरब, 40 करोड़ की राशि का नुकसान होता है. यह बाढ़ 81.11 लाख हेक्टेयर भूमि को प्रभावित करती है और इससे तकरीबन 35.7 लाख हेक्टेयर फसलें तबाह हो जाती हैं.
इस साल सितंबर में हुई बारिश का प्रमुख कारण माॅनसून का देरी से विदा होना, निम्न दबाव प्रणाली का जल्दी बनना और जलवायु परिवर्तन के चलते हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी में लगातार होने वाली हलचलें हैं. इसका एक और कारण चक्रवाती तूफान ‘गुलाब’ और कम दबाव का क्षेत्र भी है, जिसे नकारा नहीं जा सकता.
मौसम विभाग की मानें, तो इसका पहला कारण है प्रशांत महासागर के ऊपर बना अलनीनो का असर, जिसने माॅनसून को दबाया. दूसरा, ठीक उसी वक्त हिंद महासागर में माॅनसून के अनुकूल वातावरण बना और तीसरा बंगाल की खाड़ी में बना कम दबाव का क्षेत्र है. इनके चलते ही लंबे समय तक भारी बारिश हुई. कारण चाहे कुछ भी रहे हों, लेकिन इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस रिकॉर्ड तोड़ बारिश का किसानों की फसलों पर बुरा असर पड़ा है और खेतों में जलजमाव की समस्या का सामना करना पड़ा है.
फसल तबाह हुई है सो अलग. इस भारी बारिश का सर्दियों के मौसम पर भी दुष्प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा, यानी इस बार कड़ाके की सर्दी से देशवासियों को दो-चार होना होगा. दरअसल, सितंबर का महीना माॅनसून का सबसे आखिरी महीना माना जाता है, लेकिन इस बार पिछले साल की तरह ही देश ने भारी बारिश का सामना किया है. इस बार सितंबर की शुरुआत से ही बंगाल की खाड़ी में पहले कम दबाव बना, जो आगे चल कर दक्षिण गुजरात तक रहा.
इसके अलावा ओड़िशा और आसपास के राज्यों में ज्यादा दबाव बना रहा, जो धीरे-धीरे उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ चला. नतीजतन, ओड़िशा के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्रों में बारिश में वृद्धि हुई, गुजरात के आसपास और महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में भी भारी बारिश हुई. कुल मिला कर कम दबाव का क्षेत्र बनने के कारण देश के अधिकांश इलाकों में जरूरत से ज्यादा बारिश हुई. कहीं-कहीं तो बारिश ने कई-कई दिनों तक थमने का नाम तक नहीं लिया और देश की राजधानी सहित अधिकांश इलाकों में लोगों को जलभराव का सामना करना पड़ा.
दिल्ली में बारिश का 77 वर्षों का रिकाॅर्ड टूटा और 11 सितंबर तक वहां 384.4 मिलीमीटर बारिश हुई, जबकि सितंबर 1944 में 417.3 मिलीमीटर बारिश हुई थी, जो 2021 में इसी महीने 404.1 मिलीमीटर रही और यह पिछले छह सालों में सबसे ज्यादा थी. गौरतलब यह कि बारिश का यह रिकाॅर्ड 1901 से 2021 के दौरान सर्वाधिक था. 16 सितंबर को दिल्ली में सबसे अधिक 172.6 मिलीमीटर बारिश हुई.
सच तो यह है कि इस साल माॅनसून के पूरी तरह फैलने में हुई देरी ने बीते 19 सालों का रिकाॅर्ड तोड़ दिया. यह भी कि माॅनसून की देरी से वापसी की स्थिति में नम हवा का द्रव्यमान लंबे समय तक बना रहता है. यह स्थिति ही अधिक समय तक भारी बारिश का कारण बनती है. चिंता की बात तो यह है कि अभी ‘गुलाब’ नामक तूफान के कहर से निबटे भी नहीं हैं कि अब ‘शाहीन’ नामक तूफान कहर बरपाने को तैयार है. इससे किस तरह निपट पायेंगे, यह भविष्य के गर्भ में है.