पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को सफल बनाने का श्रेय डॉ. अब्दुल कादिर खान.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
हाल ही में पाकिस्तान के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल कादिर खान का निधन हो गया है। उन्हें पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को सफल बनाने का श्रेय दिया जाता है। यह इस लिहाज़ से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इस कार्यक्रम ने पाकिस्तान को परमाणु हथियार राज्य के मामले में भारत के बराबर ला दिया था।
- इसी वजह से उन्हें पाकिस्तान में देश के ‘परमाणु बम कार्यक्रम’ के जनक या ‘परमाणु नायक’ के रूप में जाना जाता है।
- हालाँकि पश्चिमी देशों द्वारा उन्हें ‘अब तक के सबसे बड़े परमाणु प्रसारक’ के रूप में संबोधित करते हुए उनकी आलोचना की जाती है।
प्रमुख बिंदु
- डॉ अब्दुल कादिर खान के विषय में:
- वर्ष 1975 में जर्मन-डच अनुवादक के रूप में एक यूरेनियम संवर्द्धन फैसिलिटी (हॉलैंड) में काम करने के दौरान अब्दुल कादिर खान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को अपनी सेवाओं की पेशकश की थी, जो चाहते थे कि पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम सफलतापूर्वक शुरू किया जाए।
- इसके पश्चात् उन्होंने पाकिस्तान के ‘सेंट्रीफ्यूज़’ हेतु पहला ब्लूप्रिंट प्रदान किया, जिससे देश में यूरेनियम संवर्द्धन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- वर्ष 1976 में वह ‘पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग’ के परमाणु हथियार प्रयास कार्यक्रम में शामिल हो गए।
- एक डच न्यायालय ने उन्हें चोरी के लिये भी दोषी ठहराया था।
- इसके अलावा उन्होंने उत्तर कोरिया, ईरान और लीबिया सहित कई देशों को परमाणु बम संबंधी सूचनाओं की तस्करी की थी।
- इसके लिये उन्हें गिरफ्तार कर ‘हाउस अरेस्ट’ के रूप में रखा गया था।
- उनके योगदान के कारण ही वर्ष 1998 में पाकिस्तान ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था।
- पाकिस्तान द्वारा उन्हें ‘निशान-ए-इम्तियाज़’ (ऑर्डर ऑफ एक्सीलेंस- पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान) और ‘मोहसिन-ए-पाकिस्तान’ (पाकिस्तान का हितैषी) की उपाधियों से सम्मानित किया गया।
- वर्ष 1975 में जर्मन-डच अनुवादक के रूप में एक यूरेनियम संवर्द्धन फैसिलिटी (हॉलैंड) में काम करने के दौरान अब्दुल कादिर खान ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को अपनी सेवाओं की पेशकश की थी, जो चाहते थे कि पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम सफलतापूर्वक शुरू किया जाए।
- भारत के परमाणु परीक्षण और परमाणु सिद्धांत के विषय में:
- वर्ष 1965 में ‘गुटनिरपेक्ष आंदोलन’ में शामिल देशों के साथ भारत ने ‘संयुक्त राष्ट्र निरस्त्रीकरण आयोग’ के समक्ष परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने हेतु कुछ सिद्धांतों का प्रस्ताव रखा। इसमें शामिल हैं:
- परमाणु प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण पर प्रतिबंध।
- गैर-परमाणु देशों के विरुद्ध परमाणु हथियारों के प्रयोग पर प्रतिबंध।
- गैर-परमाणु राज्यों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा।
- परमाणु परीक्षण पर परमाणु निरस्त्रीकरण प्रतिबंध।
- मई 1974 में भारत ने ‘स्माइलिंग बुद्धा’ के कोड नेम के साथ पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया।
- वर्ष 1998 में पोखरण-II शृंखला के एक हिस्से के रूप में पाँच परमाणु परीक्षण किये गए।
- इन परीक्षणों को सामूहिक रूप से ‘ऑपरेशन शक्ति’ कहा जाता था।
- वर्ष 2003 में भारत ने ‘नो फर्स्ट यूज़‘ के अपने परमाणु सिद्धांत को अपनाया यानी भारत अपने क्षेत्र पर परमाणु हमले के खिलाफ जवाबी कार्रवाई में ही परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेगा।
- भारत के पास पिछले वर्ष की शुरुआत में 150 परमाणु हथियार थे, जो कि वर्ष 2021 की शुरुआत तक अनुमानतः 156 तक पहुँच गए हैं, जबकि पाकिस्तान के पास वर्तमान में 165 परमाणु हथियार हैं ।
- पाकिस्तान ने ‘नो फर्स्ट यूज़’ नीति को नहीं अपनाया है और इसके परमाणु सिद्धांत के विषय में बहुत कम जानकारी मौजूद है।
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