मछुआरे परिवार में जन्मे APJ अब्दुल कलाम का राष्ट्रपति पद तक का सफर.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जन्मदिवस पर विशेष
आजादी के 75वें वर्ष में देश जब अमृत महोत्सव मना रहा है, ऐसे में विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में भारत को स्वावलंबन की राह पर आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले डा. एपीजे कलाम को याद करना स्वाभाविक है। उनके नेतृत्व में देश अग्नि और पृथ्वी जैसी उन्नत मिसाइलों को स्वदेशी तकनीक से बनाने में सक्षम हो सका।
शिक्षक, प्रख्यात वैज्ञानिक, मिसाइल मैन, देश के राष्ट्रपति एवं भारत के ‘रत्न’ डा. एपीजे अब्दुल कलाम कहा करते थे कि सपने देखो, सपने देखोगे, तभी वे सच होंगे। खुद को भी वह एक शिक्षक के रूप में याद किया जाना पसंद करते थे। युवाओं से उनकी विशेष अपेक्षाएं थीं कि वे कुछ अलग सोचें, नया करने, खोजने व आविष्कार करने का साहस रखें, अनजान राहों को परखें, यात्राएं करें, समस्याओं का समाधान निकालें। वे भारत के अंतरिक्ष और मिसाइल विकास कार्यक्रम के नेतृत्वकर्ता थे। इसी कारण उन्हें ‘मिसाइल मैन’ भी कहा जाता है। उन्होंने देश के महत्वपूर्ण संगठनों डीआरडीओ और इसरो को आगे बढ़ाने में प्रमुख जिम्मेदारी भी संभाली थी।
मछुआरा परिवार में जन्म : एपीजे कलाम अर्थात अवुल पकिर जैनुलआब्दीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक मुस्लिम मछुआरा परिवार में हुआ था। उनके पिता जैनुलआब्दीन एक नाविक थे और मां गृहिणी। पिता की आर्थिक मदद के लिए स्कूल से तीन किमी.दूर रामेश्वरम रोड रेलवे स्टेशन से समाचार पत्र लेकर उसका वितरण करने जाते थे।
उनकी आरंभिक शिक्षा रामेश्वरम पंचायत एलीमेंट्री स्कूल से हुई। इसके बाद उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी से 1957 में एयरोनाटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। जब कलाम पांचवीं में थे, तो स्कूल के शिक्षक शिव सुब्रमानिया अय्यर बच्चों को पक्षियों के उड़ने के सिद्धांत के बारे में बता रहे थे, पर किसी को समझ में नहीं आया। तब वह उन्हें लेकर समंदर किनारे गए और उन्हें दिखाया कि कैसे पक्षी 10, 20 एवं 30 के झुंड में उड़ान भरते हैं।
जब वे पंखों को फड़फड़ाते हैं, तो उन्हें लिफ्ट मिलती है और वे उड़ जाते हैं। इस पर एक बच्चे ने प्रश्न किया कि उनका इंजन कहां होता है और ऊर्जा कहां से मिलती है? शिक्षक ने जवाब दिया कि पक्षी अपनी इच्छाशक्ति से उड़ान भरते हैं। इस क्लास ने बालक कलाम के पर गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने निश्चय कर लिया कि आगे चलकर वे एयरोनाटिक्स में ही शिक्षा हासिल करेंगे।
स्वदेशी एसएलवी-3 सैटेलाइट निर्माण में अहम भूमिका : डा. कलाम फाइबर ग्लास टेक्नोलाजी में महारत हासिल की थी। उन्होंने इसरो में युवा वैज्ञानिकों की एक टीम का नेतृत्व करते हुए कंपोजिट राकेट मोटर केसेज के डिजाइन एवं डेवलपमेंट की जिम्मेदारी संभाली। यहीं प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में उन्होंने भारत के पहले स्वदेशी सैटेलाइट लांच व्हीकल, ‘एसएलवी-3’ के विकास में अहम योगदान दिया।
‘एसएलवी-3’ से ही ‘रोहिणी’ उपग्रह को जुलाई 1980 में पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया था। इस उपलब्धि के बाद ही भारत विश्व के एक्सक्लूसिव स्पेस क्लब में शामिल हो गया। दो दशक तक इसरो में अपनी सेवाएं देने के बाद वह डीआरडीओ चले गए। वहां वे इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आइजीएमडीपी) के प्रमुख थे। उनके ऊपर ही ‘अग्नि’ एवं ‘पृथ्वी’ मिसाइल के डेवलपमेंट एवं आपरेशन की जिम्मेदारी थी।
उन्होंने डिपार्टमेंट आफ एटामिक एनर्जी के साथ मिलकर सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मिसाइल प्रणाली विकसित करने के साथ ही तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की प्रेरणा से ‘पोखरण-2’ परमाणु परीक्षण को अंजाम दिया। इस परीक्षण के बाद ही भारत परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनने में सफल रहा। इससे पहले परमाणु विज्ञानी राजा रमन्ना (जिनकी देखरेख में भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किया था) ने भी कलाम को वर्ष 1974 में पोखरण में परमाणु परीक्षण देखने के लिए बुलाया था।
रक्षा-चिकित्सा क्षेत्र में अनुपम योगदान : रक्षा उपकरणों के विकास में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी कलाम ने कई प्रयास किए। इसमें लाइट काम्बैट एयरक्राफ्ट विकसित करने जैसे तमाम प्रोजेक्ट्स शामिल थे। उनका योगदान बायो-मेडिकल क्षेत्र में भी कम नहीं रहा। 1994-1996 के बीच चिकित्सा विशेषज्ञों की एक टीम के साथ मिलकर उन्होंने कलाम-राजू (डा. कलाम एवं हृदय रोग विशेषज्ञ डा. सोमा राजू) स्टेंट विकसित किया।
जनता के राष्ट्रपति : रक्षा विज्ञानी के तौर पर उनकी प्रसिद्धि के मद्देनजर ही तत्कालीन एनडीए की गठबंधन सरकार ने उन्हें वर्ष 2002 में राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। 25 जुलाई, 2002 को वे देश के 11वें राष्ट्रपति बने। वे देश के ऐसे तीसरे राष्ट्रपति थे, जिन्हें देश का प्रथम नागरिक बनने से पहले ही ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जा चुका था।
उनसे पहले डा. राधाकृष्णन और डा. जाकिर हुसैन को यह सम्मान प्राप्त हुआ था। अपनी छवि के कारण उन्हें ‘जनता का राष्ट्रपति’ कहा गया। 27 जुलाई, 2015 को आइआइएम, शिलांग में छात्रों को संबोधित करने के दौरान वे अस्वस्थ हुए और फिर हृदय गति रुक जाने से उनका निधन हो गया। उनकी यादें देशवासियों को सदा प्रेरित करती रहेंगी।
विजन-2020 : डा. कलाम ने भारत को विकसित देश बनाने का सपना देखा था। उनके नेतृत्व में 500 विशेषज्ञों की टीम ने डिपार्टमेंट आफ साइंस एंड टेक्नोलाजी के तहत ‘इंडिया विजन-2020’ के नाम से पहला डाक्यूमेंट तैयार किया था, जिसमें पहली बार वर्ष 2020 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ाने का सपना था। नवंबर 1999 से नवंबर 2001 के बीच वे भारत सरकार के प्रधान विज्ञानी सलाहकार रहे।
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