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 अम्बिका भवानी के दरबार में अलग अलग मंत्रो से विभिन्न पदार्थो से होता है संपुट होम

अम्बिका भवानी के दरबार में अलग अलग मंत्रो से विभिन्न पदार्थो से होता है संपुट होम

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श्रीनारद मीडिया, मनोज तिवारी, छपरा (बिहार):


आम पूजा-पाठ या अनुष्ठान मे होम का विशेष महत्व बताया गया है।पूजा के क्रम मे और पूजनोपरान्त सनाथन वैदिक शास्त्रो मे होम का प्रावधान बताया गया है।नवरात्रि मे माॅ अम्बिका के होम का विशेष महत्व है।दुर्गा शप्तशति के सात सौ श्लोको मे चुनिन्दा श्लोको से अलग अलग पदार्थो से होम की विधि बतलाई गई है।अन्य दावी देवताओ और नवग्रह के होम के बाद देवी के बीज मंत्र से माॅ का हवण होता है।इसके बाद दुर्गा सप्तशती से हवण करने का प्रावधान है।

 

सिद्ध पीठ आमी मे संपुट होम भी देखने को मिलता है।हलाकि आम लोग बीज मंत्र से धूप और शाकल्य (तील,जव,चाल)और हविष (पंचमेवा युक्त बिना चीनी के तश्मई )से होम करते है।वही कुछ लोग महा नवमी को माॅ के प्रिय सभी प्रकार के जडी-बूटी,पंचमेवा,नैवेद्य,गुगुल,कमलगट्टा,भोजपत्र,केशर,कस्तुरी,पत्र-पुष्प,धूप से माॅ का संपुट होम कर कृपा प्राप्ति की कामना करते है।

सनातन धर्मशास्त्रो मे देवी – देवताओ के दो मुख बताए गये है जिसमे पहला अग्नी और दूसरा ब्रमहण है।अग्नी के माध्यम से संकल्प कर दी गई आहुतु और होम को अग्नी देव के माध्यम से अर्पित किया जाता है।वही संकल्प कर देवी देवताओ के निमित ब्राम्हण और मन्दिर के पूजेडियो को भेट किया जाता है।हम देवी या देवता के मन्दिर मे जो प्रासद,वस्त्र और पत्र-पुष्प अर्पित करते है उसे हम या हमारे बीच के लोग ही उपभोग करते है जबकी होम के माध्यम से अर्पित वस्तुओ को सीधे परमात्मा को अर्पित माना जाता है।

इसी लिए नवरात्रि मे होम का विशेष महत्व बताया गया है।जो नवरात्रि व्रत नही करते है मिष्टान , पंचमेवा या फल-फूल मा को भोग नही लगा पाते है वे भी यदि वेदोक्त रिति से माॅ का होम करे तो उनपर मैया अम्बिका की असीम कृपा प्राप्त होती है।माॅ के होम करते वक्त श्रद्धा व भक्ति अनिवार्य होता है नही तो वो अग्नी देव तक ही सीमित रह जाता है।

आमी मंदिर के पूजेडी सेवा निवृत शिक्षक शिव कुमार तिवारी उर्फ भोला बाबा,गणेश तिवारी उर्फ चुनचुन बाबा,नीलु तिवारी आदि ने एक स्वर से बताया की माॅ भाव की भूखी है उनको किसी व्यंजन या भोग प्रिय नही उन्हे तो सीर्फ भक्ति प्रिय है।हम अपने भक्ति वस उनको जो अर्पित करते है उनके दाता भी तो माॅ ही है।

उन्ही की कृपा से हमे जो कुछ प्राप्त हुआ है वह प्रसाद स्वरूप है हम एक सडसो के दाना को नही बना सकते सब कुछ माॅ की कृपा व दया से सुलभ है।यदि हमारे जरूरतो से ज्यादा माॅ ने दिया है तो उसे होम,दान,भोग मे अर्पित कर उनपर कृपा नही करते बल्कि अपने आमद के स्त्रोतो को और बढाते है।

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