वीर सावरकर को लेकर इतना विवाद क्यों ?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भारत और इसके स्वतंत्रता संग्राम के लिए वी डी सावरकर की प्रतिबद्धता पर संदेह करने वाले लोगों पर पलटवार करते हुए कहा कि स्वतंत्रता सेनानी की देशभक्ति और वीरता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को ‘‘कुछ शर्म’’ करनी चाहिए। गृह मंत्री ने यहां राष्ट्रीय स्मारक सेलुलर जेल में सावरकर के चित्र पर माल्यार्पण करने के बाद कहा कि इस जेल में तेल निकालने के लिए कोल्हू के बैल की तरह पसीना बहाने वाले और आजीवन कारावास की दो सजा पाने वाले व्यक्ति की जिंदगी पर आप कैसे शक कर सकते हैं।
शर्म करो। इस जेल में भारत के लंबे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों को कैद किया गया था। शाह ने कहा कि सावरकर के पास वह सब कुछ था, जो उन्हें अच्छे जीवन के लिए चाहिए होता, लेकिन उन्होंने कठिन रास्ता चुना, जो मातृभूमि के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भारत की आजादी के 75 साल के उपलक्ष्य में सरकार ‘‘आजादी का अमृत महोत्सव’’ मना रही है और इसी के तहत एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए शाह ने कहा कि इस सेल्युलर जेल से बड़ा तीर्थ कोई नहीं हो सकता। यह स्थान एक ‘महातीर्थ’ है, जहां सावरकर ने 10 साल तक अमानवीय यातना सहन की, लेकिन अपना साहस, अपनी बहादुरी नहीं खोई।
विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रखर सेनानी, महान देशभक्त, ओजस्वी वक्ता, दूरदर्शी राजनेता, इतिहासकार, एक बहुत निराले साहित्यकार-कवि और प्रखर राष्ट्रवादी थे। उन पर लिखी गयी यह पुस्तक एवं इसका विमोचन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के इस बयान के बाद कि आजादी के बाद वीर सावरकर को बदनाम करने की मुहिम चली थी, पर विवाद गहराया हुआ है।
न केवल मोहन भागवत बल्कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के यह कहने पर कि सावरकर ने महात्मा गांधी के कहने पर दया याचिका दायर की थी, राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी कहा कि सावरकर के बारे में ऐतिहासिक तथ्य है कि उन्होंने अपनी रिहाई के लिए माफीनामा लिखा था। जबकि सावरकर के पोते रंजीत सावरकर ने कहा है कि यह माफीनामा नहीं था बल्कि जेल में बंद सभी क्रांतिकारियों की रिहाई के लिए यह एक दया याचिका थी।
सावरकर का जीवन-दर्शन एवं राष्ट्र-निर्माण में योगदान अविस्मरणीय है, आधार-स्तंभ एवं प्रकाश-किरण है। उनकी प्रेरणाएं एवं शिक्षाएं इसलिये प्रकाश-स्तंभ हैं कि उनमें नये भारत को निर्मित करने की क्षमता है। उन्होंने एक भारत और मजबूत भारत की कल्पना की जिसे साकार करने का संकल्प हर भारतीय के मन में है। हम आजाद हो गये, लेकिन हमारी मानसिकता अभी भी गुलामी की मानसिकता को ओढ़े है। इन्हीं राजनीतिक स्वार्थों एवं गुलामी मानसिकता से जुड़े लोगों ने ही वीर सावरकर के खिलाफ झूठ फैलाया है।
बार-बार यह कहा गया कि सावरकर ने ब्रिटिश सरकार के सामने कई बार माफीनामा लिखा। लेकिन रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के अनुसार सच्चाई यह है कि दया याचिका उन्होंने खुद को रिहा करने के लिए नहीं दाखिल की थी। एक सामान्य कैदी अपने लिए दया याचिका दायर कर सकता है। महात्मा गांधी ने उन्हें माफीनामा दायर करने के लिए कहा था। महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने दया याचिका दायर की। महात्मा गांधी ने सावरकरजी को रिहा करने की अपील भी की थी, उन्होंने कहा था कि जिस तरह से आजादी हासिल करने के लिए हम शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन चला रहे हैं, वैसे ही सावरकर भी आंदोलन चलाएंगे। सावरकरजी की तरफ से माफीनामा लिखने की बात बेबुनियाद और गलत है।’
भारत को सशक्त हिन्दू राष्ट्र के रूप में उभरते हुए देखना अनेक राष्ट्र-विरोधी लोगों का मुख्य एजेंडा रहा है। ऐसे ही निन्दक एवं आलोचक लोगों को सब कुछ गलत ही गलत दिखाई देता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कहीं भी आहट भी हो जाती है तो भूकम्प-सा आ जाता है। मजे की बात तो यह है कि इन तथाकथित राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं को संघ की एक भी विशेषता दिखाई नहीं देती। जबकि संघ में राष्ट्र-निर्माण के लिये कितने रचनात्मक एवं सृजनात्मक काम हो रहे हैं।
निन्दा का वातूल संघ को विचलित नहीं कर पाता एवं प्रशंसा की थपकियां उसे प्रमत्त नहीं बना सकती- ऐसा है अनूठा एवं विलक्षण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं उसका समूचा संगठनात्मक ढांचा। संघ के नेतृत्व ने निन्दा और प्रशंसा- दोनों को सहना सीखा है, इसलिये संघ एवं उनके नायक महान् है। संघ पर कीचड़ उछालने की जो हरकतें हो रही हैं, उससे संघ का वर्चस्व धूमिल होने वाला नहीं हैं।
क्योंकि इसकी नीति विशुद्ध राष्ट्र-निर्माण की है और सैद्धान्तिक आधार पवित्रता-पुष्ट है। विरोध करने वाले व्यक्ति स्वयं भी इस बात को महसूस करते हैं। फिर भी आम-जनता को गुमराह करने के लिये और उनका मनोबल कमजोर करने के लिये जो भी राजनीतिक दल एवं नेता उजालों पर कालिख पोत रहे हैं, इससे उन्हीं के हाथ काले होने की संभावना है। ऐसे लोगों को सद्बुद्धि आये, वे अपना समय एवं श्रम किसी राष्ट्र-निर्माण के रचनात्मक काम में लगायें तो राष्ट्र की सच्ची सेवा हो सकती है।
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