बेमौसम बारिश ने किसानों की मुश्किलों को बढ़ा दिया है.

बेमौसम बारिश ने किसानों की मुश्किलों को बढ़ा दिया है.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

किसानों पर कुदरत का कहर एक बार फिर बरपा है। इस वर्ष भी बिन मांगी बारिश ने खड़ी फसलों में बेहिसाब तबाही मचाई है। धान कटाई के ऐन वक्त पर हुई बेमौमस की जोरदार बारिश ने खेतों में पकी खड़ी फसल को पानी-पानी कर दिया। हजारों-लाखों हेक्टेयर फसल चौपट हुई। उत्तर प्रदेश का तराई क्षेत्र जिसे धान का कटोरा कहते हैं, वहां बहुतायत रूप से धान की फसल होती है।

लेकिन बीते 16-17 अक्टूबर को हुई बारिश ने कई एकड़ फसल को पानी में बहा दिया। खेतों में उजड़ती फसल को किसान बेबस होकर बस देखते ही रहे। करते भी क्या, आखिर कुदरत के कहर के आगे भला किसका जोर। बारिश भी ऐसी जोरदार हुई जिसने किसानों को संभलने तक का मौका नहीं दिया। कुछ खेतों की फसल कट गई थी, पर उसे सुरक्षित जगहों तक किसान नहीं पहुंचा पाए, वह फसल खेतों में भरे लबालब पानी में भीग गयी। पानी से भीगा अनाज कुछ ही घंटों में काला पड़ जाता है जिसे कोई खरीदता भी नहीं और न खाने योग्य बचता है।

गौरतलब है, कृषि पर वैसे ही बीते कुछ समय से संकट के बादल छाए हुए हैं। बारिश ने संकट को और गहरा दिया है। अगर याद हो तो इन्हीं दिनों में पिछले वर्ष भी बारिश हुई थी, तब गनीमत ये थी कि फसल तकरीबन कट गई थी, कुछ ही शेष बची थी। किसान धान ब्रिकी के लिए ट्रालियों के साथ मंडियों के बाहर खड़े थे जिसमें रखा धान पानी से सड़ गया था।

तब सरकार ने मुआवजे के रूप में कुछ महीनों बाद किसानों को लागत से कहीं कम पैसा दिया था। ये बात सभी जानते हैं कि इस तरह का मुआवजा कृषि संकट या किसानों की समस्याओं को नहीं सुलझा सकता। सौ रुपए से ऊपर डीजल का भाव है। बाकी यूरिया, डाया, पोटास जैसी खादों की दोगुनी-तिगनी कीमतों ने पहले ही अन्नदाताओं की कमर तोड़ रखी है। कायदे से अनुमान लगाएं तो किसानों की लागत का मूल्य भी फसलों से नहीं लौट रहा। यही वजह है कि खेती नित घाटे का सौदा बनती जा रही है। इसी कारण किसानों का धीरे-धीरे किसानी से मोहभंग भी होता जा रहा है।

सच्चाई ये है कि फसलों को उगाने के वक्त बैंकों से लिए लोन को भी किसान नहीं चुका पाते। लोन का भुगतान नहीं करने पर लगातार किसानों द्वारा आत्महत्याओं की घटनाओं को अब हुकूमतें भी गंभीरता से नहीं लेतीं। गंभीरता से इसलिए नहीं लेतीं क्योंकि इसका उपाय उनके पास है नहीं। बेमौमस बारिश से बेहाल और दुखी अन्नदाताओं की परेशानियों का हम-आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते, ये ऐसा वक्त होता है जब धान कटाई के बाद खेत में दूसरी फसल यानी गेहूं की बुआई करनी होती है।

इसलिए धान की कटाई दशहरे के आसपास शुरू हो जाती है और दीवाली आने तक खेतों में गेहूं को बीज दिया जाता है। धान को काटने के बाद किसान तुरंत मंडियों में बेचने के लिए भागते हैं, पर वहां भी ठगे जाते हैं। समस्या वहां उनके पीछे-पीछे चली जाती है। उस समस्या से मंडी के आढ़तियों और बिचौलियों को खूब फायदा होता है। इस वर्ष धान का सरकारी रेट 1940 रुपए प्रति क्विटंल निर्धारित है, लेकिन आढ़ती 1200-1500 सौ के ही आसपास खरीद रहे हैं।

क्या ये गड़बड़झाला प्रशासन को नहीं पता होता? अच्छे से पता है लेकिन बोलते इसलिए नहीं क्योंकि इसमें उनके हिस्से का अप्रत्यक्ष रूप से मुनाफा छिपा होता है।

बहरहाल, बेमौसम बारिश से कई राज्यों के किसान प्रभावित हुए हैं जिनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के किसान हैं, क्योंकि वहां धान की फसल प्रमुख रूप से उगाई जाती है। हालांकि बारिश से दूसरी फसलों को भी जबरदस्त नुकासान हुआ है जिनमें गन्ना, दालें और सब्जियां प्रमुख हैं। बारिश से धान तो खराब हुआ ही है, साथ ही जमीन में ज्यादा नमी आ जाने से अगली फसल गेहूं की बुआई भी लेट होगी, जब तक जमीन में नमी दूर नहीं होती, खेत बुआई के लायक नहीं होंगे। नमी वाली जमीन में बुआई करने का मतलब बीज जमीन में ही सड़ सकता है।

तराई के जिले पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, गोंडा, कुछ बिहार के जिले व उत्तराखंडी तराई क्षेत्र के अलावा तराई से सटे नेपाल के खेतीबाड़ी वाले क्षेत्र में भी बिन मांगी बारिश ने कहर बरपाया है। यूपी में चुनावी मौसम है, शायद किसानों को राहत देने की तुरंत घोषणाएं हों और मुआवजे का वितरण तत्कालिक रूप से किया जाए। पर, ये सब किसानों की मौजूदा समस्याओं का विकल्प नहीं हो सकता। कागजों में किसानों को सरकारी सुविधाओं की कमी नहीं है। फसलों को एमएसपी पर खरीदने की बातें कही जाती हैं, अन्य फसलों का उचित दाम कागजों में दिया जाता है।

लेकिन धरातल पर सच्चाई कुछ और बयां करती हैं। दरअसल, सच्चाई तो ये है किसान बेसहारा हुआ पड़ा है। सुख-सुविधाओं से कोसों दूर है। सब्सिडी वाली खादों को भी उसको ब्लैक में खरीदना पड़ रहा है। यूरिया ऐसी जरूरी खाद है जिसको जमीन में डाले बिना फसलों को उगाना संभव नहीं? उसकी किल्लत से भी उन्हें जूझना पड़ रहा है।

देश में यूरिया की किल्लत एकाध वर्षों से लगातार है, बावजूद इसके यूरिया को पड़ोसी मुल्क नेपाल में ब्लैक करने की खबरें सामने हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही इंडो-नेपाल बॉर्डर पर बीएसएफ ने कई बोरे खाद को जप्त किया था। फसलों पर जिस तरह से कुदरत की मार सालों-साल पड़ रही है उसे गंभीरता से देखते हुए सरकार को प्रत्येक फसलों पर किसानों को इंश्योरेंस देने की योजना बनानी चाहिए। सदियों से लागू निष्क्रिय पुराने बीमा प्रावधान को रिफॉर्म करने की दरकार है।

बेशक इंश्योरेंस प्लान का चार्ज किसानों से वसूला जाए। पर, ऐसी नीति-नियम बनाए जाने चाहिए जिससे किसान बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि व बिजली गिरने आदि घटनाओं से बर्बाद हुई फसलों के नुकसान से उबर सकें। इससे कृषि पर आए संकट से भी लड़ा जाएगा क्योंकि इस सेक्टर से न सरकार मुंह फेर सकती है और न ही कोई और? कृषि सेक्टर संपूर्ण जीडीपी में करीब बीस-पच्चीस फीसदी भूमिका निभाता है।

कायदे से देखें तो कोरोना संकट में डावांडोल हुई अर्थव्यवस्था को कृषि सेक्टर ने ही उभारा। इसलिए कृषि को हल्के में नहीं ले सकते। अगर लेंगे तो उसका खामियाजा भुगतने में हमें देर नहीं लगेगी।

Leave a Reply

error: Content is protected !!