क्या आनलाइन शिक्षा का नकारात्मक असर हो रहा है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

यह सही है कि शिक्षा व्यवस्था को काफी हद तक नियमित बनाए रखने में आनलाइन माध्यम की बड़ी भूमिका रही है। लेकिन धीरे धीरे इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं जो इस बात को इंगित करते हैं कि सावधानी के साथ सभी कक्षाओं के बच्चों के लिए आफलाइन पढ़ाई शुरू होनी चाहिए। हाल ही में कोलकाता स्थित एक रिसर्च सेंटर ने विद्यार्थियों पर आनलाइन शिक्षा के प्रभाव पर अध्ययन किया है। इसके तहत विभिन्न स्कूलों में छात्रों पर आनलाइन शिक्षा के प्रभाव पर एक रिपोर्ट तैयार की गई। इसमें सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के स्कूली छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों से राय ली गई।

इसमें यह जानने का प्रयास किया गया कि आनलाइन शिक्षण व्यवस्था में छात्रों को उचित शिक्षा मिल रही है या नहीं। छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों को किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, इसकी जानकारी जुटाई गई और कुछ निजी सवालों के जवाब जानने के लिए छात्रों को विशेष प्रश्नपत्र दिए गए। साथ ही शोधकर्ताओं ने सीधे उनसे फोन पर भी बात की। इसके बाद जो तस्वीर सामने आई वह बेहद चिंता का विषय है।

दरअसल इस सर्वे में सामने आया है कि आनलाइन शिक्षा से बच्चों में असमानता बढ़ रही है। जिन घरों में केवल एक स्मार्टफोन है और बच्चे अधिक हैं, उनमें अधिकांश माता-पिता आनलाइन कक्षाओं के लिए सबसे बड़े बच्चे को फोन सौंप रहे हैं। ऐसे में उस समय दूसरे बच्चे आनलाइन क्लास में शामिल नहीं हो पा रहे हैं। वहीं, जिन बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं है, वे हीन भावना से पीड़ित हैं। अक्सर देखने में आता है कि दो बच्चों में से अगर बड़ी क्लास वाले एक बच्चे के पास स्मार्टफोन है तो यह छोटे बच्चे के मन में द्वेष उत्पन्न कर रहा है। ऐसे में असमंजस की स्थिति पैदा होती है और फोन पारिवारिक कलह का कारण बनता है।

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दूसरी समस्या है कि जो माता-पिता अपने बच्चों को आनलाइन पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन नहीं दिला पा रहे हैं, उनके बच्चे उसी समय उनके फोन से पढ़ने का जतन करते हैं जब माता-पिता घर पर होते हैं। लिहाजा ऐसे बच्चों में खुद को दूसरों के मुकाबले पिछड़ने का डर हावी हो रहा है। साथ ही वो दूसरे परिवारों से अपने परिवार को पिछड़ा मानकर मानसिक अवसाद का शिकार भी हो रहे हैं।

इसके अलावा भी इस सर्वे में कई समस्याएं उजागर हुई हैं, जैसे कई छात्र अपने फोन को म्यूट करके आनलाइन क्लास में बैठे तो रहते हैं, पर वे अन्यत्र व्यस्त रहते हैं। शिक्षक छात्र में सीधा संवाद न होने से भी कई छात्र ठीक से समझ नहीं पाते हैं। वहीं कई शिक्षक तमाम कोशिशों के बावजूद आनलाइन ठीक से पढ़ा नहीं पा रहे हैं। परीक्षा भी पारदर्शी तरीके से नहीं हो पा रही है।

बहरहाल इन तमाम बातों पर गौर करें तो पता चलता है कि आनलाइन शिक्षण महज खानापूर्ति है। इससे शिक्षण का उद्देश्य पूरा नहीं हो पा रहा है। हालांकि इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन डिजिटल आधारित होना इसकी सबसे बड़ी कमजोरी है। चूंकि आनलाइन पढ़ाई स्मार्टफोन से नहीं, बल्कि टैबलेट, प्रोजेक्टर, पीसी और स्मार्टरूम से संचालित की जा सकती है,

ऐसे में हर घर में स्मार्टरूम और अन्य संबंधित उपकरण न होने के कारण शिक्षा की यह व्यवस्था पूर्णतया कारगर नहीं हो पा रही है। इसके विपरीत जो बच्चे आनलाइन पढ़ाई में रात-दिन लगे रहते हैं, उनके लिए भी जोखिम बढ़ गया है। अधिक समय तक डिजिटल स्क्रीन से चिपके रहने वाले बच्चे अनिद्रा, आंखों में भारीपन, चिड़चिड़ापन समेत कई अन्य बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। बच्चों की मन:स्थिति पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है।

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मनोचिकित्सक भी यह चेतावनी दे चुके हैं कि अनिद्रा, उदासी आदि बीमारियों से पीड़ित बच्चों, युवाओं की संख्या अस्पताल में लगातार बढ़ रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि बच्चे स्मार्टफोन से अधिक समय तक चिपके रहते हैं। अनेक मनोचिकित्सकों ने विद्यालयों को सलाह दी है कि 30 मिनट से अधिक आनलाइन कक्षाएं संचालित नहीं होनी चाहिए। या फिर बच्चों को बीच-बीच में लंबा ब्रेक देते रहें।

लगातार अधिक समय तक पढ़ाने से बच्चों का ध्यान केंद्रित नहीं रह पाता। बच्चों में आए बदलाव को संज्ञान में लेकर अभिभावक इन सबका ध्यान रखें अन्यथा स्मार्टफोन की लत लग जाने पर इसका घातक असर होगा और अनिद्रा व सनक जैसे मनोविकार उत्पन्न हो सकते हैं। भावनात्मक अस्थिरता, ध्यान केंद्रित करने में परेशानी, उदास रहना, आंखें व सिर में दर्द, कमजोरी महसूस करना आदि लक्षण बच्चों में स्मार्टफोन फोबिया के हो सकते हैं।

अमेरिकन एकेडमी आफ पीडियाटिक्स ने बच्चों के स्क्रीन टाइम पर एक शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसमें पांच साल तक के बच्चों के लिए एक घंटे से ज्यादा स्क्रीन का उपयोग न करने की सलाह दी गई है। वहीं छह साल से ज्यादा बड़े बच्चों का स्क्रीन टाइम सीमित रखने तथा बच्चों को घर से बाहर खेलने या अन्य गतिविधियों के लिए पर्याप्त समय देने की बात कही गई है। इसके अलावा हाल ही में देश के छह राज्यों में यूनीसेफ ने आनलाइन शिक्षा व्यवस्था की वास्तविकता जानने के लिए सर्वे किया है।

इस रिपोर्ट में सामने आया है कि पांच से 13 वर्ष समूह के छात्रों के 73 फीसद माता-पिता, 14 से 18 वर्ष के 80 फीसद किशोरों के माता-पिता और 67 प्रतिशत शिक्षकों का कहना है कि बच्चे विद्यालय जाने की तुलना में बहुत कम सीख पा रहे हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक 33 प्रतिशत शिक्षकों का कहना है कि इन आभासी कक्षाओं से छात्रों को कोई खास फायदा नहीं हो रहा। इन कक्षाओं में 30 से 40 फीसद शहरी छात्र पढ़ाई से जुड़ ही नहीं पाए। ग्रामीण क्षेत्रों में यह स्थिति और बदतर रही, जहां 50 से 60 प्रतिशत विद्यार्थी पढ़ाई से दूर रहे। ये तमाम तथ्य इस बात को इंगित करते हैं कि आनलाइन शिक्षा प्रारूप अधिक कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं।

देश के अधिकांश राज्यों में स्कूलों का आफलाइन संचालन आरंभ हो चुका है। हालांकि दिल्ली समेत कुछ अन्य राज्यों में आठवीं तक की पढ़ाई आनलाइन ही हो रही है। जिन राज्यों में नियमित कक्षाएं शुरू हुई हैं, वहां भी कुछ हद तक आनलाइन पढ़ाई जारी है, क्योंकि सभी बच्चे स्कूल नहीं आ रहे हैं। कुल मिलाकर आनलाइन पढ़ाई जीवन का हिस्सा बन गई है। हालांकि कोरोना काल में पढ़ाई का यह विकल्प अवश्य प्रयोग में आया, लेकिन इसके लंबे समय तक जारी रहने के दुष्परिणाम भी अब सामने आ रहे हैं।

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