भारत-आसियान देशों के संबंधों की मजबूती पर जोर.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना काल में भी भारत और आसियान देशों के बीच आपसी संबंधों की मजबूती की ओर जो संकेत किया, वह यही बताता है कि सहयोग भाव के सहारे कठिन से कठिन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। भारत-आसियान सम्मेलन में रणनीतिक साझेदारी, व्यापार, संपर्क बढ़ाने सहित कोविड महामारी से उपजी चुनौतियों से निपटने के उपायों पर भी विचार किया जाएगा।

चूंकि इस सम्मेलन को संबोधित करने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री जी-20 सम्मेलन में शामिल होने इटली जा रहे हैं और वहां भी महामारी के प्रबंधन और वैश्विक स्वास्थ्य ढांचे पर चर्चा होनी है, इसलिए यह आशा की जाती है कि भारत की इस मांग पर गौर किया जाएगा कि कोरोना की चुनौती से निपटने के लिए दुनिया के बीच व्यापक सहयोग कायम हो। यह खेद का विषय है कि इस मामले में अभी तक वैसा वैश्विक सहयोग देखने को नहीं मिला, जैसा अपेक्षित था। परिणाम यह है कि विभिन्न देशों के बीच आवागमन सुगम नहीं हो सका है। इसके चलते विश्वअर्थव्यवस्था को गति देने में सफलता नहीं मिल पा रही है।

यह विचित्र है कि कई देश यह बुनियादी बात समझने से इन्कार कर रहे हैं कि यदि आवागमन और विशेष रूप से हवाई यातायात को सुगम नहीं बनाया गया तो इससे अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में मुश्किल ही होगी। जब विभिन्न देशों को इस पर तत्परता दिखानी चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को कोविड रोधी टीके लगें, तब यह देखने को मिल रहा है कि कई देश दूसरे देशों में बने टीकों को मान्यता देने से इन्कार कर रहे हैं। इस मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन का रवैया भी बेहद निराशाजनक है। वह टीकों को मान्यता देने के मामले में पक्षपात करता और दुराग्रह का परिचय देता दिख रहा है।

ऐसा लगता है कि वह कोरोना वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने में बाधा डालने वाले चीन के इशारे पर काम कर रहा है। यह संदेह इसलिए, क्योंकि उसने चीन में बने टीकों को तो तुरंत मान्यता दे दी, लेकिन भारत में बन रही कोवैक्सीन को हरी झंडी देने में आनाकानी कर रहा है। नि:संदेह बात केवल विश्व स्वास्थ्य संगठन के रवैये की ही नहीं, इसकी भी है कि अमेरिका की टीका बनाने वाली बड़ी कंपनियां इसके लिए तत्पर नहीं कि उनके टीके अन्य देशों में भी बन सकें।

ये कंपनियां कोरोना संक्रमण का खतरा बरकरार रहने के बाद भी ऐसे देशों पर मनमानी शर्ते थोपना चाह रही हैं, जो उनके टीके अपने यहां बनाना चाहते हैं। आखिर ऐसे में यह कैसे कहा जा सकता है कि कोरोना से लड़ाई में एकजुटता दिखाई जा रही है?

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