विस्मार्क का काम सरदार पटेल के काम के आगे फीका है ः दुर्गेश कुमार
श्रीनारद मीडिया‚ राकेश सिंह‚ स्टेट डेस्कः
वो लोग जो सरदार को भारत का विस्मार्क कहते हैं, वो न्याय नहीं करते. बिस्मार्क ने जर्मनी के मात्र 21 राज्यों का एकीकरण किया. दो राज्यों के बीच युद्ध भी कराये.
विस्मार्क का काम सरदार पटेल के काम के आगे फीका है. हम पश्चिम से ज्यादा प्रभावित होते हैं. सरदार पटेल ने बिना किसी बड़े युद्ध के भारत के 500 से अधिक रियासतों का एकीकरण किया.
यह एकीकरण कोई साधारण घटना नही है. यह आसान भी नहीं था. भारत के अंदर हैदराबाद, जम्मू कश्मीर जैसे राज्य थे जो भौगौलिक दृष्टिकोण से ब्रिटेन से बड़े राज्य थे.
जम्मू कश्मीर, हैदराबाद, बड़ौदा, ग्वालियर, मैसूर 21 तोपों की सलामी लेते थे. उदयपुर, इंदौर, भोपाल, त्रावनकोर, कोल्हापुर 19 तोपों की सलामी लेते थे, पंजाब, पटियाला, जोधपुर, जयपुर, बीकानेर 17 तोपों की सलामी लेते थे. फिर मैहर, शाहपुरा जैसे राज्य भी थे जो 9 तोपों की सलामी लेते थे. इनमें से अनेक के पास अपनी मुद्रा थी , अपनी ट्रेन थी.. ब्रिटिश साम्राज्य में इन्हें व्यापार, सुरक्षा की स्वतंत्रता थी. इन राजाओं के लिए इनके राज्य का अस्तित्व जीवन-मरण का प्रश्न था.
देश के 48% भौगोलिक क्षेत्र में जनसंख्या का भारतीयकरण हुआ.. इन 500 से अधिक रजवाड़ों के क्षेत्र में 28% आबादी रहती थी.
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सरदार पटेल के योगदान को कमतर दिखाने के लिए काफी कोशिश किया गया. नेहरू, इंदिरा गांधी जीतेजी भारत रत्न हो गई, राजीव गांधी मरणोपरांत एक माह के अंदर भारत रत्न हो गए. किन्तु सरदार पटेल को भारत रत्न पाने के लिए मरणोपरांत 1991 में नरसिंहा राव सरकार का इंतजार करना पड़ा.
लेकिन समकालीन विभूतियों द्वारा सरदार पटेल के योगदान की सराहना किया गया.
रूस के प्रधानमंत्री निकोलस बुलगानिन ने कहा कि आप भारतीय बड़े शानदार लोग हो. आपने कैसे इन राज्यों को भारत में मिला लिया वह भी बिना राजाओं को निपटायें. बुल्गानिन ने कहा यह जर्मनी के एकीकरण से बहुत बड़ा काम है जो सरदार पटेल ने किया है.
लेखक एच. वी. हडसन ने माउंटबेटन के हवाले से लिखा.. कि उन्हें संतोष है कि नेहरू नये राज्यों के मामलों के प्रभारी नहीं बनाये गये अन्यथा सब बिखर जाता. सरदार पटेल व्यवहारिक व्यक्ति हैं जो सबको एक करने जा रहे हैं.
सरदार पटेल की मौत के बाद एक कांग्रेस नेता एस. निजलीगंपा ने डायरी में नोट लिखा कि एक हजार नेहरू मिलकर भी यह काम नहीं कर सकते जो पटेल ने किया है.
डा. राजेन्द्र प्रसाद ने कहा कि अगर हम आज भारत के देशवासी है, देश के बारे में सोच रहे हैं, देश के बारे में बात कर रहे हैं, तो हम सरदार पटेल के के विराट व्यक्तित्व और उनके प्रशासनिक कौशल के प्रति कर्जदार है.
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हालांकि सरदार पटेल को लेकर ज्यादातर इधर-उधर की बातें तोड़-मरोड़ कर की जाती है. इसके पीछे एक यह भी कारण है कि सरदार पटेल ने अपनी बायोग्राफी नहीं लिखी. इसलिए दक्षिणपंथियों को मौका मिलता रहता है.
सरदार पटेल ने बायोग्राफी क्यों नहीं लिखा, इस संबंध में उनकी बेटी मणिबेन से पूछा गया कि “नेहरू और गांधी अपनी बायोग्राफी लिख रहे थे तो सरदार पटेल क्यों ऐसा नहीं किए. मणिबेन ने कहा कि सरदार साहब कहते थे कि इतिहास लिखने में समय बर्बाद करने की जगह क्यों नहीं इतिहास बनाया जाए?
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बिहार से सरदार पटेल क्यों विशेष हैं. यह जानने के लिए हमें राजेन्द्र बाबू को स्मरण करना होगा. यदि सरदार पटेल न होते तो देश के पहला राष्ट्रपति बिहारी नहीं दक्षिण भारतीय होते.
यह सरदार पटेल थे जो डा.राजेन्द्र प्रसाद का नाम आगे बढ़ाये और समर्थन किया. नेहरू ने सी. राजगोपालाचारी का समर्थन किया था. नेहरू ने
दूसरी बार भी 1957 चुनाव में राधाकृष्णन का समर्थन दिया. लेकिन इस बार नेहरू खुद सामने नहीं आना चाहते थे. लेकिन पार्टी ने राजेन्द्र बाबू को चुना.
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ऐसा नहीं है कि सरदार पटेल ही गाँधी के प्रति अथाह श्रद्धा रखते थे. सरदार के प्रति गाँधी का भी अनुराग था. गाँधीजी जब बारदोली आंदोलन में शामिल होने की तैयारी कर रहे थे तो उन्होंने कहा कि वो बल्लभ भाई के नेतृत्व में बारदोली में काम करेंगे. मैं बल्लभ भाई से उम्र में बड़ा हूँ.. उसके बड़े भाई की तरह हूँ. इसके बावजूद भी बारदोली का कमांडर बल्लभ भाई है.
बारदोली आंदोलन की सफलता के बाद अहमदाबाद में गाँधीजी की मौजूदगी में आयोजित सभा में बल्लभ भाई को सरदार पटेल की उपाधि दी गई.
तब सरदार पटेल ने कहा- “मैं इस सम्मान का हकदार नहीं हूँ.. जो बारदोली आंदोलन की सफलता के कारण आप मुझे दे रहे हैं. इस देश के किसानों की हालत अस्पताल के बेड पर पडे किसी मरीज की तरह है जिसकी बीमारी लाईलाज है, वह अपनी मृत्यु का इंतजार कर रहा है.. तभी एक सन्यासी आता है उसे दवा देता है. मैं तो सिर्फ उस सन्यासी के हाथों से दवा लेकर मरीज को देने वाला माध्यम मात्र हूँ. गाँधी जी वह सन्यासी है जिस पर पूरे गुजरात को गर्व है.”
वो आगे कहते हैं कि वो क्या है…सरदार ने कहा कि “आप सभी ने महाभारत में द्रोणाचार्य के उस भील शिष्य की कहानी सुनी होगी जो एक गुरु द्रोण की मूर्ति बनाकर पूजा करता था क्योंकि उसे गुरु से सीखने का भाग्य नहीं था. लेकिन वह गुरु द्रोण के अन्य शिष्यों से अधिक सीखा. हालांकि मुझे गुरु से मुलाकात हो चुकी है, किन्तु मुझे संदेह है कि मैं अपने गुरु के अन्य शिष्यो की भांति सीख सकूँगा.”
सरदार पटेल का महात्मा गाँधी के प्रति यह भाव, समर्पण सही साबित हुआ. नेहरू कुल 6 बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. सरदार पटेल सिर्फ एक बार 1931 में कांग्रेस अध्यक्ष बनें थे.
1929, 1936 और 1946 में कांग्रेसी चाहते थे कि सरदार पटेल अध्यक्ष बने.. मगर गाँधी नेहरू के नाम पर वीटो कर देते थे. सरदार पटेल यह सब स्वीकार करते रहे.
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अनेक लोग यह हाइपोथेटिकल प्रश्न उछालते है कि यदि सरदार पटेल भारत के प्रधानमंत्री होते तो क्या होता. इसका जवाब माउंटबेटन की एक टिप्पणी में तलाशा जा सकता है.
माउंटबेटन ने कहा कि जब नेहरू गंभीर चिंतन की मुद्रा में होते हैं तो आकाश और बादलों की तरफ देखते हैं और सरदार पटेल जमीन की तरफ देखते हैं.
नेहरू और पटेल की पारिवारिक पृष्ठभूमि ऐसी थी कि पटेल किसानों, प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य पर करते और नेहरू ग्लोबल सोच के थे.. डैम, बड़ी इंडस्ट्री, आईआईटी के पक्षधर थे. दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि में फर्क था. पारिवारिक पृष्ठभूमि का फर्क उनके सोच में भी दिखाई पड़ता है.
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यदि गाँधी गुरु द्रोण थे तो नेहरू अर्जुन थे और सरदार पटेल एकलव्य थे. गुरु द्रोण ने एकलव्य से अंगूठा मांग लिया था, गाँधी ने सरदार पटेल से नेहरू के लिए प्रधानमंत्री का पद मांग लिया. बस बात इतनी सी है.
विनम्र श्रद्धांजलि.
Durgesh Kumar आरा
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