विधाता की कृपा है कि मनुष्य के लिए एक रास्ता बंद किए जाने पर खोल देता है हजार रास्ते.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
गौरतलब है कि ‘ए स्टार इज बॉर्न’ नामक फिल्म पहली बार 1973 में बनाई गई थी। 2018 में फिल्मकार ब्रैडली कूपर ने इसे चौथी बार बनाया। हर बार उन्होंने इसमें परिवर्तन किए। इस फिल्म को पांचवी बार बनाए जाने की भी संभावना है। फिल्म की कथा में लेडी गागा अभिनीत एक उभरती हुई युवा गायिका के पात्र को एक संगीतकार प्रशिक्षित करता है।
संगीतकार उसकी मूल गायन शैली में परिवर्तन ला कर उसे तराशता है और उसे सफलता मिलती है । इस तरह गायन क्षेत्र में एक नए सितारे का उदय होता है। बहरहाल, कालांतर में फिल्म के निर्देशक ब्रैडली कूपर और अभिनेत्री लेडी गागा में मतभेद होने लगे। दरअसल पथ-प्रदर्शक प्राय: अपने द्वारा प्रशिक्षित व्यक्ति के जीवन में दखलअंदाजी करने लगता है। वह उसे निजी संपत्ति मान लेता है। इसी बात से क्लेश प्रारंभ होता है।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गहरा महत्व होता है। व्यक्ति को संपत्ति बनाते ही उस पर संपूर्ण अधिकार जमाना शुरू हो जाता है। लेकिन इस तरह की संपत्ति को कोई व्यक्ति अपनी विरासत का हिस्सा नहीं बना पाता। इसे दान में नहीं दिया जा सकता। ज्ञातव्य है कि आशा भोसले को संगीतकार ओपी नैयर ने नई गायन शैली में प्रशिक्षित किया था। फिल्म ‘नवरंग’ के लिए आशा का गाया एक गीत ‘आ दिल से दिल मिला लें’ अलग ही बन पड़ा था।
ओ.पी नैयर की यह विशेषता थी कि वे साज से आवाज और आवाज से साज का काम ले लेते थे। ब्रैडली कूपर की फिल्म ‘ए स्टार इज बॉर्न’ से प्रेरित होकर ही महेश भट्ट ने फिल्म ‘आशिकी’ बनाई थी। ज्ञातव्य है कि ‘ए स्टार इज बॉर्न’ से प्रेरित फिल्म गुरुदत्त की ‘कागज के फूल’ भी है। गौरतलब है कि लोकप्रियता के भीतर ही मनुष्य के पतन के बीज धीरे-धीरे अंकुरित होते हैं।
सितारे आसमान से धरती पर नहीं आते परंतु व्यक्ति की प्रतिभा और परिश्रम से सितारे उभरते हैं और उनकी लोकप्रियता उन्हें आकाश का सितारा बना देती है। शैलेंद्र ने फिल्म ‘तीसरी कसम’ के लिए गीत लिखा था ‘हाय गजब कहीं तारा टूटा, लूटा रे लूटा मेरे सैंया ने लूटा।’ जाने कैसे तरह-तरह की कहावतें बन जाती हैं। एक कहावत है कि आसमान से टूटते तारे को देखते समय मनुष्य जो मन्नत मांगते हैं वह पूरी होती है।
दरअसल आसमान में तारे टूटते नहीं, बल्कि वे यात्रा कर रहे होते हैं। ज्ञातव्य है कि अभाव के दौर में चार्ली चैपलिन की मां मंच पर कार्यक्रम प्रस्तुत करती थीं। एक बार बुखार में भी चैप्लिन की मां को मंच पर काम करना था। इस वजह से हड़बड़ाहट में उनसे मंच पर त्रुटि होने लगी। उसी क्षण चैप्लिन मंच पर जा पहुंचे और वे अनोखे अंदाज में लोगों का मनोरंजन करने लगे। अत: इस तरह भी लोकप्रियता का आभामंडल चकाचौंध कर देता है।
चैपलिन ने इतनी महान फिल्में बनाईं कि वे परंपरा ही बन गए। इसी परंपरा की अगली कड़ियां रहीं राज कपूर, ऋषिकेश मुखर्जी और राजकुमार हिरानी। इस वर्ष रजनीकांत को दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिया गया। रजनीकांत का जन्म महाराष्ट्र में हुआ और कहा जाता है कि वे घर से भागकर बेंगलुरु में बस कंडक्टर का काम करते हुए यात्रियों का मनोरंजन करने लगे। एक फिल्मकार ने उनकी प्रतिभा को परखा और अब रजनी अपने जीवन काल में किंवदंती बने हुए हैं।
कहते हैं कि कभी व्यक्ति सफलता अर्जित करता है तो कभी इत्तेफाक से उसे सफलता मिलती और कभी सफलता व्यक्ति पर लादी जाती है, जिसका भार पीढ़ियां ढोती रहती हैं। लम्हे की खता सदियां भुगतती हैं। अजीबोगरीब ढंग से सितारों का उदय होता है। यह विधाता की ही कृपा है कि वह मनुष्य के लिए एक रास्ता बंद किए जाने पर हजार रास्ते खोल देता है। थके हुए मुसाफिर को राह अपनी बाहों में लिए चलने लगती है।
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