प्रथम परमवीर चक्र विजेता ने 24 साल की उम्र में पाई थी शहादत.

प्रथम परमवीर चक्र विजेता ने 24 साल की उम्र में पाई थी शहादत.

कश्‍मीर पर कब्‍जे की साजिश की थी नाकाम.

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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मेजर सोमनाथ शर्मा की आज पुण्यतिथि है। यह वही वीर योद्धा हैं, जिन्‍हें स्वतंत्र भारत में पहला परमवीर चक्र प्राप्त हुआ है। उनको जब वीरगति प्राप्त हुई तो उनकी आयु महज 24 साल थी। कश्मीर पर कब्जे की पाकिस्तान की साजिश को उन्होंने नाकाम किया और वीरगति को प्राप्त हुए। देश का यह वीर सेना की कुमाउं रेजीमेंट में अधिकारी थे।

उन्होंने तीन नवंबर 1947 को जान देकर श्रीनगर एयरपोर्ट को दुश्मनों से बचाया था। उन्होंने अपने अदम्य साहस व वीरता के दम पर पाकिस्तानी ट्राइब फोर्सेज के 700 जवानों को रोके रखा था, जो लगातार मोर्टार दागकर भारती सेना पर हमला कर रहे थे। भारतीय सेना के पास गोला बारूद भी समाप्त हो गया था। मेजर सोमनाथ अन्य सात सैनिकों के साथ शहीद हो गए। उन्हें दुश्मन का एक मोर्टार ने शहीद कर दिया। मेजर सोमनाथ शर्मा को उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत 26 जनवरी 1950 को परमवीर चक्र दिया गया था, जिसे उनके स्‍वजनों ने लिया था।

पालमपुर के डाढ के रहने वाले थे मेजर सोमनाथ शर्मा

प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा उपमंडल पालपुर के डाढ गांव के रहने वाले थे। उनका जन्म 31 जनवरी 1923 को हुआ था। उनके पिता मेजर अमरनाथ शर्मा भी सेना में डाक्टर थे। इसी वजह से उनकी रग रग में देश भक्ति व बहादुरी का जज्बा था। सोमनाथ शर्मा ने सैन्य जीवन की शुरुआत 22 फरवरी 1942 को चार कुमाऊं रेजीमेंट में बतौर कमीशंड अधिकारी के रूप में की थी।

जब आदेश मिला तो बाजू टूटा था पर हौसला नहीं

मेजर सोमनाथ ने अपना सैनिक जीवन 22 फरवरी, 1942 से शुरू किया। जब इन्होंने चौथी कुमाऊं रेजीमेंट में बतौर कमिशंड आफिसर प्रवेश लिया। उनका फौजी कार्यकाल शुरू ही दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हुआ और वह मलाया के पास के रण में भेज दिए गए। 26 अक्टूबर, 1947 को जब मेजर सोमनाथ की कंपनी को कश्मीर जाने का आदेश मिला तो उनके बाएं हाथ की हड्डी टूटी हुई थी, बाजू पर प्लास्टर चढ़ा था।

वह कुमाऊं रेजीमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी के कमांडर थे। साथियों ने रोकने की कोशिश की तो जवाब मिला, ‘सैन्य परंपरा के अनुसार जब सिपाही युद्ध में जाता है तो अधिकारी पीछे नहीं रहते हैं।’ श्रीनगर के दक्षिण पश्चिम में युद्ध भूमि से करीब 15 किलोमीटर दूर बड़गांव में तीन नवंबर, 1947 को दुश्मनों से लोहा लेते हुए मेजर सोमनाथ शर्मा ने शहादत पाई थी। मेजर ने लगातार छह घंटे तक सैनिकों को लड़ने के लिए उत्साहित किया। यही कारण रहा कि पाकिस्तान को आगे बढ़ने नहीं दिया।

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