देश को स्वावलंबन की राह पर आगे बढ़ाने में जानकी अम्माल का अहम योगदान.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
जानकी अम्माल के बारे में हो सकता है कि आपने बहुत ज्यादा न सुना हो। आज दीपावली पर आप जिन मिठाइयों में मिठास का स्वाद ले रहे हैं, उसका श्रेय जानकी को जाता है। आज भारत गन्ने के उत्पादन में ब्राजील के बाद दूसरे स्थान पर है, तो इसमें कहीं न कहीं जानकी अम्माल के शोध का बड़ा योगदान रहा है। हमारे यहां मुख्यत: गन्ने से ही चीनी बनाई जाती है।
कहा जाता है कि जब अधिकतर भारतीय महिलाएं हाईस्कूल से आगे नहीं बढ़ पाती थीं, तब वे वनस्पतिशास्त्र के क्षेत्र में पीएचडी करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। उन्होंने वर्ष 1931 में अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी से वनस्पति विज्ञान में पीएचडी की। उन्होंने साइटोजेनेटिक्स और फाइटोजिओग्राफी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वर्ष 1951 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें भारत में बोटैनिकल सर्वे आफ इंडिया के नवीनीकरण के लिए आमंत्रित किया था। उस समय वह लंदन में अनुसंधान कर रही थीं।
शुरुआती जीवन : ईके जानकी अम्माल का जन्म 4 नवंबर, 1897 को केरल के तेल्लिचेरी (अब थालास्सेरी) में हुआ था। उनके पिता दीवान बहादुर ईके कृष्णन उस समय मद्रास प्रेसीडेंसी में उप-न्यायाधीश थे। प्राकृतिक विज्ञान में गहरी रुचि रखने वाले जानकी के पिता उस समय के विद्वानों के साथ नियमित रूप से पत्र-व्यवहार किया करते थे। वह अपनी बेटी जानकी अम्माल को भी इसी क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए देखना चाहते थे।
तेल्लिचेरी में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद जानकी मद्रास चली गईं, जहां उन्होंने क्वीन मैरी कालेज से स्नातक की डिग्री और 1921 में प्रेसीडेंसी कालेज से वनस्पति विज्ञान में आनर्स की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने महिला क्रिश्चियन कालेज में पढ़ाया। इसी दौरान उन्हें मिशिगन विश्वविद्यालय, अमेरिका से मास्टर्स करने के लिए प्रतिष्ठित बारबर स्कालरशिप भी मिली। वे मिशिगन विश्वविद्यालय द्वारा डीएससी (डाक्टर आफ साइंस) से सम्मानित होने वाली उस वक्त की चंद एशियाई महिलाओं में से एक थीं।
विज्ञान में अहम योगदान : जानकी अम्माल ने देश के अन्य विज्ञानियों के साथ मिलकर गन्ने की मीठी किस्म के अलावा एक ऐसी किस्म भी विकसित की, जो कई तरह की बीमारियों और सूखे की स्थिति में भी पनप सकती थी। 1920 से पहले गन्ना उत्पादन के क्षेत्र में भारत की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी। अम्माल की अगुवाई में गन्नों की क्रास ब्रीडिंग करके नई किस्मों को विकसित किया गया। अम्माल की यह भारत को बहुत बड़ी देन है।
सिर्फ गन्ने व फूलों पर ही नहीं, बल्कि बैंगन की क्रास ब्रीडिंग पर भी उन्होंने शोध किया। 1945 में उन्होंने सीडी डार्लिंगटन के साथ मिलकर ‘द क्रोमोजोम एटलस आफ कल्चर्ड प्लांट्स’ नामक पुस्तक लिखी। लंदन की रायल हार्टिकल्चरल सोसायटी में मगनोलिया फूल के क्रोमोजोम पर अध्ययन के बाद उनके नाम से ही फूल का नाम ‘मगनोलिया कोबुस जानकी अम्माल’ रखा गया। आजादी के तुरंत बाद देश से पलायन कर रही विज्ञानी प्रतिभाओं को देश में रोकने और स्थानीय प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवारहलाल नेहरू के आग्रह पर उन्होंने भारतीय बोटैनिकल सोसायटी का पुनर्गठन किया।
उन्हें 1977 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। यह सम्मान पाने वालीं वे देश की पहली महिला विज्ञानी थीं। वे बोटैनिकल सर्वे आफ इंडिया की निदेशक भी रहीं। सात फरवरी, 1984 को उनका निधन हो गया। वनस्पति शास्त्र की फाइटोबायोलाजी, एथनोबाटनी, फाइटोजियोग्राफी और क्रम विकास के अध्ययन में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। उनके नाम पर जानकी अम्माल राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिया जाता है।
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