गोवर्धन पूजा को क्यों कहा जाता है अन्नकूट?

गोवर्धन पूजा को क्यों कहा जाता है अन्नकूट?

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

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दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का पावन पर्व मनाया जाता है। यह पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण की पूजा होती है। हिंदू पौराणिक कथाओं में इसका विशेष महत्व है क्योंकि भगवान कृष्ण ने इस दिन गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर ग्रामीणों और जानवरों को भगवान इंद्र के क्रोध से बचाया था और उन्हें पराजित किया था।

गोवर्धन पूजा को क्यों कहा जाता है अन्नकूट?

मान्यता के अनुसार, गाय देवी लक्ष्मी का रूप मानी जाती है और वह भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय भी है इसलिए गोवर्धन पूजा में गोधन यानि गाय की पूजा की जाती है। इसी वजह से इसे अन्नकूट भी कहा जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण के उपासक उन्हें गेहूं, चावल, बेसन से बनी सब्जी और पत्तेदार सब्जियां चढ़ाते हैं। इसके अलावा, भगवान कृष्ण के उपासक भजन, कीर्तन गाते हैं और अपने घरों को दीयों से सजाते हैं।

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गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त

इस साल, गोवर्धन पूजा के लिए प्रात:काल (सुबह) मुहूर्त सुबह 6:36 से शुरू होकर 5 नवंबर को सुबह 8:47 बजे समाप्त होगा। शुभ मुहूर्त 2 घंटे 11 मिनट तक चलेगा। ड्रिक पंचांग के अनुसार, सायंकाला (शाम) मुहूर्त दोपहर 3:22 बजे से शुरू होगा और शाम 5:33 बजे समाप्त होगा।

प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – 5 नवंबर, 2021 को प्रातः 2:44
प्रतिपदा तिथि समाप्त – 5 नवंबर, 2021 को रात 11:14

ऐसे हुई गोवर्धन पूजा की शुरुआत

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, गोवर्धन पूजा की शुरूआत द्वापर युग में हुई। जब जिज्ञासु बाल गोपाल श्रीकृष्ण ने अपने पिता नंद महाराज से पूछा कि ब्रज के लोग भगवान इंद्र की पूजा क्यों करते हैं? उन्होंने उत्तर दिया कि वे इन्द्र की पूजा कर रहे थे ताकि उन्हें वर्षा का आशीर्वाद मिले और उन पर अपनी कृपा बरसाएं। मगर, भगवान कृष्ण इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने ब्रजवासियों को कहा कि वर्षा करना देवराज इंद्रराज का दायित्व है जबकि गोवर्धन पर्वत पर्यावरण शुद्धता के लिए गौ-धन का संवर्धन एवं संरक्षण करते हैं। तब उनके कहने पर ब्रजवासियों ने गाय के गोबर का पहाड़ बनाकर उसकी परिक्रमा व पूजा की।

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मगर, इससे भगवान इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने वृंदावन में बारिश और गरज के साथ भारी तबाही मचा दी। ब्रज के लोगों ने मदद के लिए भगवान कृष्ण की ओर रुख किया। फिर उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया और ब्रज के लोगों ने सात दिनों तक उसके नीचे शरण ली। जब भगवान ब्रह्मा ने इंद्रदेव को बताया कि श्रीकृष्ण विष्णु अवतार हैं तो उन्होंने भगवान से क्षमा-याचना मांगी और बारिश रोक दी। इसके बाद हर साल गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाने लगी।

ऐसे होता है पूजन

गोवर्धन पूजा के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक में गोबर और मिट्टी से एक छोटी पहाड़ी बनाना शामिल है। इस दिन लोग भगवान कृष्ण की मूर्ति को दूध से स्नान करवाते हैं और उन्हें नए कपड़े व आभूषण पहनाते हैं। कुछ राज्यों में भक्त 56 प्रकार की विभिन्न वस्तुओं की थाली भी तैयार करते हैं।

 

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