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5G प्रौद्योगिकी की तैनाती के समक्ष विद्यमान चुनौतियां.

5G प्रौद्योगिकी की तैनाती के समक्ष विद्यमान चुनौतियां.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

पाँचवीं पीढ़ी का मोबाइल नेटवर्क या 5G, मोबाइल नेटवर्क का अगला स्तर है जो अधिक कुशल और विकासशील समाजों को सुविधा प्रदान कर चौथी औद्योगिक क्रांति (Industrial 4.0), सेवा वितरण की गुणवत्ता, नवाचार आदि को आकार प्रदान करेगा।

वाणिज्यिक 5G नेटवर्क वर्ष 2020 से तैनात किया जाना शुरू हुआ है और अपेक्षित है कि वर्ष 2025 तक यह विश्व मोबाइल कनेक्शन के 12% (1.1 बिलियन) तक पहुँच जाएगा और ऑपरेटरों के लिये 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक का राजस्व उत्पन्न कर रहा होगा।

5G द्वारा उपयोग की जाने वाली प्रौद्योगिकी अप्रत्याशित उच्च स्तरों पर डेटा ट्रांसफर गति में सुधार लाएगी (लगभग 100 गुना अधिक गति) और विलंबता को कम कर सेवाओं में मदद करेगी। इस प्रकार, 5G आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है, लेकिन भारत को यह विचार करने की ज़रूरत है कि वह इस प्रौद्योगिकी की तैनाती के लिये अभी तैयार है या नहीं।

क्षमता/संभावना

  • नई पीढ़ी के मोबाइल नेटवर्क में भारतीय अर्थव्यवस्था को व्यापक लाभ प्रदान करने की परिवर्तनकारी क्षमता है, जिसे जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ उन्नत किया जाता है तो यह कनेक्टेड और ऑटोनोमस प्रणालियों को एक नया आयाम प्रदान करता है।
  • इसका उपयोग भारतीय नीति निर्माताओं को नागरिकों एवं व्यवसायों को शिक्षित एवं सशक्त बनाने और मौजूदा शहरों को स्मार्ट एवं अभिनव शहरों में बदलने का एक अवसर प्रदान कर सकता है।
  • सामाजिक-आर्थिक लाभ: यह नागरिकों और समुदायों को एक व्यापक उन्नत, अधिक डेटा-गहन, डिजिटल अर्थव्यवस्था द्वारा प्रदत्त सामाजिक-आर्थिक लाभ और सुविधाएँ प्राप्त करने का अवसर दे सकता है।
    • मोटे तौर पर, भारत में 5G के उपयोग में उन्नत आउटडोर और इनडोर ब्रॉडबैंड, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, स्मार्ट सिटी, स्मार्ट कृषि, ऊर्जा निगरानी, ​​रिमोट मॉनिटरिंग, स्मार्ट ग्रिड, टेलीहेल्थ, औद्योगिक स्वचालन, दूरस्थ रोगी निगरानी और औद्योगिक स्वचालन जैसे विषय शामिल हो सकते हैं।
    • भारत के लिये एक उन्नत डिजिटल क्रांति की ओर बढ़ने की व्यापक संभावना है।

संबंधित मुद्दे

  • लेट एडॉप्टर: भारत, बांग्लादेश और इंडोनेशिया जैसे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों में 5G प्रौद्योगिकी को अपनाने में देरी हो रही है, इसलिये इन्हें सेवा से नगण्य राजस्व प्राप्त होगा।
    • ऐसे ‘लेट एडॉप्टर’ (देर से प्रौद्यिगिकी अपनाने वाले) देशों को अगले 12-18 महीनों में 5G मोबाइल सेवा राजस्व प्राप्त होने की उम्मीद नहीं है।
  • कम सरकारी सब्सिडी: मौजूदा राजकोषीय घाटे के बीच स्पेक्ट्रम नीलामी के लिये सरकारों द्वारा निर्धारित उच्च आरक्षित मूल्यों के इतिहास को देखते हुए सरकारी सब्सिडी की संभावना कम ही है।
  • ‘डिजिटल डिवाइड’: 5G अल्पावधि में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच के डिजिटल डिवाइड को नहीं भरेगा, बल्कि इसे और बढ़ाएगा क्योंकि शहरी क्षेत्रों में भी 5G की व्यावसायिक व्यवहार्यता की अधिकतम पहुँच नहीं है।
    • इसलिये, ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह आसानी से उपलब्ध नहीं होगा।
  • 5G- एक विशिष्ट सेवा: 5G, 3G एवं 4G (जो व्यापक सेवाएँ हैं) के विपरीत एक विशिष्ट सेवा होगी। यह अपेक्षाकृत एक लंबी अवधि में गहन या तीव्र हो जाएगी।
    • 5G प्रौद्योगिकी का रोलआउट 4G से अलग होगा; इसे विशिष्ट क्षेत्रों और हिस्सों में पेश किया जाएगा।
  • पिछली प्रौद्योगिकी की अपर्याप्त पहुँच: उपभोक्ता अभी भी कॉल ड्रॉप और बाधित डेटा सेवाओं जैसे बुनियादी नेटवर्क मुद्दों से जूझ रहे हैं।
    • अभी भी ऐसे क्षेत्र मौजूद हैं जहाँ 4G नेटवर्क स्थिर नहीं हुए हैं, जिससे इंटरनेट सेवाओं में बार-बार व्यवधान उत्पन्न होता है।
    • एक नया 5G प्लेटफॉर्म शुरू करने से पहले मौजूदा 4G नेटवर्क के सेवा मानकों की गुणवत्ता की पूर्ति करना महत्त्वपूर्ण है।
  • महत्त्वपूर्ण अवसंरचनाओं को सक्षम करना: 5G के लिये संचार प्रणाली की मूल संरचना में मूलभूत परिवर्तन की आवश्यकता होगी। 5G के उपयोग से डेटा ट्रांसफर का मुख्य दोष यह है कि यह अधिक दूरी तक डेटा का परिवहन नहीं कर सकता है। इसलिये, अवसंरचना को सक्षम करने के लिये 5G प्रौद्योगिकी के अवसंरचनात्मक विकास की भी ज़रूरत होगी।
  • उपभोक्ताओं पर वित्तीय दायित्व: 4G से 5G प्रौद्योगिकी में ट्रांजीशन के लिये, नवीनतम सेलुलर प्रौद्योगिकी को अपग्रेड करना होगा, जिससे उपभोक्ताओं पर वित्तीय दायित्व उत्पन्न होगा।

आगे की राह

  • मौजूदा अवसंरचना और क्षमता का विश्लेषण: भारत की तात्कालिक प्राथमिकता अंतिम उपयोगकर्त्ताओं और कवर की जाने वाली आबादी की पहचान करना, मौजूदा नेटवर्क एवं ऑपरेटरों का विश्लेषण, 5G रोल आउट के लिये शहरों की पहचान करना, एक निवेश मॉडल तैयार करना एवं डिजिटल जोखिम को न्यूनतम करना और बाह्य विषयों एवं विभिन्न क्षेत्रों के उपयोग पर आधारित मूल्य निर्धारण करना है।
    • भारत में स्वतंत्र विशेषज्ञों द्वारा लागत लाभ विश्लेषण के बाद 5G की तैनाती की सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता है जो सुविधा, अनुकरण, नीलामी, प्रतिस्पर्द्धा की सुनिश्चितता, कार्यशील बाज़ार जैसे बाज़ार तंत्रों के माध्यम से एकसमान अवसर प्रदान करेगा।
  • क्षेत्र-अनुकूल कदम: चूँकि 5G नेटवर्क की तैनाती महँगी है, इसलिये केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को ऐसे उपायों पर विचार करने की आवश्यकता पड़ सकती है, जो फाइबर निवेश को प्रेरित करे, सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से निवेश आकर्षित करे और मामूली ब्याज आधार पर निवेश निधि की सुविधा प्रदान करे।
    • अन्य नीतिगत सुधारों के साथ-साथ स्वचालित मार्ग के तहत दूरसंचार क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति इस क्षेत्र के लिये निवेश आकर्षित करने हेतु शुभ संकेत है। 5G के कार्यान्वयन के लिये भारी निवेश की आवश्यकता है और इस संदर्भ में राहत पैकेज एक स्वागत योग्य कदम है।
  • कर संबंधी मुद्दे: सरकार को कानूनों और विनियमों/करों और सब्सिडी के माध्यम से सूचना विषमता और नकारात्मक बाह्यताओं को संबोधित करने की आवश्यकता है।
    • 5G प्रौद्योगिकी की तैनाती के लिये ट्रैफिक लाइट, लैंप पोस्ट जैसे सरकारी अवसंरचनाओं तक पहुँच के अधिकार की भी आवश्यकता होगी, जहाँ वायरलेस ऑपरेटर इलेक्ट्रॉनिक स्मॉल सेल उपकरणों की तैनाती कर सकते हैं।
    • इसके साथ-साथ, राज्य और स्थानीय सरकारों द्वारा ऑपरेटरों से 5G उपकरणों की किफायती तैनाती के लिये उचित शुल्क वसूल किया जा सकता है।
    • इसके अलावा, फाइबर नेटवर्क की तैनाती के लिये कर के बोझ को हटाने से संबंधित लागत कम हो जाती है, जिससे निवेश को बढ़ावा मिलता है (जैसा सिंगापुर ने किया है) और इससे भारत में फाइबर की सुचारू तैनाती में मदद मिल सकती है।
  • ग्रामीण-शहरी अंतर को कम करना: 5G को विभिन्न बैंड स्पेक्ट्रम पर और लो बैंड स्पेक्ट्रम पर तैनात किया जा सकता है; यह सीमा व्यापक है जो ग्रामीण क्षेत्रों के लिये सहायक होगी।
  • सरकार की सहायता: इनपुट पर सरकार का पूरा नियंत्रण होता है। 5G के प्रमुख इनपुट में से एक बैंड स्पेक्ट्रम है।
    • स्पेक्ट्रम के डिज़ाइन का प्रबंधन कर, सरकार लोगों द्वारा भुगतान की जाने वाली कीमत को नियंत्रित कर सकती है।
    • सरकार दूरसंचार कंपनियों को ऐसे नेटवर्क शुरू करने में सहायता कर सकती है, जो जनता के लिये संवहनीय और किफायती हों।
  • स्पेक्ट्रम प्राइसिंग की समस्या से निपटना: हाल के दिनों में सरकार को दो असफल नीलामियों का सामना करना पड़ा है। इनमें से दूसरा मामला 5G स्पेक्ट्रम का था जो पूर्णतः बोली आकर्षित करने में विफल रहा।
    • आरक्षित मूल्य के वर्तमान प्रस्ताव स्पष्ट रूप से एक सफल नीलामी आयोजित करने के लिये मूल्यों को बदलने की आवश्यकता का सुझाव देते हैं।
    • इस क्षेत्र में व्याप्त वित्तीय तनाव और सेवाओं की वहनीयता को ध्यान में रखते हुए मूल्य निर्धारण पर समुचित कार्य करना होगा।
  • भारत में विनिर्माण क्षेत्र को सक्षम बनाना: चूँकि 5G ने भारत में आकार लेना शुरू कर दिया है, घरेलू दूरसंचार विनिर्माण बाज़ार को सुदृढ़ करना महत्त्वपूर्ण है ताकि न केवल भारत में 5G के उपयोगकर्त्ता, बल्कि इन प्रौद्योगिकियों के निर्माता और प्रदाता भी वैश्विक क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने में सक्षम हो सकें।
  • उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण से व्यवहार्य प्रौद्योगिकी: व्यापक 5G तैनाती के लिये, इसे वित्तीय रूप से व्यवहार्य बनाने की आवश्यकता है, अन्यथा ग्रामीण एकीकरण की बात महज कोरी कल्पना बनकर ही रह जाएगी।
  • इसके साथ ही, 5G प्रौद्योगिकी को दूरसंचार ऑपरेटरों के लिये भी व्यवहार्य होना चाहिये।

निष्कर्ष

चूँकि भारत ने लागत प्रभावी 4G प्रौद्योगिकी के कारण अपने दूरस्थ क्षेत्रों में भी पहले से ही एक डिजिटल क्रांति के दर्शन कर रखे हैं, 5G का उपयोग इस क्षेत्र के विकास में और विनिर्माण एवं नवाचार केंद्र के रूप में उभरने के भारत के लक्ष्य को सुविधाजनक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 5G का नकारात्मक प्रभाव ‘डिजिटल डिवाइड’ को और बढ़ा रहा है। इसलिये, सरकारी नीतियों को वहनीय कवरेज पर भी ध्यान देना चाहिये।

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