वेदों की उपासना वाला देश ही आर्यों का आदि देश है – कोनरॉड एल्स्ट
श्रीनारद मीडिया, सेंट्रल डेस्क:
दार्शनिक कोनराड एल्स्ट ने कहा कि वर्तमान समय में वैदिक इतिहास एवं आर्यों के मूल स्थान पर तरह-तरह की चर्चाएं होती हैं परंतु जिस देश में वेदों की उपासना होती है, वही देश आयों का था। उक्त विचार दार्शनिक कोनरॉड एल्स्ट ने रुद्राक्ष सभागार में आयोजित संस्कृति संसद के समानानंतर सत्र ‘वैदिक इतिहास एवं आर्यों का मूल स्थान’ में व्यक्त किए।
कोनराड ने बताया कि आर्य समाज का इतिहास बहुत ही पुराना है। उन्होंने भाषा शैली के बदलते स्वरूप का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि जब दुनिया की भाषाओं का स्रोत संस्कृत है और वेद संस्कृत में है इसलिए दुनिया को संस्कृत एवं धर्म ज्ञान वेदों से हुआ। यही वेद आर्यों के आधार थे। इसी क्रम में उन्होंने भाषा के विकास व उसके संदर्भ में विद्यमान मतभेदों को भी स्पष्ट किया। संस्कृत, तमिल भाषा के अपेक्षा लैटिन शब्द से संबंध रखती है। वैदिक काल में मूर्ति के अपेक्षा प्रकृति की पूजा की जाती है उन्होंने रंगभेद नीति पर भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आर्यों की पहचान भाषा से है,न कि उनके पहनावे से। उन्होंने भारतीय समाज सुधारकों को बाल गंगाधर तिलक, सुभाष चंद्र बोस के जीवन से लोगों को आत्मसात करने की प्रेरणा दी।
जगद्गुरु राम राजेश्वराचार्य ने कहा कि भारतीय संस्कृति के विचार हमें जोड़ते हैं। समाज निर्माण में मंदिरों एवं त्योहारों की भूमिका महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि दीपावली पर्व पर लोग दिए जलाते हैं और पूजा पाठ भी करते हैं तथा इस अवसर पर मंदिरों में जाते हैं। ये सांस्कृतिक गतिविधियां धर्म के साथ-साथ आर्थिक अर्थ से भी जुड़ी हैं। उन्होंने कहा कि हमारे विचारों में आई कृति ही संस्कृति है। उन्होंने बताया कि मानव शैली की जीवन शैली अगर कोई सिखाता है तो वह केवल हिंदू धर्म है। पूरे संपूर्ण जगत में अगर सबसे अच्छी कोई संस्कृति है तो वह भारतीय संस्कृति है। उन्होंने बताया कि भारतीय सभ्यता जैसा कोई भी नहीं है और हमारी संस्कृति में आई विकृति के कारण हमारा खान-पान, पहनावा और ज्ञान प्रभावित हुआ है। उन्होंने कहा कि इस विकृति को त्यागकर मूल संस्कृति से जुड़ना आवश्यक है, तभी हम वैदिक आर्य संस्कृति से जुड़ सकते हैं। संचालन शालिनी वर्मा ने किया।
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