शिशु के लिए छह माह के बाद ऊपरी आहार व नियमित स्तनपान जरूरी
बच्चों की शारीरिक क्षमता को बेहतर बनाता है ऊपरी आहार व स्तनपान:
गृह आधारित छोटे बच्चों की देखभाल कार्यक्रम के तहत मिला प्रशिक्षण:
प्रशिक्षण में शामिल प्रखंड सामुदायिक उत्प्ररेक को मिली नवीतनम जानकारी:
श्रीनारद मीडिया‚ गया, (बिहार)
यदि छह माह होने के बाद भी शिशु अपना सिर नहीं संभाल रहा है अथवा सहारे के बावजूद नहीं उठ पाता हो, अपनी पहुंच के अंदर की वस्तुओं को नहीं पकड़ पाता, अलग अलग तरह की आवाज नहीं निकाल पाता, गतिशील वस्तुओं को देखते समय सिर और आंखें एक साथ नहीं घुमा पाता अथवा पेट के बल लेटने पर सिर नहीं उठा पाता तो शिशु के शारीरिक वृद्धि के प्रति सर्तक हो जाना चाहिए। यह एक चेतावनी है जिसके प्रति माता पिता को सजग होने की जरूरत है। यह सही तरीके से शिशु के शारीरिक वृद्धि नहीं हो पाने के संकेत हैं। वहीं नौ माह में शिशु के पलट नहीं पाने और आवाज की दिशा में नहीं मुड़ पाने या सरल शब्दोंं के नहीं बोल पाना भी उसके शारीरिक रूप से कमजोर होने की ओर इशारा करता है। आशा व आंगनबाड़ी सेविकाओं के माध्यम से नियमित तौर पर शिशुओं के शारीरिक विकास का अनुश्रवण किया जाना चाहिए। माता पिता को शिशु के नियमित स्तनपान के साथ ऊपरी आहार को लेकर सजग रहने की आवश्यकता पर जानकारी देनी जरूरी है।
यह जानकारी छोटे बच्चों की गृह आधारित देखभाल कार्यक्रम को लेकर आयोजित एक प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान जिला के ब्लॉक कम्युनिटी मोबिलाइजर को दी गयी। बोधगया के निजी होटल में जिला स्वास्थ्य समिति, एलाइव एंड थ्राइव तथा यूनिसेफ द्वारा यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस मौके पर डीपीएम नीलेश कुमार, एलाइव एंड थ्राइव की स्टेट लीड अनुपम तथा यूनिसेफ से डॉ तारिक मौजूद रहे।
कुपोषण से शिशु का प्रभावित होता है जीवनकाल:
प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान एलाइव एंड थ्राइव की स्टेट लीड अनुपम ने बताया कि गृह आधारित छोटे बच्चों की देखभाल कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों को कुपोषण, बीमारी और शिशु मृत्यु दर को कम करना है। कुपोषण दूर करने के लिए छह माह की उम्र से शिशुओं के लिए ऊपरी आहार बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। नियमित स्तनपान के साथ ऊपरी आहार शिशु के शारीरिक तथा मानसिक विकास के लिए बहुत जरूरी है। बच्चों के कुपोषण का एक प्रमुख कारण पर्याप्त मात्रा में ऊपरी आहार का नहीं मिल पाना भी है। इससे कुपोषण जन्म लेता है और कुपोषण के कारण कई बीमारियां जन्म लेती हैं जो शिशु के पूरे जीवनकाल को प्रभावित करती हैं। इसके लिए कम्युनिटी मोबिलाइजर आशा की मदद से छह माह की उम्र के हो चुके शिशुओं के घर नियमित तौर पर जाने और उसके शारीरिक विकास का अनुश्रवण करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण तथा सलाह देते रहें। उन्होंने बताया माता पिता भी शिशु के शारीरिक विकास का नियमित अनुश्रवण करें। साथ ही ऐसी किसी प्रकार के लक्षण दिखने पर जिससे शारीरिक दुर्बलता का संकेत मिलता है, निकटतम आंगनबाड़ी केंद्र, आशा या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर मौजूद चिकित्सक से आवश्यक परामर्श प्राप्त करें। इस दौरान उन्होंने शिशु के ऊपरी आहार की जानकारी दी और कहा कि छह माह उम्र पूरी कर चुके शिशु को अगले छह माह तक स्तनपान जारी रखते हुए उसके भोजन में एक एक खाद्य पदार्थ जैसे मसला हुआ फल व अनाज तथा दाल आदि शामिल करें। शिशु के भोजन की मात्रा बढ़ायें तथा बच्चे को आयरन सीरप दें ताकि उसे एनीमिया से बचाया जा सके और उसका शारीरिक व मानसिक विकास पूरी तरह हो सके। ठंड के मौसम में कमजोर शिशु को कंगारू मदर केयर दें।
प्रशिक्षण के दौरान डॉ तारिक ने बताया कि लड़का व लड़की के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित विकास मानकों का उपयोग करते हुए आयु अनुसार उसका जन्म से तीन साल तक के पूरी तरह शारीरिक विकास की मॉनिटरिंग की जाती रहनी चाहिए। प्रशिक्षण के दौरान जिला समन्वयक चंद्रशेखर ने भी शिशु स्वास्थ्य के बारे में आवश्यक जानकारी दी।
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