समान नागरिक संहिता हमारे संविधान की आत्मा है,कैसे?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार हम सब लोग एक समान हैं। अनुच्छेद 15 जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है। अनुच्छेद-19 सभी नागरिकों को पूरे देश में कहीं पर भी जाने, रहने, बसने और रोजगार शुरू करने का अधिकार देता है। समता, समानता, समरसता, समान अवसर तथा समान अधिकार भारतीय संविधान की आत्मा हैं।

कुछ लोग अनुच्छेद 25 में प्रदत्त धार्मिक आजादी की दुहाई देकर ‘समान नागरिक संहिता’ का विरोध करते हैं, लेकिन वास्तव में ऐसे लोग समाज को गुमराह कर रहे हैं। अनुच्छेद-25 की तो शुरुआत ही होती है- ‘सब्जेक्ट टू पब्लिक आर्डर, हेल्थ एंड मोरैलिटी’ अर्थात रीति और प्रथा का पालन करने का अधिकार है लेकिन किसी भी प्रकार की ‘कुप्रथा, कुरीति, पाखंड और भेदभाव’ को इस अनुच्छेद का संरक्षण नहीं हासिल है।

अंग्रेजों द्वारा 1860 में बनाई गई भारतीय दंड संहिता, 1961 में बनाया गया पुलिस एक्ट, 1872 में बनाया गया एविडेंस एक्ट और 1908 में बनाया गया सिविल प्रोसीजर कोड सहित सभी कानून बिना किसी भेदभाव के सभी भारतीयों पर समान रूप से लागू हैं। पुर्तगालियों द्वारा 1867 में बनाया गया पुर्तगाल सिविल कोड भी गोवा के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू है।

वहीं विस्तृत चर्चा के बाद बनाया गया आर्टिकल 44 अर्थात समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए कभी भी गंभीर प्रयास नहीं किया गया और एक ड्राफ्ट भी नहीं बनाया गया। अब तक 125 बार संविधान में संशोधन किया जा चुका है और पांच बार तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी पलट दिया गया लेकिन ‘समान नागरिक संहिता’ का एक मसौदा भी नहीं तैयार किया गया। परिणामस्वरूप इससे होने वाले लाभ के बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है।

अनुच्छेद 37 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि नीति निर्देशक सिद्धांतों को लागू करना सरकार का मूल कर्तव्य है। किसी भी पंथ-निरपेक्ष देश में धार्मिक आधार पर अलग-अलग कानून नहीं होते हैं, लेकिन हमारे यहां आज भी हिंदू मैरिज एक्ट, पारसी मैरिज एक्ट और ईसाई मैरिज एक्ट लागू हैं।

कानून एक लाभ अनेक

  • भारतीय दंड संहिता की तर्ज पर देश के सभी नागरिकों के लिए एक भारतीय नागरिक संहिता (वन नेशन-वन सिविल कोड) लागू होने से देश और समाज को सैकड़ों जटिल, बेकार और पुराने कानूनों से मुक्ति मिलेगी।
  • वर्तमान समय में अलग-अलग धर्म के लिए लागू अलग-अलग ब्रिटिश कानूनों से सबके मन में हीन भावना व्याप्त है। इसलिए सभी नागरिकों के लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से हीन भावना से मुक्ति मिलेगी।
  • ‘एक पति-एक पत्नी’ की अवधारणा सभी पर समान रूप से लागू होगी और बांझपन या नपुंसकता जैसे अपवाद का लाभ एक समान रूप से मिलेगा।
  • विवाह-विच्छेद का एक सामान्य नियम सबके लिए लागू होगा। विशेष परिस्थितियों में मौखिक तरीके से विवाह विच्छेद की अनुमति भी सभी को होगी।
  • पैतृक संपत्ति में पुत्र-पुत्री तथा बेटा-बहू को एक समान अधिकार प्राप्त होगा।
  • विवाह-विच्छेद की स्थिति में विवाहोपरांत अर्जित संपत्ति में पति-पत्नी को समान अधिकार होगा।
  • वसीयत, दान, बंटवारा, गोद लेने के संबंध में सभी पर एक समान कानून लागू होगा।
  • राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र एवं एकीकृत कानून मिल सकेगा और सभी नागरिकों के लिए समान रूप से लागू होगा।
  • जाति, धर्म और क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग कानून होने से पैदा होने वाली अलगाववादी मानसिकता समाप्त होगी और एक अखण्ड राष्ट्र के निर्माण की दिशा में हम तेजी से आगे बढ़ सकेंगे।
  • अलग-अलग धर्मो के लिए भिन्न-भिन्न कानून होने के कारण अनावश्यक मुकदमे में उलझना पड़ता है। सबके लिए एक नागरिक संहिता होने से न्यायालय का बहुमूल्य समय बचेगा।
  • भारतीय नागरिक संहिता लागू होने से रूढ़िवाद, कट्टरवाद, जातिवाद, संप्रदायवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद समाप्त होगा। वैज्ञानिक सोच विकसित होगी।
  • देश संविधान से चलता है। एक ऐसा विधान जो सब पर समान रूप से लागू हो। किसी भी पंथ निरपेक्ष देश में धार्मिक आधार पर अलग-अलग कानून नहीं होते हैं। हमारे यहां इस अनियमितता को दूर करने के लिए समान नागरिक आचार संहिता लागू करना बहुत आवश्यक है।

 

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