म्यांमार के लिए पासपोर्ट की जरूरत नहीं,बॉर्डर पर सख्ती नहीं,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
असम राइफल्स के 5 जवानों की शहादत के बाद सेना ने म्यांमार बॉर्डर पर सख्ती बढ़ा दी है। खुफिया जानकारी भी जुटाई जा रही है। बताया जा रहा है कि उग्रवादी हमला करने के बाद म्यांमार भाग गए हैं। म्यांमार से 398 किमी का बॉर्डर साझा करने वाले मणिपुर का मोरेह टाउन वह जगह है, जहां से म्यांमार की दूरी 50 मीटर से भी कम है।
यहां एक तरफ म्यांमार में रहने वाले लोग नजर आते हैं तो दूसरी तरफ भारतीय। मोरेह में कुकी, मैतीय, बिहारी, तमिल, मारवाड़ी और नेपाली रहते हैं। यहां इंडिया-म्यांमार फ्रेंडशिप गेट बना हुआ है, जिसके जरिए बिना किसी पासपोर्ट या वीजा के म्यांमार के लोग इस टाउन में आ सकते हैं और यहां से लोग म्यांमार जा सकते हैं। हालांकि कोरोना के चलते यह गेट करीब दो साल से बंद है। इस गेट के अलावा टाउन में ही एक ब्रिज भी है, जहां से दोनों देशों के लोग आना-जाना करते हैं। अभी ब्रिज भी बंद है।
मोरेह के लोग कहते हैं- ब्रिज और गेट खुलने वाले थे, लेकिन इसी बीच हमारे जवानों पर हमला हो गया और सेना ने फिर सख्ती बढ़ा दी। हालांकि गेट बंद होने के बाद भी दोनों तरफ के लोगों का आना-जाना हो रहा है। म्यांमार से जो लोग मोरेह आते हैं, उन्हें शाम 4 बजे तक हर हाल में वापस लौटना पड़ता है।
सस्ता सामान खरीदने मोरेह के लोग म्यांमार जाते हैं
मोरेह टाउन के लोग सस्ता सामान खरीदने म्यांमार जाते हैं, क्योंकि जो स्कूटी भारत में 70 से 80 हजार रुपए में आ रही है, वही स्कूटी म्यांमार में 35 से 40 हजार रुपए में मिल जाती है। इसी तरह भारत में जो पेट्रोल 100 से 110 रुपए लीटर तक में मिल रहा है, वही पेट्रोल म्यांमार में 70 से 80 रुपए लीटर में मिल जाता है।
मोरेह में रहने वाले विक्की कहते हैं, यहां सबके पास बर्मा से लाई गई स्कूटी है। इसका रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाता और नंबर प्लेट भी नहीं मिलती। इसलिए हम लोग इसे सिर्फ लोकल में ही चला सकते हैं। विक्की के मुताबिक, मोरेह से इंफाल 110 किमी की दूरी पर है। टाउन हिल्स पर बसा हुआ है। इसलिए वहां आने-जाने में बहुत परेशानी होती है। इंफाल के बजाय म्यांमार बगल में ही लगा हुआ है। इसलिए हर छोटी-बड़ी जरूरत के लिए हम लोग म्यांमार जाते हैं। स्कूटी, पेट्रोल के अलावा वहां फल-फ्रूट्स और कपड़े भी सस्ते मिल जाते हैं।
मोरेह में हर रोज दुकान लगाने आते हैं म्यांमार के लोग
म्यांमार के लोग हर रोज सुबह 7 से 8 बजे के करीब मोरेह में दुकान लगाने आ जाते हैं। यहां पक्की दुकानें तो भारतीयों की हैं, लेकिन उनके सामने बने फुटपाथ पर लगने वाली अधिकांश दुकानें म्यांमार के लोगों की हैं। कपड़ों की दुकान लगाने वाले देवानंद कहते हैं, म्यांमार के लोग हर रोज यहां खरीदी करने आते हैं और हम लोग भी जाते हैं, लेकिन फिलहाल हम लोग नहीं जा रहे।
वे कहते हैं, बॉर्डर पर जब भी तनाव बढ़ता है तो उसका असर इस टाउन में भी होता है। अभी हमारे भारतीय सैनिकों को मार दिया तो टेंशन थोड़ा बढ़ गया है। एक-दो दिन सख्ती भी बहुत ज्यादा रही, लेकिन अभी थोड़ा नॉर्मल हो गया है। हम लोगों में म्यांमार के लोगों को लेकर गुस्सा नहीं है। वे तो खुद तकलीफ में हैं, लेकिन जिन उग्रवादियों ने हमारे सैनिकों को मारा उन्हें लेकर जरूर मन में बहुत गुस्सा है।
हर एक सामान चेक हो रहा, पूरी गाड़ी खाली करवाई जा रही
इंफाल से मोरेह जाते वक्त दो चेक पोस्ट आती हैं, लेकिन तब कोई खास पड़ताल नहीं होती। जबकि मोरेह से इंफाल लौटते वक्त जमकर जांच पड़ताल की जा रही है। चेक पोस्ट पर हर एक गाड़ी को रोका जा रहा है और गाड़ी में जो भी सामान रखा है उसकी स्कैनिंग की जा रही है। यहां फोटो और वीडियो बनाने पर भी रोक है।
चेक पोस्ट पर तैनात असम राइफल्स के अधिकारी ने बताया कि मोरेह में म्यांमार से लोग आते-जाते हैं, लेकिन वहां से आने वाले वाहनों की सख्ती से जांच होती है और डॉक्युमेंट्स भी जांचे जाते हैं। अक्सर उग्रवादी वहां पनाह लेते हैं। ऐसे में किसी को भी बिना जांच के मोरेह से आगे बढ़ने नहीं दिया जा रहा है। यहां भी शाम 4 बजे के बाद एंट्री बंद कर दी गई है।
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