देश में पहली बार पुरुषों से अधिक महिलाओं की आबादी.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
यह पहली बार हुआ है जब देश में महिलाओं की आबादी पुरुषों से अधिक बढ़ी है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के आंकड़ों के अनुसार देश में अब हर 1000 पुरुषों पर 1020 महिलाएं हैं। इससे पहले एनएफएचएस-4 के अंकड़ों के अनुसार साल 2015-16 में 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 991 थी। एनएफएचएस-5 के मुताबिक, राष्ट्रीय स्तर पर प्रजनन दर में भी बदलाव दर्ज किया गया है। प्रजनन दर घटकर 2.0 हो गई है। इसका मतलब देश में मां बनने वाली महिला औसतन दो बच्चों को जन्म दे रही है। इससे पहले एनएफएचएस-4 में यह दर 2.2 थी।
एनएफएचएस-5 में देश में एनीमिया (खून की कमी) को लेकर चिंताजनक रिपोर्ट सामने आई है। इसमें कहा गया है कि देश में बच्चों और महिलाओं की आधी से ज्यादा आबादी एनीमिया से पीड़ित है। इसमें कहा गया है कि 6 से 59 महीनों के 67.1 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं। 15 से 49 साल की उम्र की 75 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी से जूझ रही हैं। जबकि, 15 से 49 साल की उम्र के 25 प्रतिशत पुरुष एनीमिया से पीड़ित हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने बुधवार को 14 राज्यों के सर्वेक्षण के साथ इसके दूसरे चरण की रिपोर्ट जारी की। पहले चरण में 22 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों को शामिल किया गया था। इस चरण में जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का सर्वेक्षण किया गया, उनमें अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली के एनसीटी, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं।
एनएफएचएस-5 के अनुसार बाल पोषण संकेतकों ने अखिल भारतीय स्तर पर थोड़ा सुधार किया है। एनएफएचएस-5 में 36 प्रतिशत बच्चे स्टंटिंग (उम्र के हिसाब से अविकसित) के शिकार हैं। एनएफएचएस-4 में यह 38 प्रतिशत था। वहीं, आंकड़ों में बताया गया है कि19 प्रतिशत बच्चे वेस्टिंग (उम्र के हिसाब से बहुत पतले) के शिकार। एनएफएचएस-4 में यह 21 प्रतिशत था। इसके अलावा 32 प्रतिशत बच्चे कम वजन की स्थिति का शिकार हैं। एनएफएचएस-4 में यह 36 प्रतिशत था।
छह महीने से कम उम्र के बच्चों को स्तनपान कराने के अखिल भारतीय स्तर में भी सुधार हुआ है। 2015-16 में 55 प्रतिशत की तुलना में 2019-21 में यह बढ़कर 64 प्रतिशत हो गया है। दूसरे चरण के सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में भी काफी प्रगति देखने को मिल रही है। वहीं, अखिल भारतीय स्तर पर संस्थागत जन्म 79 प्रतिशत से बढ़कर 89 प्रतिशत हो गए हैं। पुडुचेरी और तमिलनाडु में संस्थागत प्रसव 100 प्रतिशत है। इसमें कहा गया है कि कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में विशेष रूप से निजी स्वास्थ्य सुविधाओं में सी-सेक्शन डिलीवरी में भी काफी वृद्धि हुई है।
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