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1971 की जंग के 50 साल पूरे होने पर होगें कार्यकम. - श्रीनारद मीडिया

1971 की जंग के 50 साल पूरे होने पर होगें कार्यकम.

1971 की जंग के 50 साल पूरे होने पर होगें कार्यकम.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

1971 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना पर भारतीय सेना ने शानदार जीत हासिल की थी और पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग कर एक नया देश बनाया था। 1971 के युद्ध में हुई जीत को याद करते हुए हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है। इस साल 1971 भारत-पाक युद्ध के 50 साल पूरे होने पर राष्ट्र स्वर्णिम विजय वर्ष मनाया जा रहा है। 1971 का भारत पाक युद्ध इतिहास के सबसे छोटे युद्धों में से एक है। ये युद्ध भारतीय सशस्त्र बलों की निर्णायक जीत और बांग्लादेश की मुक्ति के लिए जाना जाता है। इस युद्ध के एक हिस्से के रूप में छंब की लड़ाई भारतीय सेना की ऐतिहासिक गाथाओं में से एक है। जहां सेना की अलग-अलग रेजिमेंट के बहादुर सैनिकों ने अपनी संख्या से कई गुना ज्यादा दुश्मनों के साथ बहादुरी से लड़ाई लड़ी और छंब-जौरियन के युद्ध के मैदान में अपने प्राणों की आहुति दे दी।

शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित हुए कार्यक्रम

1971 के युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए भारतीय सेना द्वारा कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। 5 दिसंबर को भारतीय सेना ने माल्यार्पण समारोह का आयोजन किया और 5 असम युद्ध स्मारक-भेरी तरयाई, चिनाब स्मारक – सिग्नल कंपनी राखमुठी, 5 सिख छंब युद्ध स्मारक-अखनूर और 216 मध्यम युद्ध स्मारक – पहाड़ीवाला में जम्मू-कश्मीर के अखनूर जिले में गार्ड ऑफ ऑनर दिया। इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में पूर्व सैनिक, सेवारत सैनिक और नागरिकों ने मातृभूमि की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर योद्धाओं को श्रद्धांजलि दी।

इन आयोजनों ने प्रत्येक नागरिक को भारतीय सेना की वीरता, बहादुरी और बलिदान को पहचानने और सम्मान देने के लिए प्रेरित किया है। इसने लोगों में यह विश्वास भी जगाया कि वे सुरक्षित हाथों में हैं और देश के रक्षा के लिए किसी भी समय युद्ध जीतने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। हमारे जवानों की शहादत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।

80 साल के पूर्व सैनिक ने अनोखे अंदाज में दी श्रद्धांजलि

80 साल के पूर्व सैनिक सूबेदार जय सिंह ने 1971 में चंबा की लड़ाई के दौरान शहीद हुए अपने साथियों को अनोखे अंदाज में श्रद्धांजलि दी। जय सिंह ने अपने होशियारपुर के घर से 1971 ऑपरेशन के गन एरिया और अखनूर क्षेत्र के पहाड़ीवाला में 216 फील्ड रेजिमेंट तक 230 किलोमीटर तक का सफर अपनी पुरानी मोपेड पर तय किया। सूबेदार जय सिंह की देशभक्ति और जज्बे ने पुष्पांजलि समारोह में मौजूद सभी लोगों के लिए एक प्रेरणा शक्ति का काम किया।

1965 और 1971 के युद्ध में बहादुरी से लड़ी जंग

सूबेदार जय सिंह पंजाब के होशियारपुर जिले के मुकेरियां के रहने वाले हैं। प्रथम विश्व युद्ध में उनके पिता शहीद हो गए थे और इसके बाद उन्होंने सेना के 6 डोगरा में दाखिला ले लिया। जय सिंह 1965 के ऑपरेशन में असॉल्ट टीम का हिस्सा थे और हाजीपीर सेक्टर को कब्जे करने के दौरान वह घायल भी हो गए थे। सूबेदार जय सिंह ने 1971 में अखनूर के छपरियाल क्षेत्र में 216 फील्ड रेजिमेंट के साथ शिक्षा एनसीओ के तौर पर ऑपरेशन में भाग लिया। 216 फील्ड रेजिमेंट ने ऑपरेशन और 02 ऑफर्स के दौरान बहादुरी से लड़ाई लड़ी थी, सीओ सहित रेजिमेंट के 02 जेसीओ और 64 ओआर, लेफ्टिनेंट कर्नल एमएल सेठी ने सर्वोच्च बलिदान दिया था।

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