जनरल बिपिन रावत ने सर्जिकल स्ट्राइक की संभाली थी कमान.
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
तमिलनाडु के कुन्नूर में बुधवार को सेना का एक एमआई-17वी-5 हेलीकाप्टर कैश हो गया जिसमें देश के चीफ आफ डिफेंस स्टाफ यानी सीडीएस जनरल बिपिन रावत समेत कई लोग सवार थे। सेना ने दुर्घटना के कारणों का पता लगाने के लिए जांच के आदेश दिए हैं। दिसंबर 2019 को जनरल बिपिन रावत को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) नियुक्त किया गया था। उन्होंने जनवरी 1979 में सेना में मिजोरम में प्रथम नियुक्ति पाई थी। आइए जानें कैसा रहा है जनरल बिपिन रावत का करियर और किन काबिलियत के दम पर उन्होंने पाया था यह मुकाम…
- उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में बिपिन रावत का जन्म हुआ था।
- इनके पिता एलएस रावत सेना से लेफ्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर थे।
- रावत ने भारतीय सैन्य अकादमी से स्नातक उपाधि प्राप्त की।
- आईएमए देहरादून में ‘सोर्ड आफ आनर’ से सम्मानित किए जा चुके हैं रावत।
- साल 2011 में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से सैन्य मिडिया अध्ययन में पीएचडी की।
- 01 सितंबर 2016 को रावत ने सेना के उप-प्रमुख के पद की जिम्मेदारी संभाली थी।
साहसिक फैसले लेने के लिए चर्चित थे जनरल रावत
जनरल बिपिन रावत… एक ऐसा नाम जो सख्त और साहसिक फैसले लेने के लिए विख्यात था। देश का पहला चीफ आफ डिफेंस स्टाफ बनने से पहले जनरल रावत थल सेना प्रमुख थे। उन्होंने इस पद पर रहते हुए कई अहम फैसले लिए और उन्हें अंजाम तक पहुंचाया। जनरल रावत के बतौर थलसेनाध्यक्ष सबसे अहम मिशन की बात की जाए तो वह बालाकोट एयरस्ट्राइक है। फरवरी 2019 में जब पाकिस्तान में घुसकर आतंकी कैंपों को नष्ट किया गया था तो थल सेना की कमान जनरल रावत के हाथ में ही थी।
पाक में एयर स्ट्राइक की भी संभाली थी कमान
जनरल बिपिन रावत कई महत्वपूर्ण रणनीतिक आपरेशन का हिस्सा रहे। बालाकोट में आतंकी संगठन जैश ए मुहम्मद के ठिकानों पर हमला कर उन्हें नष्ट करने के दौरान बतौर थलसेनाध्यक्ष उन्होंने रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। बता दें कश्मीर के पुलवामा में एक हमले में केंद्रीय सुरक्षा बल के 40 जवानों की शहादत के बाद भारतीय सैन्य बलों ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर बालाकोट में आतंकी कैंपों को नेस्तनाबूत किया था। कहा जाता है कि इस आपरेशन के समय जनरल रावत दिल्ली में साउथ ब्लाक के अपने आफिस से कमान संभाल रहे थे।
पूर्वोत्तर में उग्रवाद पर पाया था काबू
इसके अलावा 2015 में देश की पूर्वोत्तर सीमा से लगे पड़ोसी देश म्यांमार में भी आंतकरोधी आपरेशन में उन्होंने अपने अनुभव से दिशा दिखाई थी। उन्हें पूर्वोत्तर में उग्रवाद को नियंत्रित करने के लिए भी जाना जाता है। सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने पाकिस्तान और चीन के साथ लगती सीमाओं पर परिचालन संबंधी विभिन्न जिम्मेदारियां संभाली। उन्होंने पूर्वोत्तर समेत कई इलाकों में अहम पदों पर काम किया।
म्यांमार में सर्जिकल स्ट्राइक से कर दिया था हैरान
जनरल बिपिन रावत के के नेतृत्व में ही सेना मणिपुर में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए हमले के बाद सीमा पार म्यांमार में सर्जिकल स्ट्राइक की थी। इस सर्जिकल स्ट्राइक में एनएससीएन के कई उग्रवादियों को मार गिराया गया था और उनके कैंप तबाह कर दिए गए थे। इस कार्रवाई में 21 पैरा के कमांडो शामिल थे। थर्ड कार्प्स के अधीन इस बटालियन के कमांडर उस वक्त बिपिन रावत थे।
…बढ़ता गया रावत पर भरोसा
म्यांमार में की गई इस सर्जिकल स्ट्राइक की सफलता के बाद सरकार का जनरल रावत पर भरोसा और बढ़ गया था। नतीजतन रावत को 31 दिसंबर 2016 में सेना के तीनों अंगों का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था। कहते हैं कि इस मुकाम तक पहुंचने में रावत को पूर्वी सेक्टर में एलओसी, पूर्वोत्तर के अशांत इलाकों और कश्मीर में काम करने का लंबा अनुभव काम आया।
जनरल रावत को मिले यह सम्मान
परम विशिष्ट सेवा मेडल
उत्तम युद्ध सेवा मेडल
अति विशिष्ट सेवा मेडल
विशिष्ट सेवा मेडल
युद्ध सेवा मेडल
सेना मेडल
पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक से कर दिया था हैरान
उरी में सेना के कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद जनरल बिपिन रावत ने ही पाकिस्तान पर पलटवार की कमान संभाली थी। जनरल बिपिन रावत के ही नेतृत्व में भारतीय सेना ने 29 सितंबर 2016 को पाकिस्तान में स्थित आतंकी शिविरों को ध्वस्त करने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था। ट्रेंड पैरा कमांडो ने इस सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था। इस सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान बुरी तरह घबरा गया था।
पहाड़ी क्षेत्रों पर लड़ाई में माहिर
जनरल बिपिन रावत को दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में युद्ध में कुशल माना जाता था। वह उत्तरी और पूर्वी कमान में तैनात रहे। दक्षिणी कमान में भी वह जनरल आफिसर कमांडिंग इन चीफ रहे।
इन पदों की बढ़ाई शोभा
सन 1978 में सेना की 11वीं गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन में सीडीएस जनरल रावत को कमीशन मिला था। अरुणाचल प्रदेश में वह बतौर पर कर्नल वह 11 गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन के कमांडर रहे। ब्रिगेडियर के तौर पर उन्होंने कश्मीर के सोपोर में राष्ट्रीय रायफल्स की कमान संभाली। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भी काम किया और अफ्रीकी देश कांगो में तैनात रहे। उन्हें दो बार फोर्स कमांडेंट कमेंडेशन भी मिला।
इन्हीं ट्रैक रिकार्ड के चलते छूटते हैं चीन पाक के पसीने
उन्होंने साल 1986 में चीन से लगी एलएसी पर इन्फेंट्री बटालियन के प्रमुख पद की जिम्मेदारी संभाली थी। जनरल रावत कश्मीर में 19 इन्फेंट्री डिवीजन की भी अगुआई कर चुके हैं। उन्होंने देश ही नहीं, संयुक्त राष्ट्र के अभियानों में भी भारत का नेतृत्व किया है। उनको दो सितंबर 2016 को उप सेना प्रमुख नियुक्त किया गया था। उन्हें युद्ध सेवा मेडल, सेना मेडल, उत्तर युद्ध सेवा मेडल, एवीएसएम, विदेश सेवा मेडल से सम्मानित किया जा चुका है।
- यह भी पढ़े…..
- गांव की लाइफलाइन हैं आशा दयावंती, संस्थागत प्रसव के लिए करती हैं महिलाओं को जागरूक
- जेल में बंद पत्रकारों की संख्या 2021 में वैश्विक स्तर पर पहुंची.
- देश के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत के निधन पर पेट्स जलालपुर में श्रद्धांजलि सभा आयोजित
- सारण के माधोपुर गांव के रवि गोप बने दिल्ली में मेट्रो रेल के पायलट