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‘सीरत’ सच की भाषा है—प्रो.चंद्रकला त्रिपाठी,साहित्यकार.

‘सीरत’ सच की भाषा है—प्रो.चंद्रकला त्रिपाठी,साहित्यकार.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

कस्तूरी के आभासीय मंच पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। प्रो.मंगला कपूर की आत्मकथा ‘सीरत’ परिचर्चा के केंद्र में थी।
लेखकीय वक्तव्य एवं पुस्तक की रचना-प्रक्रिया साझा करते हुए प्रो.मंगला कपूर ने कहा कि, उपेक्षा, तिरस्कार,अलगाव एवं पीड़ा से उपजी ‘सीरत’ ने समाज से मुझे जोड़ा है। एक जीवन में कई जीवन से गुजरी यह यात्रा एक पीड़ा से दूसरी पीड़ा का स्वागत करती है। ‘इच्छाशक्ति’ और ‘आत्मबल’ से चुनौतियों का सामना करने का साहस मिला। ‘सीरत’ ने मुझे दूसरा जन्म दिया है।

साहित्यकार एवं पुस्तक लेखन की प्रेरणास्रोत प्रो.चंद्रकला त्रिपाठी ने तमाम अनुभवों के माध्यम से लेखक की जीवटता, साहस और उम्मीद से बंधे रहने की बात सभी से साझा की। प्रो.त्रिपाठी ने कहा कि, ‘मशीन’ बनती जा रही दुनिया को संवेदना से जोड़ने का काम किताब करती है। ‘फीनिक्स’ पक्षी की भांति यह किताब अपने भोगे ताप से जन्मी है। इस रौशनी ने दुनिया से खुद को जोड़ा है। महसूस होती ‘सीरत’ के पास सच की भाषा है। यह ‘सूरत’ की मोहताज नहीं है।
‘सीरत’ आत्मकथा का प्रकाशन बोधि प्रकाशन ने किया है। संपादक श्री माया मृग ने अपने वक्तव्य में कहा कि, किताबें हमें बेहतर बनाती हैं। समाज की संवेदनहीनता को दूर करने एवं सोचने को मज़बूर करने की दृष्टि से ‘सीरत’ महत्वपूर्ण किताब है। भीतर तक झकझोरते शब्दों को किताब की शक्ल देकर ‘बोधि प्रकाशन’ ने जीने की इस यात्रा से स्वयं को जोड़ा है।

इस दौरान संपादक ने किताब के दूसरे खंड के प्रकाशन की जानकारी भी दी।
चिकित्सक,लेखक डॉ. निधि अग्रवाल ने विस्तार से सामाजिक हिंसा, न्याय व्यवस्था एवं इसके बीच ‘सीरत’ के उगने के कारणों पर बात रखी।
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि, इस किताब को पढ़ना दुख,आक्रोश,तड़प सबकुछ को एक साथ जीने जैसा है। इंसान की पीड़ा बढ़ाने वाली ‘इंसानियत’ का यह रूप मुझे परेशान कर रहा है। रौशनी देने की जगह हम जिंदगियों से रौशनी छीनते जा रहे हैं, यह आज का सबसे ज़रूरी प्रश्न है। हमें सजग होने की ज़रूरत है। ‘सीरत’ पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ी सच का सामना करने की शक्ति महसूस सके।

रश्मि सिंह(शोधार्थी, हिन्दी विभाग,महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार) ने कहा कि, ‘सूरत’ चुनौती देती ‘सीरत’ हम सभी के लिए आईना है जिसमें हम अपना क्रूर चेहरा देख सकें। यह मात्र किताब नहीं है बल्कि हर रोज उगने, कटने और फिर से जनमने की ज़िद है। इस ज़िद ने हम युवाओं को रौशनी दी है जिसके साथ हम दुनिया का सामना कर सकते हैं।

कार्यक्रम का कुशल,सफल संचालन साहित्य अध्येता विशाल पांडेय ने किया।

आभार-रश्मि सिंह,शोधार्थी,हिन्दी विभाग
महात्मा गाँधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिहार।

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