क्या अफगान जनता के बीच भारत की सकारात्मक और विश्वसनीय छवि है?

क्या अफगान जनता के बीच भारत की सकारात्मक और विश्वसनीय छवि है?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत ने मानवीय सहायता के रूप में 1.6 टन जीवन रक्षा दवाएं अफगानिस्तान भेजी हैं. इन दवाओं को काबुल में विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधियों को दिया गया है और इनका वितरण इंदिरा गांधी बाल चिकित्सालय के द्वारा किया जायेगा. भारत ने 50 हजार टन गेहूं भेजने का वादा भी किया है. यह एक अहम घटनाक्रम है. जब बीते 15 अगस्त को तालिबान ने काबुल पर कब्जा किया था, तब से बहुत दिनों तक अनिश्चितता का माहौल रहा था कि भारत की प्रतिक्रिया क्या होगी तथा दोनों देशों के संबंधों का भविष्य क्या होगा. इस माहौल में कुछ बदलाव आता दिख रहा है.

उल्लेखनीय है कि अनेक क्षेत्रीय देश, जैसे रूस, मध्य एशियाई देश आदि तालिबान के लगातार संपर्क में हैं. तालिबान ने भी बार-बार यह कहा है कि दक्षिण एशियाई दशों और अन्य पड़ोसी देशों सहित पूरी दुनिया के साथ वह अच्छे संबंध रखना चाहता है तथा वह किसी भी देश के विरुद्ध अफगान धरती का इस्तेमाल नहीं होने देगा. भारत लंबे समय से अफगानिस्तान में कई विकास परियोजनाओं को संचालित करता रहा है. उनको लेकर भी असमंजस की स्थिति है, लेकिन पिछले माह दिल्ली में रूस, मध्य एशियाई देशों और कुछ अन्य देशों की बातचीत के बाद संतोषजनक दिशा में प्रगति हो रही है.

भारतीय कूटनीति के रवैये में यह समझ आयी है कि भारत को अफगानिस्तान की जनता को नहीं छोड़ना चाहिए. यह सर्वविदित तथ्य है कि अफगान जनता के बीच भारत की सकारात्मक और विश्वसनीय छवि है. उसे बनाये रखना जरूरी है. इसी दृष्टिकोण से दवाएं भेजी जा रही हैं. आगे कोरोना टीके भी मुहैया कराये जायेंगे. अनाज की आपूर्ति पाकिस्तान की अड़चनों के कारण कुछ बाधित हुई, पर अब स्पष्ट है कि गेहूं भी अफगानिस्तान पहुंच जायेगा.

अफगानिस्तान एक बड़े मानवीय संकट के कगार पर है और इससे पूरी दुनिया चिंतित है. ऐसे में भारत की पहल को दो तरह से देखना चाहिए. एक, हमारे कूटनीतिक समुदाय में यह स्पष्टता है कि हमें अफगान जनता का साथ नहीं छोड़ना है. दूसरी बात यह है कि भारत की मदद से भारत के प्रति तालिबान के पहले के रवैये पर भी असर पड़ेगा. इस बार सत्ता हासिल करने के बाद से तालिबान लगातार भारत से विकास परियोजनाओं को जारी रखने का आह्वान करता रहा है.

विशेषज्ञ लगातार इस बात पर जोर दे रहे थे कि हमें तालिबान के साथ संपर्क का एक चैनल बनाना चाहिए और संवाद स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए. आज की वास्तविकता यही है कि तालिबान अफगानिस्तान से जानेवाला नहीं है. पिछले कुछ समय से जो तालिबान से संपर्क हुआ है, उसमें इन मानवीय सहायताओं से बेहतरी आयेगी तथा कूटनीतिक संपर्क के विस्तार को आधार मिलेगा. अहम बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र, विश्व स्वास्थ्य संगठन, रेड क्रॉस जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी गंभीर मानवीय संकट को टालने की कोशिश में जुटी हुई हैं. अफगान सरकार के अरबों डॉलर विदेशी वित्तीय संस्थाओं के पास है. उसे तालिबान मांग रहा है, पर अभी शायद वह धन उपलब्ध नहीं हो सकेगा. विश्व बैंक ने भी अपनी कुछ परियोजनाओं को फिर से शुरू किया है.

यदि अंतरराष्ट्रीय सहायता समुचित ढंग से नहीं मिल पाती है, तो माना जा रहा है कि बड़ी संख्या में अफगान भयावह गरीबी में चले जायेंगे. पहले से ही वहां व्यापक निर्धनता है. अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था का 21 प्रतिशत हिस्सा अंतरराष्ट्रीय मदद से आता है. आज तालिबान शासन को किसी भी देश ने कूटनीतिक मान्यता नहीं दी है और संयुक्त राष्ट्र में भी उसका प्रतिनिधित्व नहीं हैं.

इस राजनीतिक संकट की वजह से जो मानवीय संकट उत्पन्न हो रहा है, उसका समाधान करना जरूरी है. इसलिए वैश्विक स्तर पर यह सहमति बन रही है कि मानवीय आधार पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अफगानिस्तान की मदद करनी चाहिए. इस संदर्भ में भारत की पहल सराहनीय है और इससे अन्य देशों को भी प्रोत्साहन मिलेगा. यह मदद भी व्यापक वैश्विक समुदाय की साझेदारी का ही हिस्सा है, क्योंकि दवाओं एवं अनाज जैसी चीजों का वितरण अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के माध्यम से ही होगा, न कि तालिबान शासन के द्वारा.

ऐसे संकेत हैं कि अप्रैल तक अमेरिका और यूरोपीय देश तालिबान के साथ सीधे संपर्क की प्रक्रिया अपनायेंगे. इस स्थिति को देखते हुए भी भारत की पहल महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि हम अफगान जनता के साथ भी जुड़े रहेंगे और तालिबान के साथ संपर्क भी बेहतर होगा. भविष्य में कूटनीतिक गतिविधियों में इससे बड़ी सहायता मिलेगी. भारत ने स्पष्ट संकेत भी दे दिया है कि अफगानिस्तान में उसकी पूरी दिलचस्पी है और वह युद्ध से ग्रस्त देश के पुनर्निर्माण में सहयोग देने के लिए तैयार है. इससे यह संकेत भी मिलता है कि पहले की तरह भारत के लिए तालिबान अब अछूत नहीं रहा.

विकास से संबंधित मुद्दों पर भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय और क्षेत्रीय देशों के साथ मिल कर आगे बढ़ रहा है. ऐसे में भविष्य की स्थितियों के लिए वर्तमान पहलें सकारात्मक भूमिका निभायेंगी. अगस्त से अब तक की अवधि को देखें, तो बड़ा अंतर आ चुका है और भारतीय कूटनीति असमंजस की स्थिति से बाहर निकल चुकी है. भारत मानवीय सहायता और विकास परियोजनाओं को लेकर प्रतिबद्ध होता दिख रहा है. आगे की स्थितियां बहुत कुछ तालिबान के रुख पर निर्भर करेंगी. फिलहाल भारत का संकेत यह है कि हम अफगानिस्तान की जनता को नहीं छोड़ रहे हैं.

 

Leave a Reply

error: Content is protected !!