राजनीति में भाजपा की जगह लेना असंभव-सा है,क्यों?
श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क
चुनावी मौसम है तो सभी नेता जनता को लुभाने के लिए तमाम तरह के प्रयास कर रहे हैं। जो नेता कभी हिंदू की बात नहीं करते थे, जो नेता कभी मंदिर नहीं जाते थे वह आज खुद को हिंदू बता रहे हैं और मंदिर-मंदिर जा रहे हैं। मंदिर जा ही नहीं रहे हैं बल्कि माथे पर बड़ा-सा तिलक और चंदन का लेप भी लगा रहे हैं। कोई मुख्यमंत्री सार्वजनिक मंच से हनुमान चालीसा का पाठ कर रहा है तो कोई मुख्यमंत्री चंडी पाठ कर रहा है। एक प्रतिस्पर्धा-सी चल रही है खुद को भाजपा से बड़ा हिंदू और रामभक्त या शिवभक्त दर्शाने की। दूसरी ओर भाजपा चूंकि शुरू से ही हिन्दू और हिन्दुत्व की बात करती रही है इसलिए चुनावों से पहले वह जनता को यह दिखा रही है कि उसने धार्मिक स्थलों के विकास के जरिये अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचाने और लोगों के जीवन में बदलाव लाने के लिये क्या-क्या काम किये।
अपनी बात को सर्वाधिक प्रभावी तरीके से कहना भाजपा अच्छे से जानती है इसलिए सबने देखा कि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण के समय वाराणसी में कैसा भव्य आयोजन हुआ। कॉरिडोर के लोकार्पण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उपमुख्यमंत्रियों ने एक साथ गंगा आरती में भी शिरकत की। प्रधानमंत्री ने क्रूज पर मुख्यमंत्रियों के साथ भव्य गंगा आरती देखी तो राजनीतिक लिहाज से एक नया इतिहास बन गया। गंगा आरती के दौरान प्रधानमंत्री के साथ क्रूज पर सवार होने वालों में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा 12 मुख्यमंत्रियों के अलावा, भाजपा शासित राज्यों के उपमुख्यमंत्री और उनके परिवार के सदस्य भी सवार थे।
अब भाजपा की यह हिन्दुत्व पॉलिटिक्स विद फैमिली अयोध्या में भी दिखाई दी। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा पार्टी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों, उपमुख्यमंत्रियों और उनके परिजनों के साथ रामनगरी अयोध्या पहुँचे। यहां भाजपा नेताओं ने सरयू तट पर आरती की, हनुमानगढ़ी मंदिर में पूजा अर्चना की और रामलला के दर्शन कर आशीर्वाद लिया। देखा जाये तो श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण के लिए बरसों तक आंदोलन चलाने वाली भाजपा को इसका जबरदस्त चुनावी लाभ भी मिलता रहा है।
अब यह लाभ स्थायी हो जाये इसके लिए भाजपा एक बार सबको स्मरण करा रही है कि मंदिर के लिए आंदोलन किसने चलाया, मंदिर के लिए जेल कौन गया, मंदिर के लिए अदालती लड़ाई किसने लड़ी और मंदिर का भव्य शिलान्यास किसने कराया। जेपी नड्डा मुख्यमंत्रियों के साथ अयोध्या इसलिए भी पहुँचे क्योंकि उत्तर प्रदेश के साथ ही जिन राज्यों में चुनाव होने हैं उनमें उत्तराखण्ड, पंजाब, गोवा और मणिपुर शामिल हैं। इन राज्यों में भी भाजपा अपनी हिन्दुत्व स्टाइल वाली राजनीति को आगे बढ़ा सके और वहां के मतदाताओं को संदेश दे सके इसका प्रयास किया गया है।
यही नहीं अगले साल ही हिमाचल प्रदेश और गुजरात में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। गुजरात को तो हिन्दुत्व की प्रयोगशाला भी बताया जा चुका है और हिमाचल में भी हिन्दू मतदाताओं की संख्या ही सर्वाधिक है इसलिए वहां के मतदाताओं को भी संदेश दिया गया है।
जबसे श्रीराम मंदिर निर्माण का काम शुरू हुआ है तब से अनेक राजनीतिक दलों के नेताओं और विपक्ष शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अयोध्या आकर अपनी-अपनी पार्टियों के चुनावी अभियान का शुभारंभ करना शुरू कर दिया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने तो तीर्थयात्रा योजना के तहत श्रद्धालुओं को अयोध्या के दर्शन कराना भी शुरू कर दिया है।
भाजपा के विभिन्न नेता, मंत्री, सांसद और खासकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यहां समय-समय पर आते ही रहते हैं लेकिन अब जिस तरह से भाजपा अध्यक्ष अपने पूरे पार्टी परिवार के साथ यहां आये वह अन्य दलों को संदेश देता है कि अपने को भाजपा से बड़ा हिंदू और रामभक्त कहना अलग बात है लेकिन हिंदुत्व की राजनीति में भाजपा की जगह लेना आसान नहीं है।
बहरहाल, हर अयोध्यावासी जानता है कि शहर के बदले परिदृश्य के लिए किसने कितना योगदान दिया है इसलिए उनके मन में क्या है यह तो वह चुनावों के समय ही बताएंगे लेकिन नेताओं का अयोध्या आना लगातार जारी है। भाजपा के स्टाइल में हिंदू पॉलिटिक्स करने से किस दल को कितना फायदा होगा यह तो समय ही बतायेगा। अब देखना यह भी होगा कि भाजपा नेताओं ने ‘अब जो मथुरा की बारी है’ वाला बयान देना शुरू किया है क्या उसमें विपक्ष के नेता भी अपना सुर मिलाते हैं।
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