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1971 के युद्ध में अंबाला से एयर अटैक ने उड़ा दी थी पाकिस्तान की नींद.

1971 के युद्ध में अंबाला से एयर अटैक ने उड़ा दी थी पाकिस्तान की नींद.

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्‍क

भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 की जंग में जहां बांग्लादेश का गठन हुआ, वहीं इस जीत में खड्गा कोर की भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। बंगाल में इसी खड्गा कोर की स्थापना हुई थी, जिसने इस युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) के कई इलाकों पर कब्जा भी किया। महज दो माह के गठन के बाद ही इस कोर ने युद्ध में अपनी छाप छोड़ी थी। इसके अलावा अंबाला से वायु वीरों ने अमृतसर एयरबेस से पाकिस्तान पर एयर अटैक किया था, जिसमें दुश्मनों को काफी नुकसान हुआ था। अंबाला के मेजर विजय रतन इसी युद्ध में शहीद हुए थे, जिनकी याद में अंबाला कैंट में विजय रतन चौक भी बनाया गया है।

उल्लेखनीय है कि भारत और पाकिस्तान के बीच 3 दिसंबर 1971 को युद्ध शुरु हुआ था, जिसमें पाकिस्तान की एयफोर्स ने अंबाला एयरबेस पर अटैक किया था। यह टैक पूरी तरह से नाकामयाब रहा, जबकि इसके बाद चार दिसंबर और नौ दिसंबर को भी पाकिस्तान ने एयर अटैक किया था, जिसमें अंबाला एयरबेस पूरी तरह से सुरक्षित रहा।

इसके बाद अंबाला एयरबेस से 32 स्क्वाड्रन के विंग कमांडर एचएस मांगट ने अमृतसर एयरबेस से उड़ान भरी और दुश्मन देश के कई ठिकानों को नष्ट कर दिया। यह युद्ध चौदह दिनों तक चला, जिसके बाद बांग्लादेश का गठन हुआ। दूसरी ओर इस युद्ध में अंबाला के मेजर विजय रतन भी शहीद हुए थे। युद्ध के दौरान दुश्मनों द्वारा बिछाई गई माइन की चपेट में आने से वे शहीद हो गए थे। उनकी याद में अंबाला कैंट में विजय रतन चौक का निर्माण भी किया गया है।

यह है खड्गा कोर

खड्गा कोर की स्थापना अक्टूबर 1971 में तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल टीएन रैना ने कृष्णा नगर बंगाल में की थी। सिर्फ दो माह बाद ही यह कोर युद्ध में उतरी और पाकिस्तानी सेना के पांव उखाड़ दिए। इस काेर ने पूर्वी पाकिस्तान के खुलना, जैसोर, झेनिदा, मगुरा, फरीदपुर सहित कई क्षेत्रों पर कब्जा किया था। इस युद्ध के बाद खड्गा कोर को पश्चिम थिएटर चंडीमंदिर में शिफ्ट कर दिया गया। चंडीमंदिर से जनवरी 1985 यह कोर अंबाला कैंट आ गई, जो अभी भी यहीं पर है।

यूं तो भारत और पाकिस्तान के बीच तीन दिसंबर 1971 को युद्ध शुरू हो गया था लेकिन दो पैरा, तीन पैरा और सात पैरा को अदम्य साहस दिखाने का मौका बाद में मिला। आगरा से दो पैरा ब्रिगेड की टुकड़ी कोलकाला, पश्चिम बंगाल स्थित बोटेनिकल गार्डन में एकत्रित हुई। 11 दिसंबर की रात आठ बजे पैराट्रूपर्स को छलांग लगानी थी। यह छलांग काफी अहम थी। तंगेज क्षेत्र के पास एक पुल था।

इस पुल की अहमियत थी क्योंकि इसी से भारतीय सेना का रसद और सैन्य उपकरण गुजरने थे। यह बात पाकिस्तानी सेना को अच्छी तरीके से पता थी। पाकिस्तानी सेना इस पुल पर किसी तरीके से कब्जा करना चाहती थी। इसी के चलते दो पैरा के पैराट्रूपर्स को पुल अपने कब्जे में लेने का आदेश मिला। पाकिस्तानी सेना ने पुल के समीप पहुंचना शुरू कर दिया। सेवानिवृत्त मेजर शिव कुंजरू (युद्ध के समय कैप्टन) ने बताया कि पुल को बचाने के लिए प्लान बदलना पड़ा। शाम चार बजे पैराट्रूपर्स को छलांग लगाने के लिए कहा गया। इसके लिए डकोटा सहित अन्य विमानों का प्रयोग किया गया।

जैसे ही भारतीय पैराट्रूपर्स ने छलांग लगाई। पाकिस्तानी सेना ने गोलियों की बौछार शुरू कर दी। भारतीय जवानों का हौसला कम होने के बजाय और भी बढ़ गया। जवान पुल के समीप उतरे और पुल को कब्जे में ले लिया। कावेरी कालोनी, शमसाबाद रोड निवासी शिव कुंजरू ने बताया कि पुल के पास बड़ी संख्या में पाकिस्तानी जवान पहुंचे। इन जवानों पर भारतीय वीरों ने जवाबी हमला शुरू कर दिया। भारतीय सेना का मनोबल देख पाकिस्तानी जवान भाग खड़े हुए। पुल अपने कब्जे में रखा।

दलदल में गिरे और उठ खड़े हुए

कर्नल शिव कुंजरू ने बताया कि बड़ी संख्या में पैराट्रूपर्स दलदल और पानी में गिरे लेकिन अपने पैराशूट को समेटा और जल्द उठ खड़े हुए।

और ग्रामीण बने भगवान, भारतीय सेना का दिया साथ

लायर्स कालोनी निवासी सेवानिवृत्त मेजर जनरल (युद्ध में कैप्टन) प्रताप दयाल ने बताया कि ढाका के आसपास के ग्रामीणों ने भारतीय सेना का साथ दिया। युद्ध में कंधे से कंधा मिलाकर चले। खाना और पानी उपलब्ध कराने के साथ ही पाकिस्तानी सेना के आने की जानकारी दी। भारतीय सेना ने चारों दिशाओं से पाकिस्तानी सेना को घेर लिया। इससे पाकिस्तान जवान घबरा गए और भाग खड़े हुए।

कैप्टन निर्भय शर्मा बने थे संदेशवाहक

कर्नल शिव कुंजरू ने बताया कि युद्ध विराम में दो पैरा के कैप्टन निर्भय शर्मा संदेशवाहक बने थे। ले. जनरल पद से सेवानिवृत्त हुए निर्भय पाकिस्तानी जनरल नियाजी के पास पहुंचे थे।

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