Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the newsmatic domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/imagequo/domains/shrinaradmedia.com/public_html/wp-includes/functions.php on line 6121
तानाशाह देश भी अपनी व्यवस्था को लोकतांत्रिक सिद्ध करने में जुटे,क्यों? - श्रीनारद मीडिया

तानाशाह देश भी अपनी व्यवस्था को लोकतांत्रिक सिद्ध करने में जुटे,क्यों?

तानाशाह देश भी अपनी व्यवस्था को लोकतांत्रिक सिद्ध करने में जुटे,क्यों?

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
priyranjan singh
IMG-20250312-WA0002
IMG-20250313-WA0003
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्‍क

फ्रीडम हाउस’ नामक संस्था के अनुसार पिछले साल दुनिया के 73 देशों में लोकतंत्र कमजोर पड़ा। इनमें दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका और सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत, दोनों शामिल थे। इस साल लोकतंत्र के ह्रास की रफ्तार और तेज हुई। म्यांमार और सूडान में लोकतंत्र के लिए आंदोलन करने वालों को निर्वासन, यातना और मौत का सामना करना पड़ा। हांगकांग की स्वायत्तता पर अंकुश लगाया गया। ताइवान के आसमान पर चीनी विमान मंडरा रहे हैं और रूसी सेनाएं यूक्रेन के दरवाजे पर दस्तक दे रही हैं। आप कह सकते हैं कि तानाशाही ताकतें लोकतंत्रों पर हावी होती जा रही हैं।

दूसरे नजरिये से देखें तो लोकतंत्र का ठप्पा सत्ता की वैधानिकता और सुशासन का सर्वसम्मत पर्याय बन चुका है। तानाशाह देश भी अपनी व्यवस्था को लोकतांत्रिक सिद्ध करने में जुटे हैं। एकदलीय शासन वाले चीन ने दावा किया है कि चीन की पीपुल्स कांग्रेस के चुनाव दुनिया के सबसे बड़े चुनाव होते हैं। इसलिए चीन दुनिया का सबसे बड़ा और स्थिर लोकतंत्र है, जिसमें भारत जैसी अराजकता और अस्थिरता नहीं है। रूस का दावा है कि उसके यहां तो बहुदलीय लोकतंत्र है।

ईरान भी बहुदलीय लोकतंत्र होने का दावा कर सकता है। यानी लोकतंत्र पर दोतरफा हमला हो रहा है। जहां लोकतंत्र है, वहां पहले सत्ता हथियाने और फिर उस पर काबिज रहने के लिए अधिनायकता, ध्रुवीकरण, लोकरंजन और अभिव्यक्ति पर अंकुश जैसे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। जहां लोकतंत्र नहीं है, वहां तानाशाही को वैध ठहराने के लिए उसे लोकतंत्र के स्थानीय और अधिक उपयुक्त रूप में पेश कर दुनिया को गुमराह किया जा रहा है। यह लगातार पांचवां साल जिसमें लोकतंत्र की तरफ बढ़ने वाले देशों की तुलना में तानाशाही की ओर उन्मुख देशों की संख्या ज्यादा रही।

ऐसे में लोकतंत्र पर अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलन का विचार बुरा नहीं था, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने उसमें जिस प्रकार कुछ देशों को बुलावा भेजा और कुछ को नहीं तो उस पर सवाल उठने स्वाभाविक थे। लोकतंत्र के मंच पर अमेरिकी नेतृत्व के औचित्य पर भी सवाल उठना लाजिमी है, क्योंकि एक के बाद एक अमेरिकी राज्य मतदान के अधिकारों पर अंकुश लगाते जा रहे हैं। वहीं पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले चुनाव में न केवल अपनी हार मानने से इन्कार किया, बल्कि सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण को रोकने का प्रयास भी किया।

इस लोकतंत्र शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों को तीन लक्ष्यों पर ठोस प्रतिबद्धता व्यक्त करनी थी। तानाशाही प्रवृत्ति को रोकना, भ्रष्टाचार मिटाना और मानवाधिकारों की रक्षा करना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन तीनों लक्ष्यों पर कुछ वचन देने या जिन बातों को लेकर भारत की आलोचना हो रही है, उन पर कुछ कहने के बजाय भारत के जन-जन में बसी लोकतंत्र की भावना को रेखांकित किया।

उन्होंने कहा कि भारत स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने और प्रशासन के हर क्षेत्र में डिजिटल समाधानों के जरिये पारदर्शिता लाने के काम में अपनी विशेषज्ञता साझा करने को तैयार है। आलोचकों का कहना है कि लोकतंत्र के लिए केवल स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव ही काफी नहीं हैं। उसके लिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता, राजनीतिक एवं नागरिक स्वतंत्रता और मीडिया की स्वतंत्रता जैसे अन्य तत्वों का होना भी आवश्यक है। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों का दावा तो सिंगापुर, चीन, ईरान और रूस जैसे देश भी कर सकते हैं, जहां या तो एक ही दल है या एक से अधिक दल होने की स्थिति में चुनावों में भागीदारी के लिए सर्वोच्च सत्ता की अनुमति आवश्यक है।

भारत में पंचायत चुनावों को छोड़ दें तो अन्य चुनावों में उम्मीदवारों का चयन पार्टी आलाकमान ही करता है। इनमें भी अधिकांश दल खानदानी जागीर की भांति या वंशवाद के दम पर चल रहे हैं। इसलिए आलाकमान का मतलब नेता, उसका कुनबा या कृपापात्र होते हैं। उम्मीदवार के निर्धारण में जनता की कोई भूमिका नहीं होती। थोपे हुए नेताओं के कारण ही तमाम लोग निराशा में मतदान करने के लिए भी नहीं जाते।

अमेरिका, ब्रिटेन के अलावा यूरोप के कई देशों में ऐसा नहीं है। वहां छोटे से छोटे चुनाव से लेकर बड़े से बड़े चुनाव तक उम्मीदवारों का चयन हमेशा पार्टी सदस्य करते हैं। आलाकमान या सर्वोच्च सत्ता का कोई हस्तक्षेप नहीं होता। लोक और तंत्र के बीच का रिश्ता बना रहता है। इसीलिए इसे लोकतंत्र कहा जाता है। भारत की पार्टियों में व्याप्त वंशवाद और अधिनायकवाद की वजह से लोक और तंत्र के बीच का यह रिश्ता टूट चुका है।

जब पार्टी सदस्य ही अपने क्षेत्र के उम्मीदवार चयन में कोई भूमिका नहीं निभा सकते तो फिर उनमें और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में क्या अंतर हुआ? दिक्कत यह है कि चुनाव आयोग पार्टियों को दलगत लोकतंत्र और पारदर्शिता का उपदेश देने के अलावा कर भी क्या सकता है? रही भ्रष्टाचार की बात तो यह एक विश्वव्यापी समस्या है।

कहने को अमेरिका में जनता से चंदा मांगकर चुनाव लड़े जाते हैं, परंतु हर पार्टी जानती है कि चुनाव लड़ने और पार्टी चलाने के लिए चंदे से कहीं ज्यादा भारी भरकम राशि की जरूरत पड़ती है जो अमीरों, कंपनियों और निगमों से ली जाती है। भारत में स्थिति और खराब है। चुनाव प्रचार में चुनाव आयोग की तय सीमा से कई गुना पैसा खर्च किया जाता है और वह अक्सर काले स्नेतों से आता है।

जिस व्यवस्था की बुनियाद ही संदिग्ध पैसों, वंशवादी दलों और उनके आलाकमान द्वारा थोपे गए उम्मीदवारों पर टिकी हो उससे आप सुधारों की कितनी उम्मीद रख सकते हैं? यह हम सब के लिए विचार का विषय है। यदि भारत को प्रशासन और राजनीतिक दलों में तानाशाही एवं वंशवादी प्रवृत्ति को रोकने के लिए गंभीरता से कुछ करना है।

यदि भ्रष्टाचार मिटाने और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कुछ करना है तो सबसे पहले दलों के भीतर वंशवाद को हटाकर आंतरिक लोकतंत्र लाना होगा। चुनाव में अनावश्यक खर्च पर अंकुश लगाना होगा। जब इंटरनेट मीडिया और मुख्यधारा का मीडिया घर-घर पहुंच चुका है तो लोगों को जुटाकर मैदान भरने के बजाय उम्मीदवार मतदाता से प्रत्यक्ष संवाद पर ध्यान दें। इससे खर्च घटेगा और मतदाता और प्रत्याशी के बीच नाता भी कायम होगा। क्या भारत की राजनीतिक पार्टियां इसके लिए तैयार हैं?

Leave a Reply

error: Content is protected !!