Breaking

गैर-सरकारी संगठन का विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) 2010,लाइसेंस रद्द.

गैर-सरकारी संगठन का विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) 2010,लाइसेंस रद्द.

०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow
०१
WhatsApp Image 2023-11-05 at 19.07.46
previous arrow
next arrow

श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010 के तहत पंजीकरण को रद्द कर दिया है।

  • FCRA लाइसेंस के निलंबन का मतलब है कि गैर-सरकारी संगठन अब दाताओं से विदेशी धन प्राप्त नहीं कर सकेंगे, जब तक कि गृह मंत्रालय द्वारा जाँच नहीं की जाती है। विदेशी धन प्राप्त करने हेतु संघों और गैर-सरकारी संगठनों के लिये FCRA पंजीकरण अनिवार्य है।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • वडोदरा स्थित एक गैर-सरकारी संगठन का FCRA पंजीकरण रद्द कर दिया गया है, क्योंकि उस पर हिंदू समुदाय के सदस्यों को अवैध रूप से धर्म परिवर्तित करने, CAA के विरोध प्रदर्शनों को वित्तपोषित करने से संबंधित आपराधिक गतिविधियों में संलग्न होने का आरोप लगाया गया है।
    • इसके अलावा दो अन्य ईसाई गैर-सरकारी संगठनों- तमिलनाडु स्थित ‘न्यू होप फाउंडेशन’ और कर्नाटक के ‘होली स्पिरिट मिनिस्ट्री’ का भी FCRA पंजीकरण रद्द कर दिया गया है।
    • साथ ही बीते दिनों अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर ‘AFMI चैरिटेबल ट्रस्ट’ का FCRA पंजीकरण भी रद्द कर दिया गया था।
  • पूर्व संदर्भ श्रेणी:
    • गृह मंत्रालय ने 10 ऑस्ट्रेलियाई, अमेरिकी और यूरोपीय दानदाताओं को अपनी निगरानी सूची में शामिल किया है।
      • जिसके बाद भारतीय रिज़र्व बैंक ने सभी बैंकों को लिखा था कि इन विदेशी दानदाताओं द्वारा भेजे गए किसी भी फंड को मंत्रालय के संज्ञान में लाया जाना चाहिये और अनुमति के बिना इसकी मंज़ूरी नहीं दी जानी चाहिये।
    • सभी दानदाता जिन्हें वॉचलिस्ट या ‘पूर्व संदर्भ श्रेणी’ में रखा गया है, वे अधिकांशतः जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण और बाल अधिकारों के क्षेत्र में काम करते हैं।
  • विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010: भारत में विदेशी वित्तपोषण को इस अधिनियम के तहत विनियमित किया जाता है और गृह मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
    • किसी व्यक्ति विशिष्ट या गैर-सरकारी संगठन को गृह मंत्रालय की अनुमति के बिना विदेशी योगदान स्वीकार करने की अनुमति होती है।
    • हालाँकि इस तरह के विदेशी योगदान की स्वीकृति हेतु मौद्रिक सीमा 25,000 रुपए से कम होनी चाहिये।
    • अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले उस उद्देश्य का पालन करते हैं जिसके लिये ऐसा योगदान प्राप्त किया गया है।
    • अधिनियम के तहत संगठनों को प्रत्येक पाँच वर्ष में पंजीकरण कराना आवश्यक है।
    • पंजीकृत गैर-सरकारी संगठन निम्नलिखित पाँच उद्देश्यों हेतु विदेशी योगदान प्राप्त कर सकते हैं:
      • सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक।
  • विदेशी अंशदान विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020
    • विदेशी अंशदान स्वीकार करने पर रोक: अधिनियम लोक सेवकों को विदेशी अंशदान प्राप्त करने से रोकता है।
      • लोक सेवक में वे सभी व्यक्ति शामिल हैं, जो सरकार की सेवा में या वेतन पर कार्यरत हैं अथवा जिन्हें किसी लोक सेवा के लिये सरकार से मेहनताना मिलता है।
    • विदेशी अंशदान का हस्तांतरण: अधिनियम विदेशी अंशदान को स्वीकार करने के लिये पंजीकृत किसी अन्य व्यक्ति को विदेशी अंशदान के हस्तांतरण पर रोक लगाता है।
    • पंजीकरण के लिये आधार: अधिनियम पहचान दस्तावेज़ के रूप में विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले व्यक्ति, सभी पदाधिकारियों, निदेशकों या प्रमुख पदाधिकारियों के लिये  आधार संख्या अनिवार्य बनाता है।
    • FCRA अकाउंट: विधेयक में यह निर्धारित किया गया है कि विदेशी अंशदान केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), नई दिल्ली की उस शाखा में ही लिया जाएगा, जिसे केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी।
    • प्रशासनिक उद्देश्यों के लिये विदेशी अंशदान के उपयोग में कमी: अधिनियम के अनुसार, प्राप्त कुल विदेशी धन के 20% से अधिक का उपयोग प्रशासनिक खर्चों के लिये नहीं किया जा सकता है। FCRA,  2010 में यह सीमा 50% थी।
    • प्रमाण पत्र का समर्पण/विलोपन:अधिनियम केंद्र सरकार को किसी व्यक्ति के पंजीकरण प्रमाण पत्र को विलोपित (Surrender) करने की अनुमति देता है।

FCRA से संबंधित मुद्दे:

  • FCRA भारत में कार्य करने वाले गैर-सरकारी संगठनों के धन प्राप्ति के विदेशी स्रोतों को नियंत्रित करता है। यह “राष्ट्रीय हित के लिये हानिकारक किसी भी गतिविधि हेतु” विदेशी योगदान की प्राप्ति को प्रतिबंधित करता है।
    • अधिनियम में यह भी कहा गया है कि सरकार अनुमति देने से इनकार कर सकती है यदि उसे लगता है कि NGO को मिला दान “सार्वजनिक हित” या “राज्य के आर्थिक हित” पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
    • हालाँकि ‘सार्वजनिक हित’ के निर्धारण हेतु कोई स्पष्ट मार्गदर्शन नहीं है।
  • FCRA प्रतिबंधों का संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) और 19(1)(C) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा संघ की स्वतंत्रता दोनों अधिकारों पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दो तरह से प्रभावित होता है:
    • केवल कुछ राजनीतिक समूहों को विदेशी सहायता प्राप्त करने की अनुमति देना और अन्य को नहीं, सरकार के पक्ष में पूर्वाग्रह पैदा उत्पन्न कर सकता है।
      • जब NGOs द्वारा शासन पद्धति की आलोचना की जाती है तो उन्हें बहुत ही सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है, क्योकि सरकार की बहुत अधिक आलोचना उनके अस्तित्व के लिये खतरा उत्पन्न कर सकती है।
      • FCRA मानदंड आलोचनात्मक आवाजों की जनहित के खिलाफ घोषणा करके उन्हें दबा सकते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इस द्रुतशीतन प्रभाव से ‘सेल्फ-सेंसरशिप’ का निर्माण हो सकता है।
    • जनहित पर अस्पष्ट दिशा-निर्देशों की तरह श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) मामले में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए को रद्द कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस अधिनियम का इस्तेमाल इस तरह से किया जा सकता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित हो।
  • इसके अलावा यह देखते हुए कि संघ की स्वतंत्रता का अधिकार ‘मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा’ (अनुच्छेद 20) का हिस्सा है, इस अधिकार का उल्लंघन भी मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
  • अप्रैल 2016 में शांतिपूर्ण सभा और एसोसिएशन की स्वतंत्रता के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक ने FCRA, 2010 का कानूनी विश्लेषण किया।
    • इसमें कहा गया है कि FCRA के तहत लागू ‘जनहित’ और ‘आर्थिक हित’ के नाम पर प्रतिबंध ‘वैध प्रतिबंधों’ के परीक्षण में विफल रहे हैं।
    • शर्तें बहुत अस्पष्ट थीं और इस प्रावधान को मनमाने ढंग से लागू करने के लिये राज्य को अत्यधिक विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान की गईं।
  • इस संदर्भ में भ्रष्ट गैर-सरकारी संगठनों को विनियमित करना आवश्यक है और जनहित जैसे शब्दों पर स्पष्टता की आवश्यकता है।

आगे की राह

Leave a Reply

error: Content is protected !!