श्रीनिवास रामानुजन् को क्यों ‘गणितज्ञों का गणितज्ञ’ और ‘संख्याओं का जादूगर’ कहा जाता है?

श्रीनिवास रामानुजन् को क्यों ‘गणितज्ञों का गणितज्ञ’ और ‘संख्याओं का जादूगर’ कहा जाता है?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत के कई महान गणितज्ञों ने विश्वभर में लोकप्रियता हासिल की है. श्रीनिवास अयंगर रामानुजन जैसे विश्वविख्यात गणितज्ञ को भला कौन नहीं जानता होगा. रामानुजन ने गणित के विभिन्न सूत्रों, प्रमेयों और सिद्धांतों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. दुनिया में जहां भी संख्याओं पर आधारित खोजों एवं विकास की बात होती है, वहां भारत की गणितीय परंपरा को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया जाता है.

भारत में हुई शून्य एवं दशमलव जैसी बुनियादी गणितीय खोजें इसका महत्वपूर्ण कारण हैं. इन मूलभूत खोजों के आधार पर सभ्यताओं का विकास हुआ. गणितीय सिद्धांतों के बिना आकाश में उड़ान भरने, समुद्र की गहराई नापने और भौगोलिक पैमाइश की कल्पना भी मुश्किल है. विज्ञान के जिन सिद्धांतों पर हम तरक्की का दंभ भरते हैं, वह गणित के बिना संभव नहीं है. आज अगर हम भारतीय गणितज्ञों को याद करते हैं, तो वह अनायास नहीं है.

तमिलनाडु के इरोड शहर में 22 दिसंबर,1887 को जन्मे श्रीनिवास रामानुजन सिर्फ 32 साल जिये, लेकिन उनकी प्रतिभा का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उनके काम के कई हिस्सों को दुनिया एक सदी बाद आज समझ पा रही है. बहुत से लोग मानते हैं कि अगर वे आज होते तो शायद आधुनिक दौर के महानतम गणितज्ञ के रूप में जाने जाते.

रामानुजन ने पिछली सदी के दूसरे दशक में गणित की दुनिया को एक नया आयाम दिया. वे बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. उन्होंने गणितीय विश्लेषण, अनंत शृंखला, संख्या सिद्धांत तथा निरंतर भिन्न अंशों के लिए आश्चर्यजनक योगदान दिया और अनेक समीकरण व सूत्र पेश किये. उनके प्रयासों व योगदान ने गणित को नया अर्थ दिया.

उनकी खोज ‘रामानुजन थीटा’ तथा ‘रामानुजन प्राइम’ ने इस विषय पर आगे के शोध और विकास के लिए दुनियाभर के शोधकर्ताओं को प्रेरित किया. बहुत कम लोग जानते होंगे कि पाश्‍चात्‍य गणितज्ञ जीएस हार्डी ने श्रीनिवास रामानुजन को यूलर, गॉस, आर्किमिडीज तथा आइजक न्‍यूटन जैसे दिग्‍गजों की समान श्रेणी में रखा था. इसके पीछे मात्र 32 वर्ष के उनके जीवनकाल की गणितीय साधना जुड़ी थी. रामानुजन के निधन के बाद उनकी 5000 से अधिक प्रमेय (थ्योरम) छपवायी गयीं.

गणितीय प्रमेयों में अधिकतर ऐसी थीं, जिन्हें कई दशक बाद तक सुलझाया नहीं जा सका. गणित के क्षेत्र में की गयी रामानुजन की खोजें आधुनिक गणित और विज्ञान की बुनियाद बनकर उभरी हैं. उन्हें ‘गणितज्ञों का गणितज्ञ’ और ‘संख्याओं का जादूगर’ कहा जाता है. रामानुजन को यह संज्ञा ‘संख्या-सिद्धांत’ पर उनके योगदान के लिए दी जाती है.

वैसे देखा जाए, तो गणित एक रचनात्मक विषय है और एक तरीके से पहेलियों का पिटारा भी. कुछ लोग इसे कठिन विषय मानते हैं, लेकिन जो पसंद करते हैं, उनके लिए इससे आसान विषय कुछ नहीं होता. वर्तमान में सिर्फ भारत ही नहीं विश्व स्तर पर शैक्षिक, आर्थिक, तकनीकी तथा वैज्ञानिक प्रगति का आधार गणित ही है. शिक्षा के तो प्रत्येक क्षेत्र में गणित के किसी न किसी रूप का प्रयोग अनिवार्य हिस्सा बन चुका है.

विज्ञान, इंजीनियरिंग एवं तकनीक से लेकर व्यापार-वाणिज्य या फिर तमाम ललित कलाओं के पीछे गणित का योगदान कहीं न कहीं छिपा हुआ है. वहीं शून्य के अाविष्कार से गणित कंप्यूटर साइंस तक पहुंचा. इस विषय पर ध्यान देने की जरूरत है. आज गणित हमारे चारों और फैले वातावरण में किसी न किसी रूप में विद्यमान है. जीवन में गणित का अत्यधिक महत्व है. हम कोई भी दैनिक कार्य करते हैं तो उसमें गिनती, पहाड़ा, जोड़, घटाव, गुणा, भाग, इन सबकी अहम भूमिका है.

आज जीवन तथा समाज के प्रत्येक क्षेत्र में गणित के महत्व को नकारा नहीं जा सकता. इसीलिए गणित के प्रति विद्यार्थियों में डर बनाने की बजाय सिस्टम को सुधारने की जरूरत है. कोठारी आयोग ने गणित के महत्व को स्वीकारते हुए कहा था कि ‘सभी छात्रों को अनिवार्य रूप से सामान्य शिक्षा के भाग के रूप में प्रथम 10 वर्षों तक गणित पढ़ाई जानी चाहिए.’

गणित विज्ञान की रानी है. गणित की समझ रखने वालों ने देश व दुनिया को नयी दिशा प्रदान की है. समाज पहले से बेहतर बना है. बहरहाल, भारत की गणित के क्षेत्र में बहुत बड़ी और गौरवशाली परंपरा है जिसे प्रोत्साहित करने की जरूरत है. भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए छात्रों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए इस विषय के प्रति जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है.

भारत में रामानुजन जैसी प्रतिभाओं की कमी नहीं है. हमें जरूरत है ऐसी प्रतिभाओं की पहचान करने वाले किसी प्रोफेसर हार्डी और संवेदनशील उच्च संस्थानों की, जो गरीबी और विपरीत परिस्थितियों से निकले किसी रामानुजन जैसी प्रतिभा को हतोत्साहित न होने दें.

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