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मदन मोहन मालवीय ने कैसे सबक सिखाया हैदराबाद के निजाम को ?

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श्रीनारद मीडिया सेंट्रल डेस्क

भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय की 25 दिसंबर को जयंती है। उनका जन्म 25 दिसंबर 1861 हुआ था। मदन मोहन मालवीय का जन्म स्थान इलाहाबाद है। इनके पिता का नाम पंडित ब्रजनाथ और माता का नाम मूनादेवी था। महामना के पिता संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे। मात्र 5 साल की आयु में उनके माता-पिता ने उन्हें संस्कृत भाषा में प्रारंभिक शिक्षा दिलवाने के लिए पंडित हरदेव धर्म ज्ञानोपदेश पाठशाला में भर्ती किया। महामना ने वहां से प्राइमरी परीक्षा पास की। विभिन्न स्कूलों एवं कॉलेजों से होते हुए उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय से बी.ए. की उपाधि प्राप्त की। यूं तो मालवीयजी का जीवन उलब्धियों से भरा पड़ा है। लेकिन बीएचयू की स्थापना खास उपलब्धि है। ऐसे माहन विभूति मालवीय जी की जयंती परे देश के साथ धनबाद में भी मनाई जा रही है।

ब्राह्मण समाज ने दी श्रद्धांजलि

मदन मोहन मालवीय के योगदान को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए शनिवार सुबह धनबाद के एसएसएलएनटी महिला महाविद्यालय के समीप कार्यक्रम का आयोजन किया गया। मालवीय जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। इस माैके पर ब्राह्मण समाज धनबाद के अध्यक्ष सोमनाथ त्रिपाठी और धनबाद बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष राधेश्याम गोस्वामी मुख्य रूप से उपस्थित थे। वक्ताओं ने देश की आजादी, भारत की शिक्षा और आधुनिक भारत के निर्माण में मालवीय जी के योगदान की प्रशंसा की।

कहा-मालवीय जी का पूरा जीवन देश के प्रति समर्पित था। शिक्षा के क्षेत्र में महामना का सबसे बड़ा योगदान काशी हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में दुनिया के सामने आया था। उन्होंने एक ऐसी यूनिवर्सिटी बनाने का प्रण लिया था, जिसमें प्राचीन भारतीय परंपराओं को कायम रखते हुए देश-दुनिया में हो रही तकनीकी प्रगति की भी शिक्षा दी जाए। अंतत: उन्होंने अपना यह प्रण पूरा भी किया।

यूनिवर्सिटी बनवाने के लिए उन्होंने दिन रात मेहनत की और 1916 में भारत को बीएचयू के रूप में देश को शिक्षा के क्षेत्र में एक अनमोल तोहफा दे दिया। कार्यक्रम में सत्यदेव पाठक, साधुशरण पाठक, रमेश चौबे, तारा पाठक, अजय पाठक, सुरेश मालवीय, पवन ओझा, सुरेश तिवारी आदि शामिल थे।

चार बार बने कांग्रेस के अध्यक्ष

पंडित मदन मोहन मालवीय ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेकर 35 साल तक कांग्रेस की सेवा की। उन्हें सन्‌ 1909, 1918, 1930 और 1932 में कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। मालवीयजी एक प्रख्यात वकील भी थे। एक वकील के रूप में उनकी सबसे बड़ी सफलता चौरीचौरा कांड के अभियुक्तों को फांसी से बचा लेने की थी। चौरी-चौरा कांड में 170 भारतीयों को सजा-ए-मौत देने का ऐलान किया गया था, लेकिन महामना ने अपनी योग्यता और तर्क के बल पर 151 लोगों को फांसी के फंदे से छुड़ा लिया था।

मदन मोहन मालवीय हिंदू महासभा के सबसे प्रारंभिक एवं असरदार नेताओं में से एक थे। वह स्वभाव में बड़े उदार, सरल और शांतिप्रिय व्यक्ति थे। उनके कार्यों और उनके व्यवहार से प्रभावित होकर ही जनमानस ने उन्हें ‘महामना’ कहकर पुकारता था। जिंदगी भर देश और समाज की सेवा में लगे रहने वाले महामना का वाराणसी में 12 नवंबर 1946 को 85 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।

इस तरह सिखाया था हैदराबाद के निजाम को सबक

बीएचयू निर्माण के दौरान मदन मोहन मालवीय का एक किस्सा बड़ा मशहूर है। बीएचयू निर्माण के लिए मदन मोहन मालवीय देशभर से चंदा इकट्ठा करने निकले थे। इसी सिलसिले में मालवीय हैदराबाद के निजाम के पास आर्थिक मदद की आस में पहुंचे। मदन मोहन मालवीय ने निजाम से कहा कि वो बनारस में यूनिवर्सिटी बनाने के लिए आर्थिक सहयोग दें।

हैदराबाद के निजाम ने आर्थिक मदद देने से साफ इनकार कर दिया। निजाम ने बदतमीजी करते हुए कहा कि दान में देने के लिए उनके पास सिर्फ जूती है। मदन मोहन मालवीय वैसे तो बहुत विनम्र थे लेकिन निजाम की इस बदतमीजी के लिए उन्होंने उसे सबक सिखाने की ठान ली। वो निजाम की जूती ही उठाकर ले गए। हैदराबाद के बाजार में निजाम की जूती को लेकर नीलाम करने बैठ गए। इस बात की जानकारी हैदाराबाद के निजाम को हुई तो उसे लगा कि उसकी इज्जत नीलाम हो रही है। वह फौरन पहुंचे। मालवीय को लेकर अपने महल पहुंचे। भारी भरकम दान देकर विदा किया।

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